Saturday, April 09, 2016

शास्त्रीय संगीत और सुर मिलाते बच्चे

बहुत दिनों बाद शहर में किसी कार्यक्रम में जाना हुआ। संयोग से कार्यक्रम शास्त्रीय संगीत से जुड़ा था। छोटे शहर में शास्त्रीय संगीत के प्रति युवाओं और छोटे बच्चों की दीवानगी मेरे प्रिय विषयों में एक है। ठीक वैसे ही जैसे अंचल और पलायन को मैं गंभीरता से देखता हूं।

ख़्याल गायिकी में प्रमुख राजकुमार श्यामानन्द सिंह की पुण्यतिथि पर आयोजित इस कार्यक्रम में छोटे बच्चों ने प्रस्तुति दी। वैसे तो राग-धुनों का व्याकरण मुझे आता नहीं है लेकिन शास्त्रीय संगीत खींचता आया है। पूर्णिया जैसे शहर में शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में सौ लोगों का जमा होना मुझे रास आता है , एक उम्मीद जगती है कि शास्त्रीय संगीत के प्रति नई पीढ़ी की रूचि बढ़ रही है।

यहाँ पूर्णियाँ में मुझे कई शिक्षक मिलते हैं जो शुद्ध रूप से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा के पेशे से जुड़े हैं।  कुछ तो शहर पर बंगाल का प्रभाव है तो कुछ यहाँ की माटी का।

एक चीज़ और, जब बच्चों को कार्यक्रम पेश करते देख रहा था तो कुछ की आँखों में आत्मविश्वास झलक रहा था। हालाँकि गायन में आवाज़ का महत्व है लेकिन मुझे आवाज़ के संग नज़र से नज़र मिलाते कलाकार बहुत पसंद है। ख़ासकर बच्चों में आत्मविश्वास मायने रखता है वो भी तब जब छोटे शहर से पलायन बढ़ रहा है। 

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