पंखुड़ी को जब पढ़ाने बैठता हूं तो वह ढ़ेर सारे सवाल पूछती है। मुझे उसके सवालों से काफ़ी कुछ सीखने को मिलता है। सुबह की बात है, आम को लेकर बात चली तो मैंने कहा- "फ़लों का राजा आम है"। पंखुड़ी ने तुरंत सवाल दागा "पपीता क्यों नहीं? अनार क्यों नहीं?....
पंखुड़ी को जैसे -तैसे समझाकर संतुष्ट कर दिया कि तमाम फलों में आम ही स्वादिष्ट है इसलिए वह राजा है। लेकिन बाद में आम के बारे में सोचने लगा। आख़िर आम राजा क्यों कहलाता है? किसानी करते हुए आम को मैं कितना समझ सका हूँ, इसके बारे में सोचने लगा।
दोपहर में चनका में बग़ीचे में आम के नये फलों को तेज़ धूप और पछिया हवा के झोंकों में अपने ही डंटल से टकराते देखा तो अहसास हुआ कि 'राजा' होना आसान काम नहीं है। पेड़ में मंज़र आते ही उसे पहले तेज़ हवा और बारिश से जूझना पड़ता है, हर साल।
बीस दिन पहले की ही तो बात है, छोटे-छोटे नवातुर आम के फलों को ओलों से लड़ना पड़ा था। सैंकड़ों छोटे-छोटे आम ज़मीन में मिल गये , जो लड़ सके आज पेड़ में हैं। अब भी धूप में वे लड़ रहे हैं।
आम की लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई है। अभी तो आँधी-तूफ़ान का एक दौर बाँकि है, इसमें जो बच जाएँगे वे ही टिक पाएँगे हमारे- आपके लिए।
प्रचंड गरमी की ताप को सहने की शक्ति कोई आम से सीखे। देखने में हरा है, तपती दोपहरी में हमारी आँखों को ठंडक मिलती है इसे देखकर, लेकिन अपने भीतर यह अंगारे को छुपाए हुए है।
आम के पेड़ की पत्तियों में चिटियाँ घर बना लेती है तो कभी मधुमक्खी। गिलहरी तो इसके क़रीब चिपकी रहती है। आम में सहन शक्ति है। इसमें सामूहिकता की कला है। प्रकृति ने इसे सबको संग लेकर चलना सीखाया है।
मैं इस मौसम में जब भी आम को देखता हूं , लगता है कि हम लड़ने से कितना डरते हैं। जबकि आम चार-पाँच महीने लगातार लड़ता रहता है , हमारे -आपके लिए। ऐसे में सबसे बड़े 'लड़ेय्या' तो आम ही है। राजा कोई यूँ ही नहीं कहलाता है, इसके लिए लड़ना पड़ता है।
पंखुड़ी को जैसे -तैसे समझाकर संतुष्ट कर दिया कि तमाम फलों में आम ही स्वादिष्ट है इसलिए वह राजा है। लेकिन बाद में आम के बारे में सोचने लगा। आख़िर आम राजा क्यों कहलाता है? किसानी करते हुए आम को मैं कितना समझ सका हूँ, इसके बारे में सोचने लगा।
दोपहर में चनका में बग़ीचे में आम के नये फलों को तेज़ धूप और पछिया हवा के झोंकों में अपने ही डंटल से टकराते देखा तो अहसास हुआ कि 'राजा' होना आसान काम नहीं है। पेड़ में मंज़र आते ही उसे पहले तेज़ हवा और बारिश से जूझना पड़ता है, हर साल।
बीस दिन पहले की ही तो बात है, छोटे-छोटे नवातुर आम के फलों को ओलों से लड़ना पड़ा था। सैंकड़ों छोटे-छोटे आम ज़मीन में मिल गये , जो लड़ सके आज पेड़ में हैं। अब भी धूप में वे लड़ रहे हैं।
आम की लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई है। अभी तो आँधी-तूफ़ान का एक दौर बाँकि है, इसमें जो बच जाएँगे वे ही टिक पाएँगे हमारे- आपके लिए।
प्रचंड गरमी की ताप को सहने की शक्ति कोई आम से सीखे। देखने में हरा है, तपती दोपहरी में हमारी आँखों को ठंडक मिलती है इसे देखकर, लेकिन अपने भीतर यह अंगारे को छुपाए हुए है।
आम के पेड़ की पत्तियों में चिटियाँ घर बना लेती है तो कभी मधुमक्खी। गिलहरी तो इसके क़रीब चिपकी रहती है। आम में सहन शक्ति है। इसमें सामूहिकता की कला है। प्रकृति ने इसे सबको संग लेकर चलना सीखाया है।
मैं इस मौसम में जब भी आम को देखता हूं , लगता है कि हम लड़ने से कितना डरते हैं। जबकि आम चार-पाँच महीने लगातार लड़ता रहता है , हमारे -आपके लिए। ऐसे में सबसे बड़े 'लड़ेय्या' तो आम ही है। राजा कोई यूँ ही नहीं कहलाता है, इसके लिए लड़ना पड़ता है।
2 comments:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व मलेरिया दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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