"दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय है, दिल्ली विश्वविद्यालय भी है, जामिया भी है, आप अभी पूछना क्या चाहते हैं? हमारा लड़का दिल्ली में तैयारी करता है, पैसा भेजते हैं। जेएनयू में मारपीट हुई है, अभी तक हम यही जानते हैं। देश के ख़िलाफ़ स्टूडेंट्स सब कुछ ग़लत बोला था। "
पूर्णिया शहर के आनंद मेहता से जब जेएनयू को लेकर बात कर रहा था तो उन्होंने जवाब में ये सब कहा। जब हमने पूछा कि न्यूज़ चैनल सब पर तो सबकुछ दिखाया जा रहा है फिर आप पूरी बात से अनजान क्यों हैं ? उन्होंने कहा कि हम केवल जी न्यूज़ देखते हैं।
इनकी बातें सुनकर दिल्ली और पूर्णिया की दूरी का अहसास हो रहा है। अख़बारों में जेएनयू की ख़बरें ग़ायब है। देश की बातें यहाँ नगर-निगम या फिर पंचायत चुनाव की तैयारी में दब गयी है। शुभकामना संदेशों के बीच कोई यह नहीं बता रहा है कि आख़िर हुआ क्या?
इंटर का छात्र ओम कहता है कि वह जेएनयू मसले को फ़ेसबुक के ज़रिए समझ सका है। ओम ने बताया कि पटियाला हाउस में जो कुछ हुआ वह डर पैदा करने वाला है। क्या हम विरोध नहीं कर सकते हैं।हम बोल नहीं सकते। पापा तो दिल्ली भेजने से डरते हैं अब। लेकिन डरने की ज़रूरत नहीं है। यहाँ तो स्थानीय अख़बार कोई ख़बर प्रकाशित नहीं कर रहा है और न्यूज़ चैनल तो केवल चिल्लाता है।
ऐसा नहीं है कि हर कोई यहाँ अनभिज्ञ है। पूर्णिया के लाइन बाज़ार में रमेश यादव मिलते हैं, उन्होंने कहा कि "जेएनयू मसले पर जो विडियो सामने आए हैं वो भारतीय वामपंथ की छवि धूमिल करती है। वामपंथ हमेशा अनुशासित रहा है।अब पता लगाए सरकार कि सच क्या है"
स्थानीय अख़बारों में जब देश के महत्वपूर्ण ख़बर नहीं छपने की बात शहर के बुद्धिजीवी वर्ग कर रहे हैं वहीं एक अख़बार के पत्रकार रईस आलम कहते हैं कि क्या बोलना देशद्रोह है? देशद्रोह तो क्रियाकलाप होता है भाईसाब! वैसे कन्हैया ने यदि कुछ ग़लत कहा है तो जाँच हो।
पूर्णिया शहर के समीप के एक गाँव है- रानीपतरा। यहाँ गांधी आश्रम है। यहाँ हमारी मुलाक़ात शशिरंजन से होती है। सब्ज़ी की खेती करते हैं शशि भाई। उन्होंने बताया कि टीवी के ज़रिए जाने ये सब। दिल्ली में बहुत हल्ला होता है, समाचार चैनल वाले भी ख़ूब चिल्लाते हैं। लेकिन मामला को समझाना होगा, आख़िर क्या हो रहा है? मेरा बच्चा भी बड़ा होकर दिल्ली में ही पढ़ेगा।
ये सब बातें सुनने के बाद दिल्ली में रहने वाले अपने एक पत्रकार मित्र से बात की तो उन्होंने बताया कि दिल्ली पुलिस के खुफिया विभाग ने जेएनयू मामले पर एक स्टेटस रिपोर्ट गृहमंत्रालय को भेजी है।
पूर्णिया शहर के आनंद मेहता से जब जेएनयू को लेकर बात कर रहा था तो उन्होंने जवाब में ये सब कहा। जब हमने पूछा कि न्यूज़ चैनल सब पर तो सबकुछ दिखाया जा रहा है फिर आप पूरी बात से अनजान क्यों हैं ? उन्होंने कहा कि हम केवल जी न्यूज़ देखते हैं।
इनकी बातें सुनकर दिल्ली और पूर्णिया की दूरी का अहसास हो रहा है। अख़बारों में जेएनयू की ख़बरें ग़ायब है। देश की बातें यहाँ नगर-निगम या फिर पंचायत चुनाव की तैयारी में दब गयी है। शुभकामना संदेशों के बीच कोई यह नहीं बता रहा है कि आख़िर हुआ क्या?
इंटर का छात्र ओम कहता है कि वह जेएनयू मसले को फ़ेसबुक के ज़रिए समझ सका है। ओम ने बताया कि पटियाला हाउस में जो कुछ हुआ वह डर पैदा करने वाला है। क्या हम विरोध नहीं कर सकते हैं।हम बोल नहीं सकते। पापा तो दिल्ली भेजने से डरते हैं अब। लेकिन डरने की ज़रूरत नहीं है। यहाँ तो स्थानीय अख़बार कोई ख़बर प्रकाशित नहीं कर रहा है और न्यूज़ चैनल तो केवल चिल्लाता है।
ऐसा नहीं है कि हर कोई यहाँ अनभिज्ञ है। पूर्णिया के लाइन बाज़ार में रमेश यादव मिलते हैं, उन्होंने कहा कि "जेएनयू मसले पर जो विडियो सामने आए हैं वो भारतीय वामपंथ की छवि धूमिल करती है। वामपंथ हमेशा अनुशासित रहा है।अब पता लगाए सरकार कि सच क्या है"
स्थानीय अख़बारों में जब देश के महत्वपूर्ण ख़बर नहीं छपने की बात शहर के बुद्धिजीवी वर्ग कर रहे हैं वहीं एक अख़बार के पत्रकार रईस आलम कहते हैं कि क्या बोलना देशद्रोह है? देशद्रोह तो क्रियाकलाप होता है भाईसाब! वैसे कन्हैया ने यदि कुछ ग़लत कहा है तो जाँच हो।
पूर्णिया शहर के समीप के एक गाँव है- रानीपतरा। यहाँ गांधी आश्रम है। यहाँ हमारी मुलाक़ात शशिरंजन से होती है। सब्ज़ी की खेती करते हैं शशि भाई। उन्होंने बताया कि टीवी के ज़रिए जाने ये सब। दिल्ली में बहुत हल्ला होता है, समाचार चैनल वाले भी ख़ूब चिल्लाते हैं। लेकिन मामला को समझाना होगा, आख़िर क्या हो रहा है? मेरा बच्चा भी बड़ा होकर दिल्ली में ही पढ़ेगा।
ये सब बातें सुनने के बाद दिल्ली में रहने वाले अपने एक पत्रकार मित्र से बात की तो उन्होंने बताया कि दिल्ली पुलिस के खुफिया विभाग ने जेएनयू मामले पर एक स्टेटस रिपोर्ट गृहमंत्रालय को भेजी है।
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