Saturday, October 03, 2015

एक किसान की चुनावी डायरी- 6

पूर्णिया से दरभंगा के लिए हमने चमचमाती फोर लेन सड़क को चुना। अररिया -फारबिसगंज , सुपौल , झंझारपुर होते हुए हम दरभंगा पहुंचे। दरभंगा को लेकर कोई कुछ भी कहे हम तो इस शहर को महाराजा के किला के लिए ही जानते हैं। रास्ते जहां भी रुके लोगबाग भाजपा के विजन डाक्यूमेंट की बात करते मिले।
चुनावी घोषणापत्र को लेकर लोगबाग खूब चर्चा करते हैं, चाहे वह किसी पार्टी का हो। दरभंगा पोखरों का शहर है। इस बार गंदगी कम दिखी। यहां के सांसद भाजपा के कीर्ति झा आजाद हैं। हालांकि कोई उनकी बात करना नहीं चाहता है। भाजपा ने इस बार सिटिंग विधायक को ही टिकट दिया है। बेला चौक पर श्याम मिश्र ने कहा कि वे एमपी से खुश नहीं हैं लेकिन विधायक से खुश हैं।

श्याम मिश्र बता रहे थे कि दस विधानसभा क्षेत्र वाले दरभंगा जिले में इस बार कुछ दिग्गज नया रिकार्ड बनाने के लिए चुनाव मैदान में उतरेंगे तो कुछ रिकॉर्ड बचाने की कवायद करेंगे। इससे चुनाव रोचक होने की संभावना है। दरभंगा को लेकर पहले मन में जो छवि थी वह गंदगी की थी लेकिन इस बार साफ़ सुथरा बहुत कुछ लगा।

जाति के जाल में लोग कम फंसे मिले। दिल्ली में जब पढ़ाई कर रहा था तब मुखर्जीनगर में एक पंजाबी दोस्त कहता था कि दरभंगा का नाम सुनते ही उसके मन में मिथिला वाली मिठास का एहसास होता है। दरभंगा एक शहर नहीं बल्कि मिथिलांचल की हृदय स्थली है। बात मिथिला की होती है तो इसकी सीमा सिर्फ दरभंगा या मधबुनी तक सीमित नहीं है।  भौगोलिक रूप से मिथिला का इलाका सीतामढ़ी से लेकर सीमांचल तक फैला हुआ है।
टॉवर चौक पर हमारी मुलाक़ात सरफराज से होती है। उन्होंने बताया कि केंद्र में इस इलाके से किसी को मंत्री नहीं बनाया जाना मुद्दा है। ब्राह्मण वोटों के अलावा इलाके में मुस्लिम वोट भी अच्छी तादाद में है। कटहरबाड़ी के जितेंद्र नारायण बताते हैं कि यादवों का एक तबका इस वक्त बीजेपी के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ दिख रहा है। इसलिए यादव वोट बैंक में सेंध तय है।

राजकुमारगंज के अरविन्द बताते हैं कि बीजेपी को लेकर बिहार में ब्राह्मणों की कसमसाहट अब सामने आ रही है। उन्हें लगता है कि बीजेपी ने केंद्र में उनके साथ अन्याय किया है। हालांकि उनका ये लगना अभी भी ‘फुसफुसाहटों’ में है।

दरभंगा में श्यामा मंदिर के प्रांगण में हमेशा की तरह लोगबाग दिखे। दरभंगा महाराज की पीढ़ियों की समाधि यहीं है और मां काली का भव्य मंदिर भी। यहां भी लोगबाग चुनाव को लेकर बतकही कर रहे हैं।
मिथिला विश्वविद्यालय के छात्र महेश मिश्र कहते हैं "नितीश कुमार ने काम तो बहुत किया है लेकिन लालू यादव से उनके जुड़ जाने हम सब दुखी हैं। जंगलराज की बात तो नितीश कुमार ने ही शुरू किया था। " दूसरी ओर एक अन्य छात्र शंकर झा कहते हैं - " भाजपा से ब्राह्मण नाराज लगते हैं, उस पार्टी से नाराज हो रहे हैं, जिसे ब्राह्मण-बनियों की पार्टी कहा जाता है।"

जाति को लेकर लोगों की बातें सुनते हुए कभी कभी लगता है कि हम किस दौर में जी रहे हैं। राजनीति हमें किस ओर ले जा रही है। नीतीश कुमार ने अपने सात सूत्री विज़न डाक्यूमेंट में दावा किया है कि उनके कार्यकाल में बिहार के 39,000 बसावटों में से 36000 बसावटों में बिजली पहुंचा दी गई है और 2016 तक हर घर में मुफ्त कनेक्शन दे देंगे। वहीं एक अक्टूबर को भाजपा ने भी अपने विजन डाक्यूमेंट में कहा है कि एक साल के भीतर हर गांव हर घर में बिजली देंगे। खेती के लिए अलग फीडर से बिजली देंगे। वादों का बाजार अभी गर्म है।

कामेश्वर साहनी बताते हैं कि भाजपा कह रही है यदि वह सत्ता में आएगी तो सरकारी तालाबों को सिर्फ मछुआरों को ठेके पर दिया जाएगा। मछुआरों की ट्रेनिंग की व्यवस्था की जाएगी। मछली पालन एवं मछली की खेती के लिए विशेष अनुदान की व्यवस्था करेंगे। लेकिन सत्ता में आने  के बाद कोई कुछ नहीं करता है।
दरभंगा और आसपास के इलाकों पर नजर घुमाते हुए लगता है कि हर कोई भाजपा और राजद की लड़ाई के बीच मारवाड़ी की बात कर रहा हो। लेकिन इन सबके बीच दरभंगा महराज का किला मुझे अपनी ओर खींचता रहा दिन भर। बाद बाँकी जो है सो हइये है।

No comments: