चुनाव के दौरान हर कोई अपनी बातें रखता है। पार्टी के लोग पार्टी की बातें करते हैं, जिन्हें टिकट मिलता है वे विकास की बातें करते हैं, जिन्हें टिकट नहीं मिलता वे पार्टी की बुराई करते हैं। मतलब हर कोई राजनीतिक अलाप में जुट जाता है। राजनीति यही है। ऐसे में आपका यह किसान चुनाव की बातें गाम-घर की धूल उड़ाती सड़कों के बहाने करते रहना चाहता है। मैं केवल राजधानी पटना की बातें नहीं करना चाहता, वहां से कोसों दूर
चौक-चौराहों, गांव-घर की बात करना चाहता हूं। लुभावनी तस्वीरों के जरिए पटना को देखने सुनने वालों को देहाती दुनिया चुनावी लीला सुनाना चाहता हूं।
लोगबाग इन दिनों जिला मुख्यालयों से गांव की तरफ जाने वाली सड़कों की बात करना चाहते हैं । पूर्णिया जिला के कृत्यानंदनगर प्रखंड के रामपुर इलाके में हमारी मुलाकात मोहम्मद इरफान से होती है। वे बताते हैं किस तरह पगडंडी ही उनका रास्ता है। मतलब विकास का गणित गांव में क्या मायने रखता है, इस पर सोचने की जरुरत है।
चिमनी बाजार के बुजुर्ग रइस के सवाल को भी सुनने की जरुरत है। वे पूछते हैं- ‘बाबू, इस बार मुसलमान मुख्यमंत्री बनेगा क्या?’ रइस चाचा के सवाल को सुनकर हमने दिमाग पर जोर दिया तो पता चला कि बिहार में अबतक मुस्लिम मुख्यमंत्री एक ही बने हैं- अब्दुाल गफूर। वे जुलाई 1973 से अप्रैल 1975 तक मुख्यमंत्री रहे। राजनीतिक सवालों की झड़ी अक्सर हमें एक मोड़ पर खड़ा कर देती है, जहां हमें काफी कुछ समझना बुझना पड़ता है।
चुनाव के दौरान जब आप यात्रा करते हैं और लोगों से बात करना चाहते हैं तो पहली बार तो अक्सर कई लोग कन्नी काट लेते हैं लेकिन धीरे-धीरे वे खुलने लगते हैं। अरिरया जिले के रानीगंज बाजार में एक किसान से बात हो रही थी। वह पटसन बेचने आया था। हमने पूछा कि माहौल कैसा है? उनका जवाब था- गर्दा! अब मैं सोचने लगा कि चुनाव में गर्दा किसका उड़ेगा! दरअसल राजनीतिक सवालों पर हर कोई गंभीर नहीं हो रहे हैं। लोग खुलकर नहीं बोलना चाहते हैं। गौरतलब है कि अररिया जिले में भाजपा ने अपने कुछ सीटिंग विधायकों का
टिकट काटा है।
रानीगंज एक बड़ा बाजार है। यहां के चाय दुकान पर बातचीत के दौरान लोगबाग प्रत्याशियों की चर्चा कम और चुनावी नारे की बात ज्यादा कर रहे थे। ‘झांसे में न आएंगे, नीतीश को जिताएंगे’, ‘न जुमलों वाली न जुल्मी सरकार, गरीबों को चाहिए अपनी सरकार’, ‘युवा रूठा, नरेंद्र झूठा’ , ‘हम बदलेंगे बिहार, इस बार भाजपा सरकार’, ‘जैसे नारों को लेकर लोग बातें कर रहे थे।
इन लोगों की बातें सुनकर यह अंदाजा तो जरुर लगा कि इस बार राजनीतिक दलों के ब्रांड मैनेजरों के काम काजों पर भी लोगों की नजर हैं ! यहां एक युवक परितोष कुमार से मुलाकात होती है। उसके हाथ में एंड्रायड मोबाइल था और वह फेसबुक पर सक्रिय है। परितोष ने कहा कि वह राजनीतिक दलों के फेसबुक पेज पर आता-जाता रहता है। वैसे दलों को सोशल नेटवर्क पर जितना लाइक मिल जाए, काम तो ‘वोट’ ही आता है। फेसबुक से चुनाव जीता नहीं जा सकता J परितोष से बातें कर मैं अपने गांव की ओर निकल पड़ा।
शाम हो चुकी थी। रानीगंज से बौंसी आते वक्त एक महादलित बस्ती पर नजर जाती है कि तभी मन के भीतर अदम गोंडवी बज उठते हैं- “आइए और महसूस कीजिए जिंदगी के ताप को ... जिस गली में भुखमरी की यातना से उबकर ..मर गई फुलिया बिचारी कल कुएं में डूबकर।” वैसे चुनाव के वक्त भावुक होने का कोई फायदा नहीं है।
अररिया जिला में बौंसी आता है। यहां से पूर्णिया जिला की सीमा 10 किलोमीटर है। चुनाव के वक्त वाहनों की चेकिंग बहुत ज्यादा होती है। पुलिस मुस्तैदी से अपना काम कर रही थी। चेकिंग के दौरान जहां हम रुके थे वहां
एक मोटरसाइकिल सवार ने कहा- ‘यदि ऐसी मुस्तैदी हमेशा पुलिस दिखाए तब यकिन मानिए बिहार बदल ही जाएगा ‘ चुनाव के वक्त मुद्दों के अलावा कई चीजों पर नजर जाती है। बदलते बिहार की बातों से इतर गांव बदलने की बातें हो या फिर डिजिटल इंडिया की बातें , अभी बहुत कुछ होगा। हम जिस सड़क सड़क से यात्रा कर रहे थे वहां कभी एक रानी हुआ करती थी- रानी इंद्रावती। पूर्णिय़ा गजेटियर में इसका उल्लेख है। उन्होंने इस इलाके में कुंआ, तलाब और सड़क को लेकर खूब काम किया था।
रानी इंद्रावती के कामकाजों के कुछ अवशेष अभी भी हैँ। उनका कार्यकाल 1802 के आसपास था। मुगल शासन का अंत हो चुका था और ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी मिल चुकी थी। चुनाव के वक्त इस इलाके में घुमते हुए मुझे रानी इंद्रावती के बारे में और जानने की इच्छा हो रही है लेकिन अभी तो चुनावी बयार है। कहां इतिहास और कहां राजनीति ! बाद बांकी जो है सो तो हइए है।
चौक-चौराहों, गांव-घर की बात करना चाहता हूं। लुभावनी तस्वीरों के जरिए पटना को देखने सुनने वालों को देहाती दुनिया चुनावी लीला सुनाना चाहता हूं।
लोगबाग इन दिनों जिला मुख्यालयों से गांव की तरफ जाने वाली सड़कों की बात करना चाहते हैं । पूर्णिया जिला के कृत्यानंदनगर प्रखंड के रामपुर इलाके में हमारी मुलाकात मोहम्मद इरफान से होती है। वे बताते हैं किस तरह पगडंडी ही उनका रास्ता है। मतलब विकास का गणित गांव में क्या मायने रखता है, इस पर सोचने की जरुरत है।
चिमनी बाजार के बुजुर्ग रइस के सवाल को भी सुनने की जरुरत है। वे पूछते हैं- ‘बाबू, इस बार मुसलमान मुख्यमंत्री बनेगा क्या?’ रइस चाचा के सवाल को सुनकर हमने दिमाग पर जोर दिया तो पता चला कि बिहार में अबतक मुस्लिम मुख्यमंत्री एक ही बने हैं- अब्दुाल गफूर। वे जुलाई 1973 से अप्रैल 1975 तक मुख्यमंत्री रहे। राजनीतिक सवालों की झड़ी अक्सर हमें एक मोड़ पर खड़ा कर देती है, जहां हमें काफी कुछ समझना बुझना पड़ता है।
चुनाव के दौरान जब आप यात्रा करते हैं और लोगों से बात करना चाहते हैं तो पहली बार तो अक्सर कई लोग कन्नी काट लेते हैं लेकिन धीरे-धीरे वे खुलने लगते हैं। अरिरया जिले के रानीगंज बाजार में एक किसान से बात हो रही थी। वह पटसन बेचने आया था। हमने पूछा कि माहौल कैसा है? उनका जवाब था- गर्दा! अब मैं सोचने लगा कि चुनाव में गर्दा किसका उड़ेगा! दरअसल राजनीतिक सवालों पर हर कोई गंभीर नहीं हो रहे हैं। लोग खुलकर नहीं बोलना चाहते हैं। गौरतलब है कि अररिया जिले में भाजपा ने अपने कुछ सीटिंग विधायकों का
टिकट काटा है।
रानीगंज एक बड़ा बाजार है। यहां के चाय दुकान पर बातचीत के दौरान लोगबाग प्रत्याशियों की चर्चा कम और चुनावी नारे की बात ज्यादा कर रहे थे। ‘झांसे में न आएंगे, नीतीश को जिताएंगे’, ‘न जुमलों वाली न जुल्मी सरकार, गरीबों को चाहिए अपनी सरकार’, ‘युवा रूठा, नरेंद्र झूठा’ , ‘हम बदलेंगे बिहार, इस बार भाजपा सरकार’, ‘जैसे नारों को लेकर लोग बातें कर रहे थे।
इन लोगों की बातें सुनकर यह अंदाजा तो जरुर लगा कि इस बार राजनीतिक दलों के ब्रांड मैनेजरों के काम काजों पर भी लोगों की नजर हैं ! यहां एक युवक परितोष कुमार से मुलाकात होती है। उसके हाथ में एंड्रायड मोबाइल था और वह फेसबुक पर सक्रिय है। परितोष ने कहा कि वह राजनीतिक दलों के फेसबुक पेज पर आता-जाता रहता है। वैसे दलों को सोशल नेटवर्क पर जितना लाइक मिल जाए, काम तो ‘वोट’ ही आता है। फेसबुक से चुनाव जीता नहीं जा सकता J परितोष से बातें कर मैं अपने गांव की ओर निकल पड़ा।
शाम हो चुकी थी। रानीगंज से बौंसी आते वक्त एक महादलित बस्ती पर नजर जाती है कि तभी मन के भीतर अदम गोंडवी बज उठते हैं- “आइए और महसूस कीजिए जिंदगी के ताप को ... जिस गली में भुखमरी की यातना से उबकर ..मर गई फुलिया बिचारी कल कुएं में डूबकर।” वैसे चुनाव के वक्त भावुक होने का कोई फायदा नहीं है।
अररिया जिला में बौंसी आता है। यहां से पूर्णिया जिला की सीमा 10 किलोमीटर है। चुनाव के वक्त वाहनों की चेकिंग बहुत ज्यादा होती है। पुलिस मुस्तैदी से अपना काम कर रही थी। चेकिंग के दौरान जहां हम रुके थे वहां
एक मोटरसाइकिल सवार ने कहा- ‘यदि ऐसी मुस्तैदी हमेशा पुलिस दिखाए तब यकिन मानिए बिहार बदल ही जाएगा ‘ चुनाव के वक्त मुद्दों के अलावा कई चीजों पर नजर जाती है। बदलते बिहार की बातों से इतर गांव बदलने की बातें हो या फिर डिजिटल इंडिया की बातें , अभी बहुत कुछ होगा। हम जिस सड़क सड़क से यात्रा कर रहे थे वहां कभी एक रानी हुआ करती थी- रानी इंद्रावती। पूर्णिय़ा गजेटियर में इसका उल्लेख है। उन्होंने इस इलाके में कुंआ, तलाब और सड़क को लेकर खूब काम किया था।
रानी इंद्रावती के कामकाजों के कुछ अवशेष अभी भी हैँ। उनका कार्यकाल 1802 के आसपास था। मुगल शासन का अंत हो चुका था और ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी मिल चुकी थी। चुनाव के वक्त इस इलाके में घुमते हुए मुझे रानी इंद्रावती के बारे में और जानने की इच्छा हो रही है लेकिन अभी तो चुनावी बयार है। कहां इतिहास और कहां राजनीति ! बाद बांकी जो है सो तो हइए है।
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