Thursday, October 08, 2015

एक किसान की चुनावी डायरी- 11

हमलोग बचपन में सुनते थे कि कोसी के इलाके की मछलियों का स्वाद दरभंगा-मधुबनी की मछली से अच्छा होता है। बाद में पता चला कि कोसी के इलाके में मछली का बाजार दरभंगा-मधुबनी के बाजार से बड़ा है और सस्ता भी।

मछली के शौकिन लोगों का मानना है कि कोसी के पानी में और उसकी धाराओं में मछलियों के लिए आदर्श खाद्य पदार्थ होता है। कारी कोसी की मछलियां तो इलाके भर में मशहूर हैं। दरअसल यह सब इस कारण कह रहा हूं क्योंकि मछली बाजार घुमते हुए लोगबाग की चुनावी वाणी सुनने को मिल रही है।

सुपौल के मछली बाजार में एक सज्जन अरविंद मोहन कहते हैं कि भाजपा ने तो मछली व्यवसाय को ब़ढ़ाने के लिए बहुत वादा किया है लेकिन नीतीश कुमार ने इतना कुछ पहले ही कर दिया है कि भाजपा जो कुछ भी कह रही है हमलोगों को कम लग रहा है। मछली के साथ-साथ दलों की बातचीत करने का अपना अलग आनंद है।

बाजार में हमारी भेंट मोहम्मद इस्माइल से होती है। उन्होंने मछली पर छिड़ी बहस को बीच में ही रोकते हुए कहा कि क्या आप लालू यादव और नीतीश कुमार की बात करिएगा। हमने हामी भर दी। इस्माइल ने बताया- “ आप मानिए या न मानिए लालू-नीतीश हमें ठग रहे हैं। मैं यह नहीं कह रहा कि भाजपा हमें छोड़ेगी। वह भी यदि सत्ता में आएगी तो ठगती रहेगी। “

मछली के व्यापारी इस्माइल का आकलन है कि लालू ने अपने भीतर के लालू को दबाकर नीतीश को अपना नेता स्वीकार किया है और नीतीश ने सत्ता पाने के लिए लालू का सहारा लिया है। दोनो एक दूसरे के घूर विरोधी हैं, पर मजबूरी में साथ-साथ हैं।

आम लोगों की बातचीतों के आधार पर कभी कभी लगता है कि मतदाताओं के दिमाग में एक साथ कितना कुछ चलता रहता है। सुपौल के जदिया बाजार में भी ऐसी ही बात सुनने को मिली थी। वहां सड़क किनारे पाल्ट्री फार्म चलाने वाले रजनीश ने बताया था कि लालू नीतीश साथ-साथ है, पर दोनो अपनी-अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हैं, ताकि वक्त आने पर एक दूसरे को पटकनी दी जा सके। उन्होंने कहा था कि राजनीति में कुर्सी हासिल करने के लिए बेहद खट्टे समझौते करने पड़ते हैं।

उधर, सीमांचल में रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी में असंतोष उभरकर सामने आने लगा है। लोजपा के कुछ स्थानीय नेताओं ने कहा है कि सीमांचल में पार्टी को कमजोर करने के लिए कुछ लोग साजिश कर रहे हैं। दरअसल पार्टी धमदाहा और बायसी विधानसभा सीट चाहती थी लेकिन इन दोनों सीट पर रालोसपा के उम्मीदवार खड़े हैं। चुनाव के दौरान रूठने-मनाने का खेल तो जारी ही रहेगा।

इन सबके बीच आसमान में हेलीकाप्टर खूब मंडारने लगा है। गांव में लोगबाग अक्सर पूछते हैं कि कितना रुपया खर्च होता होगा हेलीकाप्टर से घुमने में ? लोगों के सवालों का जवाब ढूढ़ने के लिए हमने जब गूगल बाबा का सहारा लिया तो पता चला कि करीब 1.5 लाख रुपये खर्च होते हैं एक घंटे हेलीकाप्टर से हवाई यात्रा करने में। मेरे इस जवाब से सुनील हेब्रम सिर पकड़ लेता है और बोलता है- “इसका मतलब तो यही हुआ न भैया कि चुनाव में तो पैसा बहता है!”

गांव घर में इस तरह की बातें खूब हो रही है। ये लोग यह भी कह रहे हैं कि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है इसलिए हेलीकाप्टर से सबसे अधिक मोदी के लोग ही उड़ रहे हैं।
मछली, सुपौल, सीमांचल, पार्टी में अनबन और हेलीकाप्टर की बातों से इतर पुलिस की मुस्तैदी भी लोगों की जुबान पर है।

 वाहनों की चैकिंग खूब होती है। लोग वाहनों के कागजात लेकर यात्रा करने लगे हैं। हेलमेट पहनकर बाइक चलाते हैं। प्रदूषण जांच का प्रमाण पत्र वाहन में लेकर लोग चल रहे हैं। हालांकि प्रदूषण जांच के नाम पर धांधली भी हो रही है। लेकिन इसके बावजूद यदि ध्यान दिया जाए तो लगता है कि चुनाव हमें अनुशासन का भी पाठ पढ़ाता है, बस समझने की जरुरत है। बाद बांकी जो है सो तो हइए है।

No comments: