Wednesday, October 19, 2011

रंगीन शब्द

अब मुझे भी शब्द को रंगना आ गया है,

मैं भी अब कलाकार बन गया हूं.

शब्द का कलाकार

जिसे आता है,

शब्दों के आसपास़

रंग छिटकना

जबसे इंक-कलम कहीं छुप गए

तब से की-बोर्ड पर

करने लगा हूं शब्द-अलाप।

जो शरीर के ऊपर के तल्ले पर आता है,

उसे रखा देता हूं एक सादे पन्ने पर,

और जो नहीं आता है उसे

अनंत के सागर से

उठाकर (चोरी कर) चस्पा कर देता हूं.

ऐसे में,

यहां मैं भी कलाकार बन जाता हूं

कुछ शब्दों को रंगीन कर देता हूं

और जो शब्द करने लगते हैं परेशान

उसे मिटा देता हूं..हमेशा-हमेशा के लिए

यही मेरा भरम है

कि मैं अब कलाकार बन गया हूं.

लाल, हरे, पीले रंग में

शब्दों को ढालने लगा हूं..



4 comments:

नीरज गोस्वामी said...

शब्दों को रंगना...वाह...अद्भुत बात सोची है आपने...बधाई स्वीकारें

नीरज

deepakkibaten said...

यही मेरा भरम है
कि मैं अब कलाकार बन गया हूं.

क्‍या बात कही है जनाब वाह!

इन्दु पुरी said...

जिसे तुम शब्दों को रंगना कह रहे हो उन्हें मैं शब्दों से खेलना कहती हूँ.तुम जिनमें कलाकार देखते हो शब्दों को तरतीब से जमाने वालो को और मैं???? खिलाड़ी.

बड़े बड़े लेखकों को मैंने शब्दों के हेर फेर के बाद किसी और की रचना को अपने नाम से छापते,पढते देखा है.खिलाड़ी है .
बहुत खूबसूरत,भावपूर्ण, संवेदनापूर्ण,आदर्श स्थापित करने जैसा लिखने वालों को मौका मिलते ही 'जिस' रूप में देखा, शोक्ड रह गई.वे सचमुच कलाकार थे.
इसलिए अक्सर पूछती हूँ 'शब्दों से खेलते हो या ..... इन्हें जीते भी हो' ?????
खुद को अपने पाठकों ,प्रसंशको को धोखा देना नही यह???? अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने के लिए मुखोटे की जरूरत क्यों महसूसते हैं हम?
लोग सर्टिफिकेट देंगे तभी हमे और लोगों को मालूम होगा कि हम कैसे हैं?
क्या खुद को नही जानते हम या हमारा ईश्वर???
नही बाबू! नही बनना तुम्हे भी कलाकार और....मुझे भी. यूँ........ सच लिखा है शब्दों को रंग देने वालो के लिए.

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।