Sunday, October 16, 2011

ट्विटर का आंगन और यादों की पोटली {‘Trends’}


इंटरनेट पर नेटवर्क का बड़ा जाल कभी-कभी हमें मोहल्ला-टोला या कहें कस्बे की ओर जाने वाली सड़क की ओर मोड़ देता है। अजनबी से शहर में अपने लिए दोस्तों की खोज की तरह हम इस नेटवर्क में संस्कृति खोजने लगते है और ऐसे में ही बन जाता है नेटवर्क संस्कृति। एकदम अंचल की तरह, विस्तृत.. परती जमीन और उसमें जीवन की तलाश की तरह भटकते कुछ लोग। आपका कथावाचक आज इसी नेटवर्क संस्कृति का एक मोहल्ला, जिसे दुनिया जहान ट्विटर कहता है, उसकी सैर करने निकला है।
फेसबुक की तरह ट्विटर भी अपनी दुनिया बनाए हुए है। 140 शब्दों में बातों ही बातों में यह हमारे मन में अपनी उपस्थति दर्ज करा रहा है। यहां बातों को या कहे संवादों को एक चलन (ट्रेंड्स) के रुप में पेश किया जाता है, ठीक वैसे ही जैसे हम चौपालों पर महफिल सजाते हैं और बातचीत के दौर को आगे बढ़ाते हैं। इसी ट्रेंड में एक शब्द इन दिनों आपके कथावाचक के मानस में खूब उछल-कूद मचा रहा है, जिसका नाम है- #inthe90s. दरअसल यह ट्रेंड हमें 90 के दौर की दुनिया की याद दिलाता है।

यदि आप चलन-ए-ट्विटर के इस कस्बे का दौरा करेंगे तो पाएंगे कि लोग किस अंदाज में और कितनी बेबाकी से
90 के दशक की बातों को यहां रख रहे हैं। अपने मुल्क की बातों का 90 के दशक का अंदाज यहां अलग तरीके से पेश किया गया है। गंभीर मसलों के संग कुछ ऐसी बातों को आप यहां पढ़ पाएंगे, जिसे अक्सर मन के किसी कोने में हम दबाकर निकल जाते हैं,  लंबी यात्रा पर।

नरेंद्रनाथ के कुछ ट्विट्स इसी को ओर हमें ले जाते हैं। जैसा कि उनका एक ट्विट है-
90 के दशक में फैशन का स्टेटमेंट था उजले जूते और कसी हुई सफेद रंग की पेंट (#inthe90s Action ke white shoes and tight white pant was fashion statement for male..)। यकीन मानिए इसे पढ़ने के बाद आपके मन में कई यादें सिनेमाई पर्दे की तरह दौड़ने लगी होगी। फिल्मी दृश्य हो या फिर मोहल्ले का वह सबसे स्टाइलिश बंदा। अरे, अपने राजेश भैया भी तो सफेद रंग की ही पेंट पहनते थे न, एकदम कसी हुई फीटिंग और रग-रग सफेद जूता।

नरेंद्रनाथ इसी तरह का एक और ट्विट इस मोहल्ले में रखते हैं
, जिसका अंदाज हमें और भी कुछ सोचने को मजबूर करता है। इस ट्विट में वे कहते हैं- नब्बे के दशक में गणेश दूध पीया करते थे... (#inthe90s Ganesha used to drink milk...) । दरअसल यादों की दुनिया यही होती है, बस खंगालने की जरुरत होती है।

चलन-ए-ट्विटर विषय पर सी. मिशेल लिखती हैं- नब्बे के दशक में न फेसबुक था और न ट्विटर ..कैसे कटती होगी जिंदगी..। मिशेल का यह ट्विट पढ़ते वक्त हमें इंटरनेट के विभिन्न पहलूओं पर युवाओ के रुख का ख्याल आता है, इसके विभिन्न औजारों और इंटरनेट अड्डों पर युवाओं के साथ विभिन्न आयु वर्गों के लोगों की दिलचस्पी को भी समझने की जरुरत आ पड़ती है।

दरअसल ट्विटर के चलन-ए-ट्विटर कोने की सैर दुनिया के अलग अलग हिस्सों में बैठे लोगों की यादों से हमें मुलाकात करवाती है। सोचिए न, 140 शब्दों में दशकों की चर्चा यहां चुटकी में हो जाती है और हम-आप उसमें अपने हिस्से की यादों को टटोलने में जुट जाते हैं। आपका कथावाचक अंचल की ओर निकलने से पहले इंटरनेट के  इन्हीं मोहल्लों से यादों की फुलवाड़ी के लिए कुछ फूल चुनने में जुटा है ताकि उस पार के लोगों को बताया जा सके कि जिंदगी में यादों की अहमियत क्या होती है।

3 comments:

deepakkibaten said...

ट्विटर की चिडि़या की चहचहाहट सच में बड़ी प्‍यारी है। इसकी सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि सिर्फ 140 शब्‍दों में बात कहने के बावजूद कहीं से अधूरापन महसूस नहीं होता। वास्‍तव में यह क्रिएटिविटी का इम्तिहान लेती है कि कम से कम शब्‍दों में आप कैसे अपनी बात कह जाते हैं?

adhkchra said...

bro aaj pahlibar tumhara blog pada bahut achcha laga. nice nice aur very nice.

इन्दु पुरी said...

ह्म्म्म तो आप चाहते हैं मैं भी आ जाऊं वहाँ जहाँ से अब तक बची हुई हूँ हा हा हा ट्विटर पर अक्सर जाती रहती हूँ.कई लिंक्स मुझे वहीँ मिले.अजब गजब है तुम्हारी नेट की दुनिया.यहाँ हर कोई खुद इस जाल मे चला आता है अपनी मर्जी से फँसने के लिए.उसी तरह जैसे चिडियाओं की चहचहाहट नींद से जगा देने के बाद भी मन मस्तिष्क को शांत रखती है. अच्छा लिखते हो बहलिये तुम ! हा हा हा जियो