Wednesday, January 05, 2011

मैं पूर्णिया हूं, मुझे सुर्खियों से डर लगता है

मैं पूर्णिया हूं। आज देश के हर अखबार के पहले पन्ने पर एक खबर की वजह से लोग मेरे बारे में चर्चा कर रहे हैं। अपने विधायक की हत्या की वजह से मैं सुर्खियों में हूं। चार जनवरी को तो मैं हर चैनलों की हेडलाइन बन गई थी। उस दिन इंटरनेट पर खबरों की श्रेणी में सबसे अधिक मुझे ही क्लिक किया गया। मैं तो अब सुर्खियों से डरने लगी हूं। एकदम निजी वजहों के कारण विधायक राजकिशोर केशरी की हत्या हुई, इसमें राजनीति की गुंजाइश मुझे नहीं दिखती लेकिन सियासत के खिलाड़ी यहां भी शतरंज की चाल चल रहे हैं। मैं दुखी हूं। राजकिशोर की हत्या से मैं दुखी हूं, मैं तो किसी की भी असामयिक मौत पर दुखी हो जाती हूं।      एक वक्त मेरी पहचान साहित्य-संगीत को लेकर हुआ करती थी। सतीनाथ भादुड़ी, फणीश्वर नाथ रेणु की धरती हूं मैं। मेरे आंगन में शास्त्रीय संगीत की अलग-अलग विधाओं में महारत हासिल करने वाले कुमार श्यामानंद सिंह हुए लेकिन कब मेरी पहचान बदल गई, मुझे भी याद नहीं। बंदूक और बालू (रेत) के बल पर सियासत करने वालों ने मुझे हड़प लिया था लेकिन सन 2002 के बाद अपने आंगन में मेरी मौजूदगी बदलने लगी थी। मैं खुश थी कि लोग-बाग अब मुझे बाहुबलियों के लिए याद नहीं करती है। हत्याओं का दौर अब मेरे आंगन में नहीं चल रहा है लेकिन साल 2011 के शुरुआत में ही एक हत्या ने मेरे चेहरे को दागदार कर दिया, मैं डर गई हूं।
       वैसे आप इसे महज संयोग ही कह सकते हैं कि मेरे यहां चौथी बार विधायक बनने का गणित उलझन भरा है। लगातार चौथी बार विधायक बनने वाले दो लोगों की हत्याओं से मेरी इस आशंका को बल भी मिलता है। राजकिशोर केशरी से पहले चौथी बार विधायक बने अजीत सरकार की भी हत्या हो चुकी है। वर्ष 1980 में पहली बार अजीत सरकार पूर्णिया सदर से विधायक चुने गये थे। इसके बाद वर्ष 1985 में हुए चुनाव में भी उन्होंने अपना परचम लहराया था। वर्ष 1995 में एक बार फिर यहां अजीत सरकार का जादू चल गया था। लेकिन वर्ष 1998 में वो हत्या की राजनीति के शिकार हो गये। अपराधियों ने सरेशाम काली फ्लावर मिल के समीप सरकार को गोलियों से छलनी कर दिया। इसी प्रकार राजकिशोर केशरी ने वर्ष 2000 में पहली बार, फरवरी 2005 में दूसरी बार, नवंबर 2005 में तीसरी बार और 2010 में चौथी बार वो विधायक चुने गये। दोनों ही विधायक का राजनीति जीवन भी काफी मिलता-जुलता है। दोनों ने ही फर्श से अर्श तक का राजनीतिक सफर तय किया। दोनों ने ही पूर्णिया के आम लोगों के दिल में जगह बनायी थी। लंबे इंतजार के बाद जब मौका मिला तो दोनों ने ही लंबा सफर तय किया। सरकार की हत्या राजनीतिक कारणों से हुई थी। राजकिशोर केशरी की हत्या के पीछे भी सियासतदान राजनीतिक कारणों को ढूंढ़ रहे हैं इससे मैं दुखी हूं...मुझे अब सुर्खियों से डर लगने लगा है।

2 comments:

नीरज गोस्वामी said...

फणीश्वर नाथ रेणु की धरती को छोटी मोटी घटनाएँ कलुषित नहीं कर सकतीं...पूर्णिया की हमारे दिल में जो स्थान है वो इन घटनाओं से विचलित नहीं होगा...निश्चिन्त रहें.

नीरज

Satish Chandra Satyarthi said...

इस ह्त्या की गुत्थी तो सुलझनी ही चाहिए... आखिर कोइ औरत इस हद तक जाने को क्यों मजबूर हो जाती है??