जरा आप याद कीजिए बैंकों या बीमा कंपनियों के विज्ञापनों को। एचडीएफसी बैंक का विज्ञापन तो हमें बुढापे तक धन सहेजने की कला सीखाता है। शुरुआती दृश्यों में भावुक बना देने के बाद वह हमें पैसे बनाने की बात कहता है और यहीं हम लालची बन जाते हैं।
एक्सीस बैंक के एक विज्ञापन में समान से भरे घर की बात कही जा रही है। सूत्र है, यदि पैसे नहीं हैं तो बैंक का सहारा लीजिए। इस विज्ञापन की शुरुआत में एक बच्चा अपने पिता से कहता है कि अरे घर में एसी भी नहीं है, केबल भी नहीं है..। तभी पिता के मोबाइल में एसएमएस आता है कि बैंक या किसी म्यूचल फंड का सहारा लें जनाब।
इन विज्ञापनों की सबसे बडी़ खासियत यही होती है कि यह दर्शकों के नब्ज को समझता है, मसलन आपको भावुक बनने पर मजबूर कर देता है। आप लाख चाहें लेकिन इन विज्ञापनों को एक बार देखने की कोशिश जरूर ही करेंगे और बाद में यही आपको लालची बनने के लिए मजबूर करता है।
ये विज्ञापन कहते हैं कि खूब खर्च करो, पैसे लुटाओ, सामानों से घर को भर डालो...लेकिन इसी बीच यह हमें सीख भी देता रहता है कि अपने से बड़ो का सम्मान भी करो। याद कीजिए स्टेट बैंक के डेबिट कार्ड का विज्ञापन, जिसमें दो पोते दादी के लिए सामान खरीदने के लिए आपस में प्रतियोगिता करते नजर आते हैं।
6 comments:
बढिया विमर्श किया है भाई आपने मेरी मति के अनुसार से तो दोनों.
गिरींद्र अच्छा लिखा है विज्ञापनों पर एक सिरीज चलाओ इनके स्त्री विरोधी रुख पर भी कलम चलाओ मुझे ढेरों विज्ञज्ञपन याद आ रहे हैं
बढिया विमर्श किया है...अच्छी पोस्ट।
विज्ञापन वाकई भावनाओं का अद्भुत संसार रचते हैं। जहां असल चीज़ होती कि आपके दिल के तार किस तरह झनझनाए जाएं कि आप उनका सामान या सर्विस ख़रीदने को तैयार हो जाएं। क्रिएटिविटी का चरम हैं विज्ञापन। याद है, हमारा बजाज, निरमा सुपर और ओनिडा।
jadu tho chalta hi hai,shayad lalchi bana dete hai hame:),badhiya lagi post
लाजवाब है.
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