Thursday, May 21, 2009

फोनाचार

बंधु क्या आपने कभी यह शब्द सुना है-फोनाचार। मैं आपको कह दूं कि यह शब्द अनुराग कश्यप के इमोशनल अत्याचार की कड़ी में नहीं आता है। यह शब्द ऑफिस और वहां रखे बेचारे टेलीफून से जुड़ा है। कार्यालय के एक कर्मचारी के हाथों पिटते एक टेलीफून की कथा है। नायक टेलीफून है और खलनायक उसके साथ अत्याचार करने वाला कर्मचारी।

टेलीफून के बटनों (अंकों) के साथ, उसके रिसीवर के साथ बेहाया ढंग से अत्याचार करने वाला कर्मचारी ऑफिस पहुंचते ही उससे लिपट पड़ता है और ठीक उसी समय आकाशवाणी होती है- बेटा टेलीफून तेरे साथ हो रहा है अत्याचार और इसका नाम मैंने रखा है फोनाचार। बेचारा टेलीफून हतप्रभ होकर भविष्यवाणी सुनता है और एक आम नागरिक की तरह सेवा देकर भी अत्याचार सहता रहता है।

टेलीफून हैलो-हैलो सुनते, रिसीवर से दूसरे रिसीवर पर कर्मचारी द्वारा अपने किसी मित्र, या परिजनों से बातचीत को बेमन सुनता रहता है। लेकिन क्या करे कमबख्त बोल नहीं पाता है। कर्मचारी ऑफिस आते ही पहला फोन शायद अपने घर करता है। बीवी को डांटने के अंदाज में कहता है- कहां हो, क्या कर रही हो......अपना टेलीफून यह जानता है कि कर्मचारी की बीवी घर पर ही, वह बेवजह शक कर रहा है लेकिन वह क्या करे। वह तो मात्र माध्यम है, उसकी नियती तो बस फोनाचार सहने की है।

फिर कर्मचारी काम के बीच किसी दूसरे को फोन करता है। अभी वह डांट नहीं रहा है, हंस रहा है। लेकिन हंसना भी उसका दिखावा प्रतीत होता है। टेलीफून जानता है कि जो व्यक्ति उसका प्रयोग कर रहा है उसकी हंसी बनावटी है, ठीक वैसे ही जैसे बड़ी-बड़ी पार्टियों में लोग एक दूसरे से कहते हैं- हॉय राज, कैसे हो........हाहाहाह. वाह मजा आ गया....।

इन सब अत्य़ाचारों को एकतरफा सहता हुआ काले डब्बे का टेलीफून एक दिन एकाकक रूद्र रूप धारण कर लेता है। कहता है, बस अब बहुत हो गया, मैं आज खुद पर होने वाले फोनाचार का जवाब देकर ही रहूंगा। टेलीफून खुद ही डायल करना शुरू करता है, ठीक वैसे ही जैसे अपने ही दिल पर वह छुरी चला रहा हो। पहला फोन कर्माचारी की बीवी को करता है और कहता है कि आपके पतिदेव ऑफिस में काम से अधिक मेरे साथ समय गुजारते हैं। मेरे हाथों (रिसीवर) को हमेशा अपने हाथों में थामे रहते हैं। पत्नी गुस्सा हो जाती है, आखिर पति देव बगल में ही जो बैठे हैं।

फिर टेलीफून कर्मचारी के दोस्त को फोन करता है और कहता है, मुर्ख, तू अपने दोस्त पर विश्वास करता है। वह तुम्हें नहीं हमेशा मुझसे लगा रहता है.......।

इस प्रकार खुद पर होने वाले अत्याचार का आखिर टेलीफून ने बदला ले ही लिया और फोनाचार के लिए अदालती चक्कर लगाने की सोचा भी नहीं। आखिर उसने खुद ही कदम उठाने का फैसला जो लिया था।

4 comments:

निर्मला कपिला said...

ab to apse darr kar comment dena hoga kya pata kal ko ise blogachar kehane lagen

विनीत कुमार said...

हम सब टेलीफून है़ं,अपने अपने स्तर पर अत्याचार को सहते हुए लेकिन टेलीफून की तरह हम भी एक दिन बदला लेंगे।.

श्यामल सुमन said...

शब्द नया बिल्कुल मिला जो है फोनाचार।
अनाचार के संग ही फोन पे अत्याचार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

डॉ .अनुराग said...

एक ओर फोनाचार होता है जी.....जब आप बार बार अच्छा कहे......बीच में गेप ले....साँस छोडे....यानि हिंटयाये .पर सामने वाला छोडे नहीं....चलता रहे लगातार........