चलो गांव को शहर बनाते हैं,
शहरी उम्मीदों को साथ लिए
चलो गांव की ओर उसे शहर बनाते हैं।
सपने जगाते शहर से कुछ रोशनी उधार लेकर
जगमगाएंगे गांव को और उसे बनाएंगे एक अलग शहर
आपाधापी लाएंगे, बदलेंगे लोगों की सोच
चलो गांव को शहर बनाते हैं।
कई गांवों को गुड़गांव बनाने
लोगों को तेज चलने और प्रोफेशनल बनाने
चलो गांव को शहर बनाते हैं।
सोने वाले शहर से आगे बढ़कर
नींद में भी जागते नए सहर के लिए
चलो गांव को शहर बनाते हैं।
खोने की जिद में निराश गावों को
यह बताने कि पाना भी होता है
चलो गांव को शहर बनाते हैं।
2 comments:
अच्छी सोच वाली रचना। लेकिन मुनव्वर राणा साहब कहते हैं कि-
तुम्हारे शहर में मैयत को सभी काँधा नहीं देते।
हमारे गाँव में छप्पर भी सभी मिलकर उठते हैं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
गिरींद्र जानकर अच्छा लगा कि गुड़गांव को आप आज भी गांव मानते हैं। आप के इस भोलेपन पर मर जाने को जी चाहता है
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