इन दिनों बीबीसी हिंदी डॉट कॉम पर संजीव श्रीवास्तव और वुसतुल्लाह ख़ान के ब्लॉग को पढ़ता हूं। दोनों ही देश में हो रहे लोकसभा चुनाव पर खरी-खरी लिख रहे हैं। खान साब पाकिस्तान में बीबीसी के जाने माने रिपोर्टर हैं और इन दिनों भारत आए हुए हैं। उन्होंने बीबीसी हिंदी ब्लॉग के नए पोस्ट में भारतीय समाचर चैनलों पर टिप्पणी की है। आप भी पढ़िए-बीबीसी से साभार, खान साब की नई पोस्ट दुश्मनी फिर कभी निकालिएगा
पिछले एक हफ़्ते से भारत में हूँ और शाम को कामकाज से फ़ारिग़ होने के बाद सिर्फ़ स्थानीय टेलीविज़न न्यूज़ चैनल देखता हूँ। मुंबई हमलों के पाँच महीने गुज़र जाने के बाद भी शायद ही कोई ऐसा चैनल हो जिस पर कम से कम दो घंटे पाकिस्तान का ज़िक्र नहीं होता हो.
मगर ये ज़िक्र तालेबान और दहशतगर्दी से शुरू होता है और उसी पर ख़त्म हो जाता है और ख़ुलासा ये होता है कि तालेबान, पाकिस्तान और दहशतगर्दी दरअसल एक ही सिक्के के तीन रुख़ हैं।
बहुत ही कम लोग ये स्वीकार करने को तैयार हैं कि आज का पाकिस्तान दहशतगर्दी के ख़ंजर से उस बुरी तरह निढाल है कि उसका राष्ट्रीय ढ़ांचा तेज़ी से ख़ून बहने के सबब ख़तरनाक रफ़्तार से (ग़शी) बेहोशी की हालत में जा रहा है। भारतीय मीडिया और उसके हवाले से ज़्यादातर स्थानीय लोगों का यही रवैया है कि पाकिस्तान की ही लगाई हुई आग है. ---अब वो भुगते--- हमें क्या----.
ये बिल्कुल वही ज़हनी रवैया है जिसका पाकिस्तान अस्सी और नब्बे के दशक में शिकार हुआ था। --- .यानी ये अफ़ग़ानिस्तान की आग है.--- हमें क्या.--- मुजाहिदीन जानें, रूसी जाने या ख़ुदा जाने.--- हमें तो अफ़ग़ानिस्तान ने हमेशा दुश्मनी का ही तोहफ़ा दिया है--- अब भुगते----
ये कश्मीर की आग है--- भारत जाने --- कश्मीरी जानें--- वहां घुसने और लड़ने वाले जानें॥ हमें क्या--- वैसे भी साठ बरस में भारत ने हमें क्या दिया है सिवाए नुक़सान और दुश्मनी के--- अब भुगते कश्मीर को----
उस ज़माने में बहुत ही कम पाकिस्तानियों को एहसास था कि " यह तीर वो है कि जो लौट कर भी आता है।" इसलिए हम सब ने अपनी ज़िदगियों में ही देख लिया कि अफ़ग़ान मुजाहिदीन कैसे अफ़ग़ान तालेबान बने और फिर कैसे पाकिस्तानी तालेबान में तबदील हो गए. और कश्मीर में लड़कर लौटने वाले कैसे हाथों से निकल गए.
अब हालत यह है कि दो तिहाई पाकिस्तान किसी न किसी क़िस्म के फ़िरक़वाराना, क़ौम परस्ताना या मज़हबी शिद्दत पसंदाना ख़तरे में मुबतला है। और पहली बार कई सरों वाला ये ख़तरा किसी पाकिस्तानी हुकूमत को नहीं बल्कि राष्ट्र के वजूद और संप्रभुता को है.
ये बात अगर दिल्ली में किसी से की जाए तो आमतौर पर जवाब मिलता है कि हमें पाकिस्तान के हालात पर चिंता है और हमदर्दी है मगर मुंबई--- मगर कश्मीर--- कोई ये समझने को तैयार नहीं है कि इस वक़्त पाकिस्तानी राष्ट्र को जो ख़तरा है उसने मुल्क को ऐटमी धातु से बने हुए एक ऐसे जार में बदल दिया है कि अगर ये जार टूटा तो तेज़ाब दूर-दूर तक फैलेगा।
बहुत कम लोग ये समझ पा रहे हैं कि अफ़गा़निस्तान से लगने वाला जो वायरस इस वक़्त पाकिस्तान को बेदम कर रहा है वो एक छूत वाला वायरस है जिसके आगे सरहदें बेमानी हैं। मुँह पर हिफ़ाज़ती नक़ाब डालने, ख़ुद को अपने-अपने फ़ायदे के क्वारंटीन में बंद करने या मरीज़ को उसके हाल पर छोड़ने भागने से वायरस पीछा नहीं छोड़ेगा. इसलिए पाकिस्तानी राष्ट्र के वजूद को अब पाकिस्तान से ज़्यादा आलमी बिरादरी की ज़रूरत है.
ये वक़्त मरीज़ को उसकी संगीन ग़लतियाँ याद दिलाने या धमकियों और डांटडपट का नहीं है बल्कि मदद की ठंढ़ी पट्टियां रखने और अपने पर यक़ीन बहाल करने वाले ताक़तवर कैपसूल खिलाने का वक़्त है----
इस छूत के मर्ज़ से निपटना किसी एक के बस की बात नहीं. या तो अपना पड़ोसी बदल लें अगर नहीं तो फिर बचपना छोड़िए और बड़े हो जाइए. पुराने बदले चुकाने के लिए ज़िंदगी पड़ी है मियाँ-----
4 comments:
खान साहब से शत-प्रतिशत सहमत! भारत में धार्मिक गंदगी को रोका नहीं गया, तो यहाँ भी तालिबान बनते देर नहीं लगेगी।
पाकिस्तान को बार बार कोसने से अच्छा होगा..की हम हमारा घर सुरक्षित करें...
आमीन।
गिरीन्द्र भाई,
खान साहब की "खरी खरी" ये एक ऐसा सच है जिससे आज हमारे क्या नेता, क्या सरकारें, क्या प्रेस, क्या इलेक्ट्रौनिक मीडिया,
सभी आँखे मूंदे बैठे हैं लेकिन, यदि शुतुरमुर्ग आफत को देखकर रेत में अपना सर छुपा कर बैठ जाए तो क्या आफत टल जाती है ? कभी नहीं. हमारे ब्लौगर भाई लोग भी बस एक लाइन का कमेन्ट दे कर या फिर लेख की तारीफ में दो लाइनें लिख कर अपने पिंड छुड़ा लेते हैं. दिल को खुश करने के तो और भी बहुत से तरीके हैं. पोस्ट लिखने वाले की तारीफ भर करदेने से ब्लौगर को क्या हासिल होगा, समझ से पर है. अरे भाई, ब्लौग भी मीडिया की तरह एक शक्तीशाली माध्यम है इसे समझने की जरूरत है. अपने विचारों से जनमत इकठ्ठा करना और देश के बहरे शासकों तक अपनी आवाज पहुचाना भी इसका मकसद होना चाहिए.
पाकिस्तान में आज जो हो रहा है अगर इसकी अनदेखी हम इसी तरह करते रहे तो निश्चित जानिए कि हमारी आने वाली संताने इसका खामियाजा जरूर भुगतेंगी और हो सकता है कि हमें भी अपने इस निकम्मेपन पर एक दिन पछतावा हो लेकिन कहावत है कि "अब पछताए होत क्या जब चिडियाँ चुग गयी खेत". तो इससे पहले कि बहुत देर हो जाए हम सबको जागने की जरूरत है और दूसरों को भी जगाने की जरूरत है.
शेष फिर !
आपका
श्रीकृष्ण वर्मा
team-skv.blogspot.com
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