यह पोस्ट पंडित जसराज के करोड़ों दीवानों में एक ७ साल के अंकुर के लिए है। जिसके लिए जसराज केवल जसराज नहीं हैं, एक डिवाइन टच भी हैं। आपने यहां पहले भी अंकुर के बारे में पढ़ा है। आज उसके गुरु बाबा (पंडित जसराज) को होली के रंग में पढिए और रंग में डूब जाइए...नजीर अकबराबादी कहते हैं- " कुछ तबले खड़कें रंग भरे, कुछ घुँघरू ताल छनकते हों, तब देख बहारें होली की ।"
गिरीन्द्र
जसराज से अपनी मुलाकात तीन बार हुई है, यहीं दिल्ली में। उनकी एक झलक से ही मुझे संतुष्टि मिलती है और खासकर जब वे बोलते हैं -जय हो। उनका यह अंदाज ही उन्हें सब से अलग बनाता है। शास्त्रीय संगीत के इस दिग्गज के लिए होली का पर्व कई मायनों में महत्वपूर्ण है। गत रविवार को राजस्थान पत्रिका पलट रहा था। उसमें डॉ. राजेश कुमार व्यास की एक रिपोर्ट पढ़ी- होली के खिलैया..............।
रपट पढ़ने पर पता चला कि वे जय हो क्यों बोलते हैं। दरअसल उनके लिए इस शब्द के कई अर्थ है, उसमें एक है- कहिए, आपको क्या पूछना है। होली पर उनका कहना है कि होली खुशियों का त्योहार है। रंग -बिरंगी खुशियां लिए आता है। पूरे साल के लिए हमें अपने रंग में रंगा जाता है। हमारी होली की यादें इतनी है कि सुनाऊंगा तो न आपका मन सुनने से भरेगा और न हमारा मन कहने से भरेगा।
पंडितजी कहते हैं कि हमारे लिए होली सदा से ही शुभ रही है। अपने बेटे सारंगदेव के बारे में वे कहते हैं- बहू सरिता ..हमारी गृहलक्ष्मी होली को ही मिली हमसे। मजेदार ढंग से वे बताते जा रहे हैं- मुंबई में अपने निवास राजकमल पर हर वर्ष हम होली मनाते हैं। सरिता भी एक बार हमारे संग होली खेलने आई, हमने होली के दिन ही सारंगदेव के लिए उसे सदा के लिए अपनी बहूरानी बना लिया........तो दिया न हमें होली ने गृहलक्ष्मी।
पंडितजी होली की यादें कोलकाता से जोड़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि किसप्रकार वहां कला प्रेमी मुकुंद लाठ की पत्नी नीरजा लाठ के साथ उन्होंने होली खेली थी। उस बार नीरजा लाठ ने उनसे कहा था- छि कितने गंदे हैं आप। पंडित जी यादों में खोते बताते हैं कि मुकुंद लाठ की तब नई-नई शादी हुई थी, शादी के बाद की होली में वे भी कोलकाता में थे लाठ के यहां। होली खेलते हुए उन्होंने गाय का गोबर नीरजा के मुंह में लगा दिया तब उन्होंने कहा- पंडितजी , छि..आप कितने गंदे हैं.............।
पंडितजी कहते हैं कि हरा, लाल, गुलाबी, सभी रंग ..एक दूसरे में मिलता है तो और भी खिलता है. तो उसका मजा कुछ और ही है। ये कहते हुए गाने लगते हैं - होली के खिलैया..होली के खिलैया.............।
पंडित जी को सुनने के बाद मेरा भी मन रंगने का करता है, खुद भी और आपको भी। और अब मेरा भी मन करता है आपको कुछ कहूं, सुनिएगा तो सुनिए...अरे --रे--पढिए मेरी नहीं है एनडीटीवी वाले रवीश कुमार की नई-नई कृति, मैं इसे द्विवेणी कहता हूं । जैसा कि आपने गुलजार को त्रिवेणी में पढ़ा होगा। तो गौर फरमाइए॥होली के मुड में-
चंपई हो जाओ या गुलाबी हो जाओ.
बड़े सादे हो तुम, कुछ रंगीन हो जाओ।
(रवीश कुमार की द्विवेणी, उनके फेसबुक से साभार)
4 comments:
पंडित जी के बारे मे पढ़कर अच्छा लगा ।
और हाँ आपको और आपके परिवार को होली मुबारक ।
achhi prastuti hai.
achhi prastuti hai.
बहुत अच्छा लगा ... होली की ढेरो शुभकामनाएं।
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