Sunday, March 29, 2009

बड़ी दिनों से इक हसरत पाले हूं

बड़ी दिनों से इक हसरत पाले हूं
जबसे नौकरी शुरू की, तबसे पाले हूं।
हसरतें तो कई हैं, पर ये हसरत मेरी अपनी है
मैं इक दिन अपने लिए चाहता हूं
गुलजार साब की जुबां में
बड़ी हसरत है पूरा एक दिन
इक बार मैं अपने लिए रख लूँ
मेरा मन है वो इक दिन
अपने लिए खर्च कर दूं
अपने लोगों के लिए खर्च कर दूं॥
अब हसरतों को सपनों में नहीं
हकीकत में पूरा होते देखना चाहता हूं....

3 comments:

संगीता पुरी said...

अब हसरतों को सपनों में नहीं
हकीकत में पूरा होते देखना चाहता हूं....
बहुत बढिया लिखा है ...

आशीष कुमार 'अंशु' said...

बड़ी हसरत है पूरा एक दिन
इक बार मैं अपने लिए रख लूँ

सच लिखा girindra bhaai

विनीत कुमार said...

पूरा दिन होता है अपने हाथों में
चाहे जैसे चाहे खर्च दूं
संस्कारों में बंधा हूं
लगता है खर्च कर दूं अपने पर
पूरा का पूरा दिन
ख्याल आता है
अय्याशी हो जाएगी।.