Tuesday, March 31, 2009

अब खिड़कियां पहले की तरह नहीं होती

अब खिड़कियां पहले की तरह नहीं होती
अब उसमें लोहे के ग्रील लगाए जाते हैं।


गांव की खिड़कियां शहरों की खिड़कियों से अलग होती है
वहां शहरों की तरह लोहे खिड़कियों में चिपके नहीं दिखते।


खिड़कियों का आकार भी यहां अलग दिखता है
लगता है ये भी कह रही है तुम मुझे ऐसे क्यों देखते हो ?

अब खिड़कियां पहले की तरह नहीं होती
दो पाटों में बंटी खिड़कियां गांव में ही दिखती है
यहां तो खिड़कियां मोटे परदों में बंटी होती है।

1 comment:

विनीत कुमार said...

गांव की खिड़कियां झांकने या
देखने के लिए होती हैं
शहर की खिड़कियां
न तो झांकने के लिेए होती है
न देखने के लिए होती हैं,
मोटे पर्दे से मुंह बंद कर दी गयी
खिड़कियां
ये बताने के लिए होती है कि
घर के अंदर की औकात क्या है।