आंचलिक शब्दों से मेल-मिलाप का काम जारी है। इस बार हम बातचीत करेंगे पटुआ और संठी को लेकर। पटुआ, जिसे आप पटसन या जूट के नाम से जानते हैं, लेकिन बिहार और पश्चिम बंगाल क कुछ हिस्सों में इसे पटुआ ही कहते हैं। एक समय में कोसी के इलाके में पटुआ की खेती सबसे अधिक हुआ करती थी और इसे नकदी फसल कहा जाता था लेकिन अब गांवों के नहरों में पानी के अभाव के कारण किसान पटुआ की खेती से मुंह मोड़ने लगे हैं।
पटुआ से ही जुड़ा है संठी। संठी से ही पटुआ का निकाला जाता है। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं- खेत में जब पटुआ के पौधे बड़े हो जाते हैं तो उसे काटकर पानी में फेंक दिया जाता है। पानी में उसे तबतक रखा जाता है, जबतक वह पूरी तरह मुलायम न हो जाए। इसके बाद उसमें से रेशा (जूट कहें य पटसन हमतो पटुआ कहेंगे) निकाला जाता है और शेष बचती है संठी। रेशा को धूप में सुखाया जाता है और इस प्रकार बनता है पटुआ।
संठी की तमाम तरह की उपयोगिताएं हैं। इसका काम आग जलाने के लिए भी किया जाता है। कोसी के इलाके में संठी से घर भी बनाए जाते हैं। हर घर के सामने संठी का पहाड़ नजर आता था और बांस की बल्लियों पर पटुआ को सुखाया जाता था। हमें याद आता बचपन , जब इन संठियों पर तितलियां बैठने आती थी और हम उसे पकड़ने के लिए दौड़ पड़ते थे लेकिन संठी इतनी नाजुक होती है कि ज्यादा बल पड़ने पर ही वह टूट जाती है।
संठी से सिगरेट का भी मजा लिया करते थे, किंग साइज सिगरेट की तरह उसे जलाकर लंबी कश लेने का भी गजब का अनुभव है। वैसे यदि आपने भी पटुआ की खेती देखी है तो पटुआ का साग भी जरूर खाया होगा, दरअसल पटुआ के पौधे जब छोटे होते हैं तो उसकी पत्तियां तोड़ी जाती है, जिसका साग बनता है। दोस्तों सचमुच कमाल का होता है पटुआ का साग।
6 comments:
कमाल की आंचलिकता, कमाल की रपट.कैसे कहूं शुक्रिया.
जमाए रहो,एक-एक शब्द के साथ आंचलिकता के प्रति जिद्दी लगाव जान पड़ता है।
वाह !!! आनंद आ गया.....मैं तो पटुआ संठी देखकर ही रुक गयी,बिना पढ़े आगे निकलना संभव न रहा...
बहुत बचपन में पटुआ का साग खाया था....पता नहीं फिर कभी खाने का अवसर मिलेगा या नहीं...गाँव में जो मटर का साग खाया था,उसका स्वाद आज भी मुंह में बसा हुआ है...पर यहाँ तो यह सब दुर्लभ है....तरसते ही रह जाना पड़ता है इन सब के लिए....
बड़ा ही अच्छा काम कर रहे हैं आप आंचलिक शब्दों से सबको परिचित कराकर.......
संठी का उपयोग दीपावली की शाम हुक्का-पाति खेलने में किया जाता है। कई इलाके में इसे सनसनाठी भी कहा जाता है। और भी बाते हैं।
पटुआ तो ठीक संठी को हमारे हमारे तिरहुत में सिंठी भी कहते हैं. कोसी का अनुभव तो ठीक है. भाई, पिछले सितंबर में जब सुपौल गया था तब देखा कि कैसे लोगों के डुबोए पटुए उनके आंखों के सामने सड़ के रेशाहीन हो गए थे.
बहुत खूब.
गिरीन्द्र जी बढ़िया लिखा है आपने...लेकिन साग वाला पटुआ आ सन वाला पटुआ एकै नहीं होइत होइत छै शायद....की ?
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