Wednesday, January 21, 2009

शास्त्रीय संगीत और अंकुर


संगीत की तरफ रूझान हमेशा रहा लेकिन दुख हमेशा रहेगा कि शास्त्रीय संगीत के व्याकरण को कभी समझ नहीं सका, लेकिन जब कभी भी मौका मिलता है तो शास्त्रीय संगीत कार्यक्रमों में जरूर पहुंचता हूं। पंडित जसराज को सुनकर एक अजीब ही सुख मिलता है। रेणु के शब्दों में कहूं तो देहातीत सुख का अनुभव करता हूं और मन सा-रे-गा-मा.......के धुनों और न जाने कितने रागों में खो जाता है।

मुझे अभी एक छोटे बच्चे की याद आ रही है जो महज सात साल का है लेकिन रागों पर उसकी पकड़ देखकर हैरान हो जाता हूं। तानपुरा पर राग छेड़ते उसे देखने का नहीं बल्कि महसूस करने का मन करता है। पांच वर्ष की अवस्था से ही यह बच्चा शास्त्रीय संगीत में रचने-बसने लगा था।

बच्चे से खास लगाव के कारण कई हैं। मुझे इसका जन्म याद है। पूर्णिया में मेरे एक भाईजी हैं- अमित भाईजी। मैं जिस लड़के की बात कर रहा हूं, वह भाईजी का ही बेटा है। उसके जन्म के कुछ महीने बाद मैं और भाईजी उसे लेने दरभंगा गए थे। शायद 1999 या 2000 की बात कर रहा हूं। दरभंगा में नरगौना पैलेस है। दरभंगा महाराज की बड़ी-बड़ी हवेलियों का एक यह भी हिस्सा है, जो अब विश्वविद्यालय का हिस्सा है। इसी के कैंपस में कहीं भाईजी के ससुर रहा करते थे। उस वक्त वे विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के अध्यक्ष हुआ करते थे।

हम दरभंगा पहुंचे, अपने भतीजे साहेब को लेने। तब मैं 12वीं में था। क्या पता था यह लड़का ऐसा नायाब निकलेगा जनाब। अंकुर नाम दिया गया बच्चे का। हमने उसे फर्श पर लेटते, घुलटते और फिर चलते देखा है और अब तानपुरा, तबला, हारमोनियम पर राग छेड़ते देखता हूं तो सच कहूं तो कुछ पलों के लिए खो जाता हूं। दरभंगा से पूर्णिया जाते समय हम नौगछिया के पास शायद खाने के लिए रूके थे। मुझे अभी भी याद है छोटा सा अंकुर भौजी की गोद में टूक-टूक हमें देख रहा था और आज जब वह ख्याल राग में बंदिशे गाता है तो मन के साथ तन भी पिघलने जैसे लगता है। (ख्याल, का जिक्र इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मुझे भी इसे सुनने में आनंद मिलता है।)

उम्र महज सात साल लेकिन कई रागों पर समान पकड़ देखकर कोई भी अचंभित हो सकता है। पहली बार शायद चार या पांच वर्ष की अवस्था में ही जनाब ने पहला स्टेज कार्यक्रम पेश किया था। मैंने उसे पहली बार स्टेज पर ही गाते देखा।
एक और कहानी जुड़ी है अंकुर के साथ। उसे कंप्यूटर के साथ-साथ पंडित जसराज से लगाव है। वह पंडित जी को बाबा कहता है (पता नहीं क्यों?)। उनसे बनारस में एक-दो दफे मिला भी है और उन्हें अपना जलवा भी दिखाया है। उसके कंप्यूटर के डेस्कटॉप पर आपको पंडित जी के तमाम गाने सुनने को मिल जाएंगे, वीडियो के साथ।

हम जब खबरों को लेकर काम करते हैं तो ऐसी बातों केवल महानगरों तक ही सीमित कर देते हैं।

मुझे याद है, दो वर्ष पूर्व राजधानी में एक कार्यक्रम के दौरान शास्त्रीय संगीत के दिग्गजों का जमावड़ा हुआ था। दरअसल एक बडे़ तबला वादक के पोते की पहली स्टेज प्रस्तुति होने वाली थी। मैं इन बातों का विरोधी नहीं हूं, बस इच्छा यही रहती है कि अंकुर और न जाने ऐसे कितने होनहारों को हम प्रकाश में लाएं, जो महानगरों मे नहीं बल्कि पूर्णिया और अन्य शहरों में रह रहे हैं। शायद इससे तस्वीर जरूर बदलेगी और शास्त्रीय संगीत को तथाकथित छोटे शहरों में भी लोकप्रियता मिलेगी।

(छोटे शहर की उत्पति शायद महानगरों की डिक्शनरी से हुई है। इसके बारे में फिर कभी।)

8 comments:

Udan Tashtari said...

शायद कभी हो जाये छोटे शहरों में भी लोकप्रिय..अच्छा आलेख.

Anonymous said...

देहातीत यानी
देह का अतीत
देहाती का विस्‍तार।

ख्‍याल
आपके भी
बहुत अच्‍छे हैं।

अनुभव
आपके तो
बिल्‍कुल सच्‍चे हैं।

सब
अपने
लगते हैं।

Anonymous said...

गुड पोस्ट भाई. यह सच है की हम महानगरों में ही खोए रहते हैं. जबके सच है की यहाँ से कोसों दूर भी कई उभरते कलाकार हैं. हमे उन्हें प्रकाश में लाना होगा.

शुक्रिया एक सार्थक पोस्ट के लिए

आनंद

Anonymous said...

कभी अंकुर को यहाँ लाओ यार, हम भी सुने, नही तो उसका विडियो पोस्ट करो.

रश्मि

Unknown said...

Excellent points Pankaj. We need to create some forum where talents from small towns can be given oppourtunity to perform with well knowned artists. I think people from media and some other society can come together can create this. Lets create some forum and invite people to join and take this forward.

Regards,
Vineet Jha

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

शुक्रिया भाईजी, यहां आने के लिए। आपके सवालों से इत्तेफाक रखता हूं. और इसी कारण इन सवालों को हम यहां उठा रहे हैं। हम एक फोरम बनाने क पक्षधर हैं और इस सिलिसले में प्रयास कर भी रहे हैं ताकि हमारी आवाज दूर तलक जाए।

Anonymous said...

Dear Pankaj,

Just now, I have seen you blog. As I was looking for some old id number I found one of your email and address of your blog.

I could not resist myself to write you immediately. First of all, I congratulate you for sustaining its intersest and that too in the mediaum through which you can reach maximum people. The latest one, regarding promotion of artists from country side, is really meaningful. Keep it up.

Also write on seasonality and culture of our areas, which is linked with day do day life of our people.

How are you in Delhi and your progress on professional front? How is evrybody- our relatives and commom aquintance?

Trust this mail of maine will find you in best of spirit and health.

Keep in touch.

Will all the best wishes,

Nirbhay

Ishwaranand Singh said...

Yadi "honhaar birwaan ke hot chikne paat" kahaawat satyataa par aadharit hai to Ankur se hum ek bade sundar vriksha ki parikalpana kar sakte hain.Duwa hai uparwale se ki uske sapnon ko saakar hone ka mauka den. Girindraji ise prakash me lane ke liye aap bhi prashansha ke patra hain. Ishwaranand