राजस्थान के अलवर जिले में स्थित हजूरी गेट की मलिन बस्ती में रहने वाली 55 वर्षीय ललिता ने बीते रविवार को जब पहली बार स्थानीय जगन्नाथ मंदिर में कदम रखा तो उनकी आंखें भर गई।
कभी सिर पर मैला ढोने वाली ललिता को इससे पहले अछूत मानकर मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता था।ललिता ने रविवार को स्थानीय जगन्नाथ मंदिर में हजूरी गेट की बस्तियों में रहने वाली 50 से अधिक महिलाओं के साथ पूजा-अर्चना की और फिर समाज के सभी वर्गो के लोगों के साथ बैठकर भोजन भी किया।
ललिता ने कहा, "मैंने जीवन में पहली बार मंदिर में प्रवेश किया। मैं इस दिन को कभी भूल नहीं सकती। अब तो मैं रोज सुबह मंदिर आऊंगी और पूजा-पाठ करुं गी।"अलवर में सामाजिक मेल-मिलाप को लेकर उठाए गए इस कदम की चर्चा हजूरी गेट के अलावा शहर के अन्य हिस्सों में भी सुनाई दी, समाज के हर तबके के लोगों ने हजूरी गेट पहुंचकर बस्तियों में रहने वाले लोगों के साथ मिलकर भोजन भी किया।
अलवर के प्रसिद्ध किले के ठीक सामने में स्थित हजूरी गेट में बड़ी संख्या में मैला ढोने वाले लोग रहते हैं। हालांकि इसमें से अधिकांश लोग अब इस काम को छोड़कर अन्य कार्यो में जुट गए हैं। इस बस्ती की कुल आबादी 3,200 है। बस्ती की अधिकांश महिलाएं अब सिलाई-कढ़ाई और पापड़-अचार आदि बनाने का काम करती हैं लेकिन इन सभी को अभी तक केवल यही दुख सता रहा था कि इन्हें मंदिरों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं मिलती है।
आखिरकार रविवार को इन सभी को कई पीढ़ियों के बाद मंदिर में प्रवेश करने का इनका अपना ही अधिकार मिल गया।हजूरी गेट की यह बस्ती देश के अन्य मलिन बस्तियों से अलग है। बस्ती में आपको पक्के मकान ही मिलेंगे। पानी के बहाव को लेकर भी यहां अच्छी व्यवस्था की गई है।
बस्ती में कई घरों में लोग सुअर पालने का काम करते हैं लेकिन यहां सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। ममता नाम की एक महिला ने बताया कि बस्ती के सभी लोग सफाई के प्रति विशेष जागरूक रहते हैं। ममता ने कहा कि बस्ती में सब कुछ ठीक है लेकिन बच्चों को पढ़ाई के लिए दूर स्थित विद्यालय में जाना पड़ता है।
गैर सरकारी संगठन 'सुलभ इंटरनेशनल' और स्वंयसेवी संस्था 'नई दिशा' के कार्यकर्ता वर्ष 2002 से ही हजूरी गेट की बस्तियों में रहने वाले लोगों को मैला ढोने के काम से मुक्ति दिलाने में सहायता कर रहे हैं। 'नई दिशा' महिलाओं को जागरूक बनाने और स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाने में भी सहायता कर रही है।
हाल ही में बस्ती की तकरीबन 25 महिलाओं को संयुक्त राष्ट्र में सम्मानित भी किया गया था। 'नई दिशा' में फिलहाल 27 महिलाओं को रोजगार परक कार्यक्रमों में प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
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3 comments:
कुछ तो बदला!!
समानता के अधिकारों की बात करने वाले तथाकथित नेता व समाजसेवी अब तक कहां थे ? जो आजादी के इतने सालों बाद इन्हें यह अवसर अब मिला। बात विचारणीय है, किन्तु इनके लिये यह भी एक उपलब्धि है।
देर आए दुरुस्त आए !
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