Friday, November 21, 2008

२५ एकड़ का भूखंड, जो सदियों से हिंदू- मुस्लिम भाई-भाई का पाठ पढ़ा रहा है..


आज मैं आपको अपने जिले की सैर कराता हूं और हां अपने गांव के आसपास भी ले जा रहा हूं। आप तैयार हैं न। हम अपने यहां सदभाव का पाठ पढ़ाते हैं क्योंकि हमें यह विरासत में मिला है। तो चलें हमारे साथ-
गिरीन्द्र



पूर्णिया जिले के श्रीनगर प्रखंड क्षेत्र स्थित लगभग 25 एकड़ का एक भूखंड सदियों से हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई का खुला पाठ पढ़ा रहा है। रैनगाह के नाम से चर्चित इस भूखंड की खासियत इससे जुड़ी दोनों समुदायों की आस्था है।

इस भूखंड पर जहां हर वर्ष भादो महीने में कृष्णाष्टमी का प्रसिद्ध मेला लगता है वहीं मुस्लिम समुदाय द्वारा मुहर्रम का पहलाम भी यही किया जाता है। सनातनी सामंजस्य में कोई दरार न हो इसके लिए दोनों समुदाय के लोग खुद तत्पर रहते है। फलाफल ताजिये की अगुवाई जहां हिन्दू करते है वहीं मुस्लिम समुदाय पर मेला के शांतिपूर्ण संचालन का दायित्व होता है।

रैनगाह की खासियत से एक या दो नहीं बल्कि प्रखंड के तकरीबन एक दर्जन गांव प्रभावित है। यही कारण है कि हिन्दू-मुस्लिम यदा-कदा आपसी मामले भी इसी भूखंड पर बैठकर सुलझाते है। खोखा उत्तर व खोखा दक्षिण पंचायत की सीमा रेखा पर मौजूद इस भूखंड की साफ-सफाई भी दोनों समुदाय के लोग मिल-जुलकर करते है।

हाल में कृष्ण मंदिर को संवारने का कार्य भी शुरु हुआ है। फरयानी गांव के 55 वर्षीय मुख्तार आलम, जिनके पूर्वज ही कभी इस भूखंड के स्वामी हुआ करते थे, बताते है कि उन्होंने जब से होश संभाला है, यहां मेला के साथ पहलाम भी देखते आ रहे है। उन्होंने कहा कि उन लोगों के लिए यह फक्र की बात है कि यह भूखंड सदा से धर्म व जाति का विभेद पाटता रहा है।

श्रीनगर वासी जाहिद खां के मुताबिक पहलाम के लिए जब वहां हजारों की भीड़ जमा होती है, तो यह गिनना मुश्किल हो जाता है कि इसमें कितने हिन्दू भाई शामिल है। जाहिद के मुताबिक पहलाम में पानी व शर्बत की व्यवस्था हिन्दू भाईयों द्वारा काफी पहले से की जाती रही है।

कुछ ऐसे ही विचार खोखा उत्तर के पंचायत समिति सदस्य मंटू पाठक, श्रीनगर के कन्हैया लाल झा व अजय कांत ठाकुर के भी है। उन्होंने बताया कि कृष्णाष्टमी के मौके पर उन लोगों को इस बात का आज तक तनिक भी एहसास नहीं हुआ है कि यहां पहलाम भी होता है।

कृष्णाष्टमी के मौके पर जुटने वाली दस गांवों की भीड़ को नियंत्रित करने का दायित्व मुस्लिम भाई ही निभाते है। इतना ही नहीं मेला में किसी तरह की बदइंतजामी न हो, इसके लिए भी मुस्लिम समुदाय के बुजुर्ग खुद तत्पर रहते है। 70 वर्षीय मो। वाज व 80 वर्षीय सत्यनारायण झा बताते है कि खास मौके पर इसी भूखंड पर बैठकर दोनों समुदाय आपसी मसला सुलझाते है।

बहरहाल प्रखंड क्षेत्र स्थित फरयानी, उफरैल, फरकिया, खरकट्टा, रानीबाड़ी, चनका, नवटोलिया, खोखा, बानसर, जगेली, संतनगर, श्रीनगर, बालू टोल, पेकपाड़ा, केला बाड़ी व मधुसूदननगर सहित दर्जन से उपर गांवों को यह भूखंड सदभाव के मजबूत डोर में बांध रखा है। लगभग दर्जन भर बस्ती से पहलाम के लिए यहां ताजिये पहुंचते है और इन गांवों के हिन्दू यहां कृष्णाष्टमी में शिरकत करते है।

3 comments:

P.N. Subramanian said...

काश! पूरे भारत में इसका अनुकरण किया जाता. जानकारी के लिए आभार.
http://mallar.wordpress.com

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया जानकारी दी है।आभार।

Pankaj Parashar said...

Achhi post hai. Hindustan me aisi jagahen aur bhi bahuteri hain, par un par koi roshni dalne ki jahmat nahi uthana chahata. Dhanyavad.