हाल ही में हुए संविधान सभा के चुनावों में सबसे बड़े दल के रूप में उभरे नेपाली माओवादियों के नेता पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने महान भारतीय सम्राट अशोक से अपनी तुलना की है। अशोक बाद में बौद्ध धर्म के उपासक बन गए थे।
भगवान बुद्ध के 2,552 जन्मदिवस पर उनकी जन्म स्थली लुंबनी में हुई एक शांति बैठक में प्रचंड ने कहा कि यहां पहली बार आकर उन्हें महान सम्राट अशोक जैसा महसूस हो रहा है, जो कभी युद्धप्रिय थे लेकिन एक युद्ध के दौरान हुई मौतों ने उन्हें इसकी व्यर्थता का अहसास करा दिया था।
उन्होंने कहा कि शांति के दूत गौतमबुद्ध के जन्म स्थान पर आकर वह भी अशोक जैसा महसूस कर रहे हैं।प्रचंड ने कहा, "मुझे लगता है हथियारों की कोई आवश्यकता नहीं है।"उन्होंने कहा, "हमारी पार्टी बहुत ही शांतिप्रिय पार्टी है। लगभग 2,500 साल पहले बुद्ध ने शांति का संदेश फैलाया था। अब 2,500 साल बाद नेपाल में एक बार फिर शांति का संदेश फैलाया जाएगा।"
गौरतलब है कि नेपाल में 10 अप्रैल को हुए संविधानसभा के चुनावों में प्रचंड के नेतृत्व वाली पार्टी बहुमत में आई है। प्रचंड किसी धर्म को नहीं मानते, लेकिन सभी धर्मो में उनकी आस्था है।
5 comments:
मन में जो ख्याल आया वही लिख रहा हूं..
हा हा हा.. नौटंकी साला.. :)
यही है सारे नक्सलवादियों, कम्युनिष्टों की हकीकत.
अब जम कर कुर्सी पर बैंठेंगे.
सर्वहारा जैसे जुमले अब सिर्फ सेमिनारों में बोले जायेगें
क्यों भाई, धर्म तो अफीम होती है न.................... देख लो दुनियावालों, ये है कम्युनिस्ट/माओवादिओं की हकीकत............... ये साले पोंगापंथी ढोंग और सामंतवाद ख़त्म करने बंदूकों का सहारा ले रहे थे और अब ख़ुद ही नेताओं जैसे सामंतवादी ढकोसले और नखरे दिखाने लगे. लाल सलाम वालों को मेरा काला सलाम.
एक तो यह पोस्ट गलत बयानी कर रही है। यह जुमला कि वे किसी धर्म को नहीं मानते, लेकिन सभी धर्मों में उन की आस्था है। अपने आप में विसंगति है।
अंग्रेजी के रिलिजन शब्द का अनुवाद धर्म कर दिया जाता है। जब कि उस का अर्थ सम्प्रदाय या पंथ होता है।
प्रचण्ड ने अगर यह कहा है कि हथियारों की कोई जरुरत नहीं तो वे मार्क्सवादी और माओवादी नहीं हैं। क्यों कि हथियारों की तो तब तक जरुरत रहेगी जब तक दमन रहेगा। चाहे वह शोषितों का हो या शोषकों का।
राज्य हिंसा का सब से बड़ा स्रोत है। आप सरकार में होंगे तो क्या हथियारों के बिना उसे चला पाएंगे।
नेपाल में शांति का संदेश भी क्या बिना हथियारों के बल पर फैलाया जा सकता है। जिन लोगों के सामन्ती अधिकार छिन गए हैं वे चुप बैठे रहेंगे और वापस लौटने का प्रयास नहीं करेंगे?
मुझे लगता है कि य़ह पोस्ट ही गलत तथ्यों से भरी है।
आज कल कम्युनिस्टों की बुराई कर वाह वाही लूटने की जो परंपरा चल पड़ी है। यह पोस्ट कहीं उसी का तो प्रयास नहीं है?
Matlab ki Ashok ki tarah pahale ye bhi samrajyawaadi the. Khair nayee baat koi bhi nahee hai chahe koi bhi waad ho sab samrajya ke liye hi hota hai.
@Dwivedi ji jara is week ka devil's Advocate dekh lijiye www.ibnlive.com par sab samjh me aa jayega ki maowaad ke naye purodha aur ghatiya raaj thakare ke mentality me koi antar nahee hai, jo kal tak chillate the ki nepal me hindi cinema nahee aab wo aapane muh se bol rahe hai ki aab chalega.
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