मुझे आदमी का सड़क पार करना हमेशा अच्छा लगता है क्योंकि इस तरह एक उम्मीद - सी होती है कि दुनिया जो इस तरफ है शायद उससे कुछ बेहतर हो सड़क के उस तरफ। -केदारनाथ सिंह
Thursday, June 07, 2007
“ सबकुछ बदला यारों न बदली कहानी...फिर भी रटते कि बदली कहानी.........”
कैसी है शिक्षा व्यवस्था.....
- गुरू टिक्कू
घुमने के क्रम में कभी - कभी कुछ ऐसा देखने को मिल जाता है कि आंखे फटी की फटी रह जाती है। ऐसा हीं हाल गुरू टिक्कू का हुआ। गुरू टिक्कू बिहार के दौरे पर थे, इलाका था शेखपुरा। वैसे तो यहां काफी कुछ ऐसा है,जिससे गुरू टिक्कू को अचरज हीं हुआ होगा। गौरतलब है कि यह हाल उस इलाके का है, जिस इलाके के लोग स्व. राजो सिंह को विकास पुरूष के नाम से पुकारते हैं। विकास क्या और किसका हुआ यह तो राम जाने....।
विकास की बयार में यहां गुरू टिक्कू को कुछ भी देखने को नहीं मिला। बकौल गुरू टिक्कू – “अरे भाऊ का बोलूं सड़क भी .यहां खुद के हाल पे रोवत है।“
मगर कहानी का रूप यहां कुछ और हीं है। कहानी एक ऐसी शिक्षिका की है जिसे पहले अपनी 10 वर्षीय बेटी से पढ़ना होता है फिर जाकर वह कक्षा ले पाती है। शिक्षिका शिक्षा-मित्र के पद को शोभामान कर रही है, लेकिन अ.आ.इ.ई........भी नहीं जानती है। बिटीया पढ़ाती है तब जाकर हीं वह कक्षा ले पाती है। कहने और दिखाने के लिए इस टीचर दीदी के पास 10 वीं का प्रमाण पत्र है..वो भी पंचायत में सबसे ज्यादा अंको वाला। गुरू टिक्कू अचंभित है....का करें उन्हें समझ मे नहीं आ रहा है। गांव में घुमते वक्त जब गुरू की निगाह में यह वाकया टकराया तो वे इस विषय की खोजबीन करने लगे, आखिर सच्चाई से उनका आमना-सामना हुआ और जनाब मुंह –बाये(खोले) खड़े के खड़े रह गये।
गुरू टिक्कू कहते हैं-“ यार यह कैसी शिक्षा व्यवस्था है...... जब शिक्षिका का यह हाल है तो पढ़ने वालों का क्या होगा..।“
दरअसल शिक्षिका की नौकरी ऐसे बच्चों को पढ़ाने की है जिन्हें प्राइमरी का भी ज्ञान नही होता है.....किन्तु शिक्षिका भी तो वैसी हीं है। लेकिन धन्यवाद शिक्षिका की बिटिया को, जो कम से कम मां को पाठ पढ़ा कर स्कूल भेजती है। बलिहारी ऐसी बेटी का।
गुरू टिक्कू की यात्रा का यह एक रोचक प्रसंग है। शिक्षा व्यवस्था की कलई खोलती यह तस्वीर आखिर क्या बयां कर रही है ...जरा सोचें...।
बदलाव-बदलाव की रट लगाने वाली सरकार ,ये आपका कैसा रूप है, हेमा की गाल की तरह या ओमपुरी की गाल जैसी..।
तो न गुरू टिक्कू फरमाते हैं-“ सबकुछ बदला यारों न बदली कहानी...फिर भी रटते कि बदली कहानी.........”
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3 comments:
मै लेख या कहानी कम ही पढ़ती हूँ मगर आज...
वाकई बेहद रोचक बात है... सुना तो है की यदि माँ-बाप कम पढे-लिखे है तो औलाद से कभी-कभी पढ़ लेते है..मगर आप कहते है की जो शिक्षिका है वो पहले पढ़ती है फ़िर पढ़ाती है,इसमे भी साहस की बात है,माँ-बेटी दोनो का ही साहस प्रशंसनीय है...
सुनीता(शानू)
क्या बात है! ये हमारी शिक्षा नीति है! उधारी के जमाने में डिग्री का भी अग्रिम भुगतान हो गया।
पढ़ाई बाद में हो रही है!
क्या बात है......यही है गांवों में शिक्षा की स्थिति... काबिल-ए-तारीफ तो ये है कि 10 साल की बच्ची (ऐसे गांवों में तीसरे या चौथे वर्ग की होगी) एक शिक्षिका तैयार कर रही है...ऐसा नवनिर्मित उत्पाद विद्यालय में कैसा उत्पाद तैयार करेगी भी सोंचने से रहा। क्या करते हैं ये अधिकारीगण जो जांच-पड़ताल कर नियुक्ति देते हैं.....राम बचाए...।
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