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कोसी की गुंडागर्दी भी बदली भैया...
कोसी का इलाका बाढ और बालू से यदि अभिशप्त है तो यकिन मानिए यहा की गुडागर्दी भी क्लासिकल कैटोगरी मे बंटी है , इसमे लगातार बदलाव भी आ रहा है. यह वही इलाका है जिसके बारे मे कहा जाता था- "जहर न खाउ ,माहुर न खाउ, मरबाक हो तो पुर्णिया आउ." यहां अभी भी सैकडो एकड जमीन के मालिक बडे संख्या मे है.ये लोग खास जमीन्दारी स्टाइल मे जिंदगी गुजार रहे हैं.जिसकी जितनी जमीन वह उतना ही बलवान्...मतलब बाहुबली. ओमकारा के ओमी भैया तो यहां टोले-टोले मे मिल जायेगे आपको. दर असल यहा जमीन न केवल अन्न उपजाने का जरिया है अपितु जमीन की बहुलता से ही यहा के लोगो की सियासी तकदीर बनती और बिगड्ती है. हर गांव मे किसी खास बाबू के हाथो मे जमीन का बडा भाग है. चले अब आपको गुंडागर्दी के लाइन पर ले चलें- ७०-८० के दशक मे जहां संभ्रात बनकर गुंडागर्दी चला करती थी, वही ९० के बाद संभ्रांत तबका भी बाहुबली स्टाइल मे अपनी चाल चलने लगा है.यदि आपने बिहार के इस भाग के किसी भी इलाके का दौरा किया है तो तस्वीर समझ मे आ जायेगी. यहा व्यक्ति के नाम से गांव जाना जाता है, परेशान मत होइए न ! चूंकि गर गांव मे किसी एक परिवार के हाथो मे सैकडो एकड जमीन होती है, और वही होता है गांव का बाहुबली. उपज होती है-धान,पटसन. दलहन तो सुरक्षा के लिए अपनी सेना. जहां पहले ट्रेक्टर्..जीप ..राजदूत मोटरसाइकाल और पारंपरिक दो-नलिया बंदुक बाहुबलि परिवार का द्वेतक हुआ करता था, अब होता है-सूमो..बोलेरो..स्क्रपियो और ...हथियार की तो बत ही नहीं.पढते वक्त आपको यह वर्णन भले ही नकारात्मक लगता हो लेकिन यकिअन मानिए सच्चाइ से आंख छिपाना बेईमानी होगी...मेरे लिए.धमदाहा, रुपोली,भवानीपुर कुछ ऐसे जगह है जो आपको चंबल से कम न लगेंगे. जमीन की बदौलत यहां की राजनीति काफी नमकीन होती है जनाब.. विधायक जी यदि अपने इलाके के विधायक है तो गांव मे कोई और ही विधायक होता है. द्ण्डवत प्रणाम की प्रथा तो यहां शुरु से ही है. ६०-७० के दशक मे नक्षत्र मालाकार नाम का डाकु यहा का सबसे बडा डकैत हुआ करता था...लेकिन बडे भुपतियो के साथ उसका रिश्ता मधुर हुआ करता था. संबध के अच्छे होने का कारण कुछ तो होगा हीं...ऐसी मेरी छोटी बुद्धी मानती है खैर ! उस समय ड्कैती गुंडागर्दी की सर्वोच्य शिखर होती थी..पर समय के बदलने के साथ ही यह अब निकृष्टतम समझने जाने लगी है. ड्राइंग रुम डील का चलन अब सबसे ज्यादा है. शायद इसी कारण जमीन्दारो की एक बडी जमात अब जिला मुख्यालय मे अपने आउट हाउस मे डेरा डाले रहती है.बदलाव का यह नया रुप आपको कई परतो के अंदर ले जायेगा.जमीन्दारो को अब अपने ही खास लोगो से डर सताने लगा है,ये वही लोग है जिसे इनलोगो ने अपने काम के लिए यूज किया था ..अब वे तो ओमी भैया बन गये है. बडे भूपति अब साप्ताहिक छुट्टी मे गांव आते हैं.....आखिर यही तो है नये बाहुबलियो का रौब ! पुर्णिया, सहरसा, मधेपुरा, किशनगंज आदि जिलो मे ये काम बखुबी चल रहे है,नेपाल,बंगलादेश नजदीक होने कारण वहां से भी लोग यहां आ रहे है...शायद यही है कोसी का नया रुप...खास मार्डन-लुक.अगर विशाल भारद्वाज इस इलाके को घुमे तो उनके लिए एक नयी स्क्रीप्ट तैयार मिलेगी.
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1 comment:
बाप रे बाप आपने तो डरा दिया। लेकिन जितना मेरा अनुभव है उससे ये बातें सच लगती हैं।
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