Thursday, October 12, 2006

बाल मज़दूरी का अर्थशास्त्र



भारत में रेस्तराँ,ढाबों और घरों में 14वर्ष से कम उम्र के बच्चों के काम करने पर प्रतिबंध लगाने संबंधी विधेयक आने वाला है लेकिन इन बच्चों पर अच्छी खासी अर्थव्यवस्था निर्भर करती है.
दिल्ली के मोती बाग़ इलाके में एक ढाबे पर बर्फ की सिल्लियां तोड़ता आठ साल का दिलबाग बात करने से कतराता है क्योंकि ठीक सामने उसका मालिक खड़ा है.
बार-बार पूछने पर वो बताता है कि वो नेपाल से आया है और ढाबे पर काम करने के उसे हर महीने 800रुपए मिलते हैं.
काम वही बर्तन धोना,पानी पिलाना और रोटी बनाना.
एक के ख़र्च में दो
देखिए एक छोटा बच्चा काम करेगा तो उसे अधिक से अधिक हज़ार रुपए दिए जाते हैं. कोई बड़ा आदमी होगा तो दो ढाई हज़ार से कम पर काम नहीं करेगा. मतलब एक के वेतन में दो बच्चों से काम कराया जाता है

मैंने जब दिलबाग के मालिक से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया कुछ कहने से. ऐसी ही हालत दिल्ली के कई और ढाबों में काम कर रहे बच्चों की है.
दिल्ली के एक अन्य इलाक़े के ढाबा मालिक शहज़ाद बात करते हैं क्योंकि उनके ढाबे में 14 साल से कम का बच्चा नहीं है.
वो बताते हैं,"देखिए एक छोटा बच्चा काम करेगा तो उसे अधिक से अधिक हज़ार रुपए दिए जाते हैं.कोई बड़ा आदमी होगा तो दो ढाई हज़ार से कम पर काम नहीं करेगा.मतलब एक के वेतन में दो बच्चों से काम कराया जाता है."
काम में दम, दाम में कम यही नीति है बच्चों के साथ. ढाबे पर ही नहीं, घरों में भी बच्चे काम करते हैं और एक ऐसे ही व्यक्ति ने हमसे बात कि नाम उजागर न करने की शर्त पर.
घरेलू नौकर
वो कहते हैं कि उनके घर पर एक बच्चा काम करता था लेकिन भाग गया.
यह पूछे जाने पर वो बच्चों से क्यों काम कराते हैं तो उनका तर्क था कि बच्चे कम पैसे पर तो मिलते ही हैं वो भाग नहीं सकते, बड़े नौकर पैसे लेकर भाग भी जाते हैं.
उन्हें दस अक्तूबर को आने वाले विधेयक के बारे में भी कुछ पता नहीं है लेकिन वे साफ कहते हैं कि दिल्ली में कई घरों में ऐसे बच्चे काम कर रहे हैं.
भारत में तक़रीबन आठ से दस करोड़ बाल श्रमिक हैं जो विभिन्न उद्योगों में लगे हुए हैं.अगर इनके स्थान पर वयस्क काम करें तो क्या अंतर होगा वेतन का.
एक बच्चे को अगर 1500 रुपए वेतन मिला तो वेतन हुआ 15000 करोड़ रुपए. इसकी जगह पर एक वयस्क हो तो ढाई हज़ार लेगा तो समझ लीजिए दस करोड़ वयस्कों के लिए कितना पैसा हो गया

आलोक पुराणिक, अर्थशास्त्री
अर्थशास्त्री आलोक पुराणिक बताते हैं,"देश में क़रीब दस करोड़ बाल श्रमिक हैं.एक बच्चे को अगर 1500 रुपए वेतन मिला तो वेतन हुआ 15000 करोड़ रुपए. इसकी जगह पर एक वयस्क हो तो ढाई हज़ार लेगा तो समझ लीजिए दस करोड़ वयस्कों के लिए कितना पैसा हो गया."
पुराणिक का कहना है कि बाल श्रम से फायदा न केवल ढाबों या मालिकों को है बल्कि बाल श्रमिकों का परिवार भी चलता है जो बहुत ग़रीब होते हैं .
वो बताते हैं कि जब तक बाल श्रम का यह आर्थिक ढाँचा तोड़ा नहीं जाता इसे रोकना मुश्किल है.
उल्लेखनीय है कि भारत में ख़तरनाक उद्योगों मसलन, माचिस और आतिशबाज़ी में पहले ही बच्चों के काम करने पर प्रतिबंध है लेकिन वो काम कर रहे हैं.
ऐसे में ढाबों पर या घरों में उनके काम करने पर प्रतिबंध कैसे लागू होगा ये कहना मुश्किल है.
अगर एक बार के लिए मान लिया जाए कि इस पर पूरी तरह प्रतिबंध संभव है तो उद्योगों को भी भारी नुकसान होगा या कहें कि उनके उत्पाद मँहगे हो जाएँगे.
हर सामाजिक समस्या का आर्थिक पहलू महत्वपूर्ण होता है वैसा ही बाल श्रम के साथ भी है जिसे रोकने के लिए सरकार को इसके विभिन्न पक्षों यानी माँ-बाप की ग़रीबी, बच्चों की शिक्षा और इन पर आधारित उद्योगों पर ध्यान देना होगा.

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