आज कल कुछ अलग सा हो रहा है,पता नहीं यह परिवर्तन है या कुछ और..खैर बात को आगे बढाया जाए.
दरअसल बात निकलती है तो दूर तलक जाती है, ऐसा सुना था.
रिवोली में "लगे रहो मुन्ना भाई भाई" रात में देखा,हाल से निकलने से पहले भी बहुत कुछ लोचा दिमाग में केमेस्ट्री बना रहा था.
गांधीगीरी का जादू अपून के मन में चल रहा था..तू समझ रही है न्..?
मुन्ना और सकिर्ट का कमाल है जनाब्,,,सच बोलना अपुn सीख् रहा था,
धिरे हीं सही गांधी का जादू चल गया.
मेरा भाई है न अब सिगरेट कम फुंकने लगा है,रात को समय से घर पे हाजिर ..जय हो गांधी बाबा की !
सिंपल लाईफ स्टाइल को अपनाना हीं गांधी का थाट है...अपुन देर से समझा./ लेकिन समझा.
दुसरों को दोष देने से पहले खुद के गिरेबां में झांकना शुरु कर दिया था..
निज़ा फाज़ली ने लिखा है----
रस्ते को भी दोष दें, आंखें भी कर लाल
चप्पल में जो कील है पहले उसे निकाल्..
जय हो गांधी बाबा.
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