Wednesday, September 20, 2006

पता नहीं कुछ लाईनें दिल् को कैसे टच कर जाती है....

हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे

बहारे हमको ढूँढेंगी ना जाने हम कहाँ होंगे

ना हम होंगे ना तुम होंगे और ना ये दिल होगा

फिर भीहज़ारो मंज़िले होंगी हज़ारो कारँवा होंगे


गिरीन्द्र.....

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