Sunday, September 17, 2006

असफाक पत्रकार बन गया...


उसका ख्वाब जैसे आज पुरा हो गया..एक चाहत थी उसकी,पत्रकार बनने की.खुदा ने आखिर उसकी सुन हीं ली..असफाक है नाम उसका.दिल्ली के एक दैनिक अखबार में जनाब रिपोर्टर बनें.एक नया ज़ोश था,सो काम पर भी उसका असर दिखा.एक हफ्ते के अंदर असफाक अखबार के हाईप्रोफाइल लोगो का चेहेता बन गया.लेकिन इस चेहेते होने के कारण असफाक के आफिस लाईफ में कई नये मोड आ गए.


रविन्द्रनाथ की चोखेरबाली की तरह असफाक भी आफिस में कई लोगों के आखों किरकिरी बन गया.खबरों के साथ रोज़ नये प्रयोग करने वाला असफाक तो भी अपना काम बिंदाश अंदाज में करता रहा.लेकिन दिल के किसी न किसी कोने से वह अब स्वंय को उपेक्षित महसुस कर रहा था.कभी कभी तो उसे ऐसा लगता था कि वह यहां एकदम अकेला है...लेकिन बिते पलों को याद कर वह अपने दिल को तस्सली दिया करता था.एक दिन वह अपने कमरे में लेटा था,दिमाग लेकिन आफिस की राजनीति पर दौर रहा था.बहुत दिनों के बाद आज वह उस पल को याद कर रहा था जब वह पहली द्फे अपने एक आर्ट रिपोर्ट के बारे मे एक खुबशूरत लडकी से बात कर रहा था,असफाक यह नहीं समझ पा रहा था कि आज क्यूं उसे यह सब कुछ याद आ रहा है..!आफिस की राजनीति में उसके संग हर कोई हाथ पिछे कर लिया था..लेकिन कोई तो था जो असफाक के संग था..दर असल यह एक पहेली थी ,जिसका उत्तर असफाक भी नहीं जानता था.कहानी फिल्मी न थी लेकिन रंग जरुर उसी का था.खैर....खुदा के रहमों करम से काम में टिव्सीट जरुर आया.

असफाक राजनीति के दलदल में फंसकर भी उसका हिस्सा तो नहीं बना लेकिन हाँ अब वह प्रोफेशनल पत्रकार जरूर बन गया था.काम से काम और कुछ भी नहीं,मस्ती के आलम में फिक्र को वह धुएं में उडाता चला गया...........

लेकिन इतने दिनों के बाद भी वह सुंदर सी लड्की असफाक के दिल के करीब है कि नही वह आज तक नहीं जान पाया ....

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