Saturday, June 10, 2006

टेलीफोन बुथों का मिज़ाज़ वज़ीरपुर में


टेलिफोन बुथों की स्थिती वजीरपुर में-प्रवासियों का अड्डा,खासकर बिहार से आए प्रवासियों का.दरअसल ये लोग यहाँ के फैक्ट्रीयों में मजदुरी करते हैं. कुछ तो परिवार के संग रहते हैं....और कुछ अकेले..वजीरपुर के जेजे कालोनी मे इनकी आबादी देखकर आपको बिहार के उन गाँवों की तस्वीर साफ झलकने लगेगी जहाँ आप एक दफे भी गए हों...बोली-बानगी ठेठ वहीं की. भोझपुरी, मगही , मैथली भाषाऔं....से आप यहाँ रु-ब-रु हो सकते हैं.इस कमाउ शहर दिल्ली की यहाँ तस्वीर बहुत कुछ आपको समझ मे आ जाएगी...किस प्रकार दिल्ली हर एक को अपने आँचल मे पनाह देती है.

यहाँ के अधिकतर बुथों को ये प्रवासी हीं चला रहे हैं.टाटा, रिलायंस के फिक्सड वायरलेस सेट वाले बुथ यहाँ ज्यादा है.जैसा कि रमेश कहता है-"इ सेट आराम से मिल जाता है..कोनो सरकारी झंझट नाहि... "इन बुथों पर बातें जो होती है वो अधिकतर एसटीडी हीं.लोग अपने गाँव्-घर बात करते हैं.लोकल होती है(ऐसी बात नहीं है कि लोकल नहीं होती है)श्यामलाल बताता है" मोबाईल से लोकल बतिया लेते हैं...."

एक बात जो मुझे यहाँ पता चला कि "पोस्टकार्ड आधारित संपर्क-सूत्र' का किस प्रकार ये बुथ उनका शासन खत्म किए..मधेपुरा बिहार का इकबाल खाँ कहता है-"पहले मनीआडर्र करने के बाद भी एक ठो पोस्ट्कार्ड भेझना पङता था...कि मनीआडर्र भेझ रहे हैं...लेकिन जब से गाम में चाचा का बुथ खुलल है..एक बार फोन कर देते हैं तो अब्बजान पोस्टमास्टर साब से पुछते रहत हैं कि मनीआडर्र कब तक आबेगा.ये सब आखिर हमारी तकनीकि सफलता का ग्रामीण स्तर तक पहुँच का प्रमाण है.

अब इकबाल के अब्बा जान ये ना कहेगें कि
-"चिट्ठी न कोई संदेश जाने वो कौन सा देश्
जहाँ तुम चले गए.................."

गिरीन्द्र

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