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Monday, November 02, 2015

मोदी के बहाने चुनावी बकैती

वायुसेना के तीन हेलिकॉप्टर आज जब पूर्णिया के आसमान में नमूदार हुआ, तो भीड़ मोदी-मोदी करने लगी, जिसे देखकर भाजपा के नेताओं के चेहरे खिल उठे, कमल की तरह। नरेंद्र मोदी की पूर्णिया-रैली से भाजपा नेताओं की बांछें खिली हुई हैं। मोदी की बड़ी-बड़ी बातें वोटरों का दिल जीतने में कितना कारगर साबित हो पाती हैं, इसका जवाब तो आने वाले दिनों में ही मिल सकेगा लेकिन इतना तो तय है कि सीमांचल में प्रधानमंत्री की यह रैली सफल रही।
कल तक कहा जा रहा था कि प्रधानमंत्री यहां अपने भाषण में कोई ‘कार्ड’ खेलेंगे लेकिन ऐसा उन्होंने कुछ नहीं किया। हालांकि सिख दंगे की बात उन्होंने की। वैसे इसका असर बिहार चुनाव पर पड़ने वाला नहीं है।

पूर्णिया में एक मैदान है - रंगभूमि। इसका नाम ही रंगीन है। ऐसे में रंगीन लोगों की भीड़ लाजमी है। इस बड़े मैदान को भाजपा के रंग में रंग दिया गया था। कहीं कहीं से जय श्री राम का नारा भी कान तक पहुंचा. प्रधानमंत्री के पहुंचने से पहले अनंत कुमार और यहां के पूर्व सासंद उदय सिंह मंच से भीड़ को निहारते दिखे। भीड़ निहारने लायक भी थी।

रंगभूमि मैदान की क्षमता ज्यादा से ज्यादा 1.5 लाख होगी। बीजेपी वाले आज दो लाख का दावा कर रहे थे। लेकिन लाख लोगों की भीड़ तो जरुर पहुंची थी।

कल तक यह खबर थी कि मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने के लिए भाजपा यहां कोई ‘कार्ड’ खेलेगी। लेकिन मोदी का भाषण सयंमित रहा। उन्होंने विकास आदि की बातें की। पूर्णिया में उद्योग धंधे, एयरपोर्ट आदि की बातें की।

मोदी ने कांग्रेस को नीतीश-लालू के बहाने घेरा। उन्होंने कहा, 'एक बात के लिए मुझे लालू और नीतीश जी का धन्यवाद करना है, क्योंकि उन्होंने इस चुनाव में हमें 40 सीटें बिना चुनौती के हमें दे दी। उनका इशारा महागठबंधन की ओर से कांग्रेस को दी गई 40 सीटों की तरफ था।

गौरतलब है कि पूर्णिया में भाजपा की सीधी टक्कर कांग्रेस से है। भाजपा ने विजय खेमका को टिकट दिय़ा है जबकि कांग्रेस की प्रत्याशी इंदू सिन्हा हैं। मोदी बार-बार नीतीश कुमार को नीतीश बाबू संबोधित कर रहे थे।

मोदी की रैली शुरु होने से पहले आसमान में एक हेलीकाप्टर दिखा, पता चला कि पास में ही नीतीश कुमार की रैली है और वे जा रहे हैं। आज पूर्णिया के अमौर में राहुल गांधी की भी रैली थी। भवानीपुर से आए सुमन ने बताया कि हेलीकाप्टर से नीतीश कुमार भीड़ जरुर देखे होंगे। भीड़ देखकर उनके पांव जरुर फूले होंगे। वैसे रैली में लोगों की प्रतिक्रियाएं बड़ी मजेदार होती है।

चुनाव के वक्त रैलियों को देखकर लगता है कि पैसे का कितना बड़ा खेल होता है। लोकसभा चुनाव के वक्त भी यहां मोदी की बड़ी रैली हुई थी। उस रैली में पूरा प्रदेश भाजपा अपने नेता के स्वागत में उपस्थित था। पटना से भी बीजेपी के नेता सब आए थे।

इस बार पत्रकारों की भी अच्छी खासी भीड़ थी। डीपीआरओ ने 90 स्थानीय पत्रकारों को पास दिया था। इसके अलावा बाहर से पत्रकार आए थे। मतलब 200 के करीब पत्रकारों का जमावड़ा था।

पूर्णिया के जितने होटल हैं, वे लगभग सबके सब बुक हैं। रैली खत्म होने के बाद हमने भीड़ को चैनलों के औवी वैन के पास देखा। लोगबाग वहां फोटो ले रहे थे। मीडिया के प्रति लोगों का अनुराग देखने लायक होता है। कसबा से आए शशांक ने बताया कि चैनलों ने हमें मीडिया फ्रैंडली बना दिया है।

रैली में आदिवासी महिलाओं – पुरुषों की काफी तादाद दिखी। पूर्णिया में उनकी संख्या ठीक-ठाक है। सुनीता हेब्रम ने कहा कि वो मोदी को देखने आई है। मोदी को सुनना उसे अच्छा लगता है।

वैसे मोदी ने जब अपना भाषण शुरु किया था तब उनका माइक खराब हो गया था, हालांकि तीन मिनट के बाद सब सामान्य हो गया। मोदी थके भी दिखे। वैसे हवा में उड़ते-उड़ते लोग थक भी जाते हैं। बाद बांकी जो है सो तो हइए है।

Friday, October 30, 2015

नीतीश की सभा के बहाने चुनावी बकैती

आज हम सुबह जब पूर्णिया से निकले तो यह सोच रखे थे कि सीमांचल के उन इलाकों की यात्रा करेंगे जहां पहले जूट और गन्ना की खेती बड़े स्तर पर होती थी लेकिन अब वहां आलू,मक्का और अन्य फसलों की खेती होने लगी है इसके बावजूद किसान परेशान हैं।

यही सोचकर हम धमदाहा,  बनमनखी, मधुबन, मुरलीगंज, मधेपुरा और सिंहेश्वर की ओर निकल पड़े। दरअसल आलू की खेती की तैयारी के बाद आपका किसान इन दिनों चुनावी बकैती कर रहा है। नेताओं की बात कम , लोगों की बातें अधिक सुनता हूँ।

आज सिंहेश्वर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सभा भी थी। सुनता आया हूँ कि  उनकी रैली नहीं होती है , नीतीश कुमार दरअसल अपनी चुनावी कार्यक्रमों को सभा कहते हैं। हालांकि सभा में पीले रंग की टी शर्ट पहने युवाओं की टोली दिखी। ऐसी ही टोली लोकसभा चुनाव के वक्त नरेंद्र मोदी की रैली में दिखती थी। राजनीति में बहुत कुछ नया होता रहता है, एक ब्रांडिंग की तरह।

नीतीश कुमार को लेकर जयकारा कुछ ज्यादा सुनने को मिला। करीब 10 लोग मंच पर माइक में मुंह लगाकर नीतीश कुमार की जय जय करने में लगे थे। लगा कि नीतीश भी बोर हो रहे थे। हालांकि उनके चेहरे पर मुस्कान बरकरार थी। नेताओं को बहुत कुछ बनाकर रखना पड़ता है :)

नीतीश कुमार सहज और संयम तरीके से बोलते दिखे। नीतीश बोले कि वे दरबार में हाजिरी लगाने आये हैं। विकास की बातें की। साइकिल चलाती लड़कियों का उन्होंने जिक्र किया। यह काम तो उन्होंने अच्छा किया है।

उधर, धमदाहा में अरविन्द से बात होती है। वे खेती करते हैं। मक्का के इस किसान ने बताया कि  धमदाहा विधानसभा क्षेत्र से 25 उम्मीदवार मैदान में हैं लेकिन कोई भी किसानों की समस्या को गंभीरता से नहीं उठा रहा है। उन्होंने बताया कि वे नकारात्मक नहीं हैं , इसलिए वे चाहेंगे कि किसानों को एकजुट होना होगा।

बनमनखी में किसानों का गुस्सा मुखर दिखा
यह गन्ना का इलाका था। पहले यहां गन्ने की खेती खूब होती थी। यहां चीनी मिल हुआ करता था लेकिन अब सबकुछ उजड़ चूका है। परमानन्द साह ने कहा कि उन्हें भाजपा और नीतीश कुमार दोनों ने ठगा है। सुमन देवी ने कहा कि गाँव खाली हो गया है, रोजगार नहीं है ऐसे में परिवार के लोग सब बाहर चले जाते हैं कमाने के लिए।

मुरलीगंज में एक युवक से मुलाक़ात होती है। उसका नाम रोहन था। उसकी बोलने की शैली कमाल की थी। आत्मविश्वास से लैस इस युवक में मुझे नेता दिख गया :)

खेतों में धान की फसल दिखी। आलू भी दिख गया। मधेपुरा में  सत्तू की दूकान पर रमेश यादव मिले। उन्होंने कहा कि पप्पू यादव से उन्हें गुस्सा है। रमेश जी ने पप्पू यादव को नरेंद्र मोदी से जोड़कर एक नया फार्मूला हमें समझाने लगे।

किशनगंज में जिस तरह ओवैसी फेक्टर पर लोग अब बात करते नहीँ मिले ठीक उसी तरह यहां पप्पू यादव की भी लोग उस स्तर पर बात नहीं कर रहे हैं। लहर वाली बात नहीं दिखी। लोकतंत्र का असली आनन्द तो यही है। जनता आपको अच्छा -बुरा सबका पाठ पढ़ाती है। बाद बांकी जो है सो तो हइये है। 

Thursday, October 29, 2015

राहुल और ओवैसी के बहाने किशनगंज यात्रा

आज किशनगंज राहुल गांधी के बहाने आना हुआ। यहां एक मैदान है -रूईधासा मैदान। वहीं उनकी सभा है। रैली से पहले माहौल गीत-नाद का बना हुआ है। नीतीश कुमार की तारीफ़ से सजे गीत कान तक पहुंच रहे हैं। मैदान हाथ छाप से सजा है और आसपास महागठबंधन की साइकिल घूमती दिखी।

चाऊमीन, चाट-समोसा और नारियल की बिक्री बढ़ी है। मेला की तरह गाँव घर से लोग पहुंचे हैं। मुस्लिम बहुल इस इलाके में लोगबाग बड़ी संख्या में दिख रहे हैं। असफाक भाई के हाथ में ढोल है और वे थाप ठोक रहे हैं। वे ठाकुरगंज से पहुंचे हैं। उधर, लाउड स्पीकर से मेरा रंग दे बसंती चोला बज रहा है।

यहां तस्लीम भाई मिलते हैं और कहते हैं कि ओवैसी फेक्टर यहां नहीं है, हम बाहरी को जगह नहीं देंगे। ओवैसी को लेकर कुछ लोग गुस्से में दिखे। कोई उन्हें वोट कटवा कह रहा है तो कोई बाहरी। इन सबके बावजूद लोगबाग उनकी चर्चा कर रहे हैं । हैदराबाद से सीमांचल की कहानी शुरू में रोमांचक लग रही थी लेकिन अब हैप्पी एंडिंग संभव नहीं लग रहा है। शायद यही राजनीति है।

इसी रूईधासा मैदान में दो -तीन महीने पहले ओवैसी की बड़ी रैली हुई थी और आज उन्हीं के खिलाफ यहां बोल रहे हैं। राजनीति का व्याकरण भी अजीब होता है।

खैर, हम रैली -राहुल के बहाने किशनगंज को भी देखने निकले और पहुँच गए ईरानी बस्ती। 2012 में गया था वहां। उस वक्त बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए एक रपट तैयार की थी बस्ती की। तीन साल बाद भी हालात नहीं बदली वहां की। पता नहीं गलती किसकी है। शिकायतों की झड़ी लगा दी लोगों ने बस्ती में। चुनाव के वक्त भी उनकी कोई बात नहीं कर रहा है।

उधर शहर और आसपास पुलिस प्रशासन चुस्त है यहां, आखिर राहुल जो आ रहे हैं। मोहन दास दा बस स्टेण्ड पर मिले। उनका मानना है कि मोदी की लहर इस बार नहीं है, चुनाव इस दफे टाइट है। यह शब्द मुझे कई जगह बिहार में सुनने को मिला।

लालू की बात यहां कोई नहीं कर रहा है। अख्तर इमाम कहते हैं कि वे तो चाहेंगे नितीश अपने बल पर सरकार बनाये और साथ में कांग्रेस रहे। उन्होंने कहा कि किशनगंज का चेहरा हर कोई खराब करना चाहता है लेकिन अब ऐसा नहीं होने वाला है।

पूर्णिया से आते वक्त रास्ते में पता चला कि किस तरह मुस्लिम को भी यहां कई पॉकेट में बाँट दिया गया है, मसलन सुरजापुरी, शेरशाहबादी, कुल्हैया आदि। इन बातों को सुनकर लगा कि राजनीति किस तरह हमें तोड़ती जा रही है और हम आसानी से टूटते जा रहे हैं। पांचवे चरण में सीमांचल एक केक बन गया है, जिसे काटकर सरकार बनाने की जुगत में हर पार्टी है। केक कौन काटता है यह तो वक्त ही बताएगा , बाद बांकी जो है सो तो हइये है।

Saturday, October 24, 2015

वोटर हार जाता है, उम्मीदवार जीत जाता है !

पूर्णिया में आज सुबह से ही एक हेलीकाप्टर हवा में चक्कर काट रहा था। किसी ने कहा कि सीमांचल के कोई नेताजी आसमान से जमीन देख रहे हैं, जिसे चुनाव और बाढ़-सुखाड़ के वक्त 'हवाई दौरा' कहते हैं। वैसे सच्चाई ये है कि बिहार विधानसभा चुनाव नामक मैच अब अंतिम ओवर में है और सभी दल असली मुद्दे को साइड में रखकर जाति और जानवर के जरिये चुनावी बैतरणी पार करने की जुगत में हैं।

बिहार की गद्दी जो दल हासिल करे, यकीन मानिए हारेंगे तो हम बिहारी ही। हम बिहारी बोलते नहीं हैं इसलिए जीतने वाले हमें हारा हुआ समझकर अपनी दुनिया सजाते-संवारते रहे हैं। यह आज की नहीं बल्कि जगरनाथ-लालू काल से होता आया है। शायद उससे पहले भी हम हारते ही होंगे।

आप सोच रहे होंगे कि विधानसभा चुनाव के दौरान नकारात्मक बातें ही क्यों ? दरअसल मुद्दा विहीन इस चुनाव के पीछे हमारा भी हाथ है। हम बोल नहीं रहे हैं , लिखने वाले लिख नहीं रहे हैं। बोलते वही हैं जो सुनने में अच्छा लगता है। लिखते वैसा ही है जैसा बाजार चाहता है।

समस्तीपुर में पिछले महीने एक बुजुर्ग मिले थे, अभी उनका नाम भूल रहा हूँ। उन्होंने कहा था "मीडिया मैनेजर सब इस बार चुनाव लड़वा रहा है, नेता सब तो खाली हवा पानी देता है। खेल तो कोई और खेल रहा है। हालाँकि पतंग की डोर नेताजी के हाथ में होती है न कि मैनेजर साब के पास। लेकिन मैनेजर सब खूब कमा रहा है। "

हम सब खाने की प्लेट के लिए दाल की बात करते हैं लेकिन क्या हम किसान से यह नहीं पूछ सकते कि वह दाल की खेती क्यों छोड़ रहा है। ऐसे कई सवाल हैं जो चुनाव के दौरान गुम हो जाते हैं। हम खुद ही मुद्दों का अचार बनाकर नेताओं को दे देते हैं कि लीजिये और चटकारा लगाकर भर चुनाव खाते रहिये। नेताजी ने हाथ जोड़ दिया, पीठ पर हाथ फेर दिया हम हो गए भावुक। इस फेर से मतदाताओं को निकलना होगा खासकर ग्रामीण इलाके के लोगों को। नहीं तो हम ठगाते ही रह जाएंगे।

सड़क-बिजली-पानी -शिक्षा -शासन या किसानी को छोड़कर विभिन्न दल गाय-सूअर की बातें कर रहे हैं और एक हम हैं कि भीड़ बनकर उनकी बातें रैली-सभाओं में जाते हैं और उनकी बकैती सुनते हैं। वो बोलते हैं और हम ताली पिटते हैं। लाखों रुपया का जिमी कैमरा घुमता है हमारी तरफ और हम कुछ पल के लिए ऐसे भाव में आ जाते हैं मानो सबकुछ जीवन में  मिल गया।

ऐसे में हारेंगे तो हम ही न। मीडिया ने भी अपना काम बखूबी किया है। जाति का प्लेट मीडिया सजा रहा है और  हम उसकी टीआरपी बढ़ाते जा रहे हैं।

लगातार घूमते हुए और लोगबाग से बतकही करते हुए लगता है कि हम सभी ने जाति के फ़्रेम वाला चश्मा पहन लिया है और उसका पॉवर इतना बढ़ा दिया है कि इसके बिना हमारा कोई काम ही नहीं होगा। करोड़ो रुपये खर्च कर राजनीतिक दल व्यक्तिगत हमले वाले कंटेंट करन्ट लगाकर अखबारों में छपवाते हैं । मुखर होना होगा लोगों को नहीं तो गाते रहिये- "कौन ठगवा नगरिया लूटल हो....."

Monday, October 12, 2015

एक किसान की चुनावी डायरी- 15

स्मृति ईरानी से मिले हैं आप ?  त्रिवेणीगंज में जब हम रुके थे तो फल की दुकान पर एक महिला ने यह सवाल किया था। हमने कहा कि आप स्मृति ईरानी को कैसे जानती हैं। उन्होंने बताया कि वह स्मृति ईरानी को टीवी सीरियल के कारण पहचानती हैं। अब तो वह चुनाव प्रचार भी करती हैं। उमा नाम की उस महिला ने हमें बताया कि पहले वह स्मृति ईरानी का सीरियल देखती थी अब तो वह केंद्र में मंत्री भी हैं।

बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान स्मृति ईरानी अक्सर कहती हैं कि किसी के घर लक्ष्मी मां 'कमल' पर ही बैठकर आती हैं न कि 'तीर' और 'लालटेन' पर बैठकर आती हैं। उनकी बातों पर लोगबाग चर्चा करते मिले।

जदिया में जहां पटसन की खेती अधिक होती है वहां लोगबाग नीतीश कुमार की तारीफ करते दिखे। वजह भी है, यहां सड़क अब बहुत अच्छी है। कभी इस इलाके से गुजरने में भय लगता था लेकिन अब आप देर रात भी गुजर सकते हैं। यहीं एक किसान अजय मंडल मिलते हैं। उन्होंने कहा कि इस बार पटुआ अच्छा हुआ है अब
देखते हैं कि चुनाव कैसा होता है। वैसे सरकार जिसकी बने बिहार में काम होता रहेगा। देखिए न ट्रक सब कितना गुजरता है रास्ता से, सब में गिट्टी –बालू भरा रहता है।

एक बात जो साफ नजर आती है कि लोगबाग विकास की बात कर रहे हैं लेकिन नेता सब विकास के इतर बदजुबानी पर उतर आए हैं। जदिया बाजार में भी लोगों से बातचीत कर हमें यही मिला। वहीं सिमराही बाजार में एक युवक से हमारी मुलाकात होती है। बातचीत से पता चल कि वह संघ से प्रभावित हैं। नाम न
छापने की शर्त पर उस युवक ने बताया कि इस बार इस इलाके में आरएसएस सक्रिय है। उन्होंने बताया कि सभी जिले में संघ के वरिष्ठ लोग तैनात हैं। खासकर उऩ इलाकों में जहां लोकसभा चुनाव में भाजपा पिछड़ गई थी।

इस संबंध में जब हमने अपने पत्रकार साथी से बात की तो उन्होंने भी इसकी पुष्टि की। उन्होंने बाताया कि बिहार चुनावों से पहले जुलाई और सितंबर के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 35 फीसदी आरएसएस के कार्यकर्ताओं में बढ़ोत्तरी हुई है। यही नहीं लगातार नये लोगों का संघ से जुड़ने का सिलसिला जारी है।

संघ के अधिकारी जो बिहार में तैनात हैं उनका कहना है कि मोदी की बिहार में रैलियों का असर युवाओं पर देखने को मिल रहा है। लोगों से बातचीत के दौरान इस तरह की बातें भी सामने आने लगी है।

सरकारी कामकाज को लेकर लोगबाग अभी भी सचेत नहीं हुए हैं। मसलन वह यह नहीं समझ पा रहे हैं कि मुखिया का काम क्या है विधायक का काम क्या है। त्रिवेणीगंज प्रखंड स्थित जदिया इलाके में किसान अजीम रहमानी ने कहा कि उन्हें अबतक वृक्षारोपण के लिए पंचायत से पौधा नहीं मिला है इसलिए वह वोट
नहीं डालेंगे। जब हमने कहा कि यह तो मुखिया का काम है, इस पर अजीम रहमानी ने कहा कि उन्हें इससे कोई मतलब नहीं है।

रहमानी ने बताया कि आप अभी सड़क किनारे हैं तो सबकुछ चकमक लग रहा है, हमारे साथ थोड़ा अंदर चलिए। ऐसे कई गांव हैं जो विकास से दूर हैं। जहां बिजली नहीं है, सड़क नहीं है, पुल नहीं है। बांस से बने चचरी पुल से वे गांव तक पहुंचते हैं। लोगों से लगातार बात करते हुए बिहार के कई चेहरे दिखने लगे हैं। हर किसी की बात सुनकर ही विकास का राग अलापा जाना चाहिए।


उधर, विभिन्न दलों के नेताओं की बयानबाजी सोशल नेटवर्क पर भी जारी है। लालू यादव ने गया के बेलांगज में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि फांसी पर चढ़ जाउंगा लेकिन आरक्षण खत्म नहीं होने दूंगा. लालू के इस बयान पर कभी  उनके ‘हनुमान’ कहे जाने वाले रामकृपाल यादव ने ट्वीट किया है कि
राबड़ी भाभी लालू जी को समझाइए न, काहे जान देने पर तूले हुए हैं. रामकृपाल ने कहा आगे लिखा है कि अतिपछड़ा प्रधानमंत्री है आरक्षण कभी खत्म होने नहीं होगा.

स्मृति इरानी, त्रिवेणीगंज, जदिया, आरएसएस और फिर रामकृपाल यादव के ट्विट की कहानी बिहार के चुनावी सफर की बानगी भर है। पहले चरण के लिए मैदान तैयार है अब सबकुछ वोटर के हाथ में है। बाद बांकी जो है सो तो हइए है।

एक किसान की चुनावी डायरी-14

बेगूसराय में चुनावी रैली में नीतीश कुमार ने कहा, 'बिहारी अपने दम पर विकास करेंगे. ये बाहरी यहां क्‍या करेंगे? मैं आपलोगों से एक सवाल पूछना चाहता हूं, बिहार को आगे कौन ले जाएगा, 'बिहारी' या फिर 'बाहरी'? यदि कोई बिहारी बिहार को आगे ले जाना चाहता है तो सच्‍चा बिहारी आपके सामने खड़ा है. हमें किसी अहारी-बाहरी की जरूरत नहीं है. ऐसे में इन बा‍हरियों को गुडबाय करने का वक्‍त आ गया है.' मैं अपने गांव में नीतीश कुमार की यह बात यूट्यूब के जरिए जोगो काका को सुना ही रहा था, इसी बीच में फेसबुक पर एक मित्र के स्टेटस पर नजर चली गई- शरद यादव बिहारी हैं कि बाहरी हैं। दरअसल लोगाबग के संग सोशल मीडिया की बतकही भी मजेदार होती जा रही है।

गांव के स्वास्थ्य उपकेंद्र के कर्मचारियों से बातचीत हो रही थी। हमने पूछा कि स्वास्थ्य सेवा के अलावा चुनाव पर कुछ बातचीत करिएगा। वैसे एक बात तो जरुर है, नीतीश कुमार ने कुछ काम ऐसे किए हैं जिससे बिहार का कायाकल्प हुआ है। जैसे मेरे गांव में सरकारी अस्पताल का बनना। बिहार में तो ऐसे हजारों गांव होंगे, जो नीतीश को दुआ देते होंगे।

नीतीश-मोदी की लड़ाई के बीच स्वास्थ्य उपकेंद्र की नर्स ने बताया कि हमें तो लगता  है कि हर जगह तो सीटों का झगड़ा है। रोज न अखबार में पढ़ रहे हैं कि कभी इ रूठ गया तो कभी उ रूठ गया। चुनाव में रुठने का मनाने का बड़ा चलन हो गया है।

दवा के लिए पहुंची लाजवंती काकी से हमने पूछा कि दवा सब मिल जाता है? उन्होंने कहा- आब कोनो दिक्कत नै छै, सब मिल जाएत छै। हमने पूछा कि ये बताइए कि आपको क्या लगता है, वोट किसे मिलना चाहिए। इस सवाल पर लाजवंती काकी एकदम गंभीर हो गई। फिर बोली, देखिए, वोट तो उसे ही मिलना चाहिए जो यह समझे कि जनता का मूड क्या है। जो नेता जनता का मूड नहीं बूझ सके उ नेता तो हारबे न करेगा। मुखिया चुनाव से लेकर सांसद चुनाव तक यही होता है न।

टोला में घुमते हमारी मुलाकात मुन्ना भाई से होती है। मुन्ना भाई को राजनेताओं से दिक्कत है। उन्होंने कहा- सब पोलिटिशिएन एक ही जैसे हैं। वैसे एक चीज बिहार में अच्छा हुआ है,यहां  अब सांझ में महिलाओं का घर से निकलने में कोई खतरा नहीं है। यहीं एक 12 वीं की छात्रा सुनीता मिलती है।उसने बताया कि सांझ में क्या, अब तो रात में भी डर नहीं लगता है। 
इन बातों के साथ जब मैं अपने घर लौटा और जोगो काका को सारी बात बताई तोउन्होंने बड़े मस्ताना अंदाज में कहा कि वोट एक ही बात पर थोड़े पड़ता है बाबू। वोट के लिए माहौल बनाया जाता है। पहला फेज होने दीजिए तब देखिएगा माहौल। अभी तो खाली बकैती हो रहा है।

उधर, एक खबर ने सभी को चौंका दिया। भाजपा जिसे बिहार का भीष्म पितामहकहती है., उनकी बहू ने नीतीश कुमार की पार्टी का दामन थाम लिया है। दरअसल चुनाव में टिकट कटने से नाराज ब्रह्मपुर की विधायक दिलमाणो देवी ने जदयू का दामन थाम लिया है. शुक्रवार की देरशाम उन्होंने सीएम नीतीश कुमार की मौजूदगी में जदयू की सदस्यता हासिल की. भाजपा के दिग्गज नेता स्व.कैलाशपति मिश्रा की बहू को विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने टिकट नहीं दिया था. इसके बाद से दिलमाणो पार्टी से नाराज चल रही थीं.

कयास लगाए जा रहे थे कि वो अपनी सीट से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी ही मैदान में उतरेंगी, लेकिन दिलमाणो कुंवर की जगह बीजेपी ने राज्यसभा सांसद डा.सीपी ठाकुर के पुत्र विवेक ठाकुर को टिकट दिया था.

दिलमाणो के जदयू में शामिल होने के बाद इलाके का सियासी समीकरण एक बार फिर से बदलता दिख रहा है. इस सीट को दिलमाणो ने राजद के कब्जे से निकाल कर पार्टी को जीत के रूप में दिया था. 2010 के चुनाव में वो यहां से बीजेपी की टिकट पर जीत हासिल कर विधानसभा पहुंची थीं.

मालूम हो कि यह सीट सवर्ण बाहुल्य इलाके के तहत आता है. दिलमाणो और विवेक ठाकुर दोनों सवर्ण बिरादरी से आते हैं. राजनीति में बहुत कुछ होता रहता है। देखिए न हम अपने गांव से सीधे दिलमाणो देवी के क्षेत्र पहुंच जाते हैं और लोगबाग की बात बीच छोड़कर पार्टी बदलने की बात करने लगते हैं। यही
है असली पालिटिक्स, बाद बांकी जो है सो तो हइए है।

Saturday, October 10, 2015

एक किसान की चुनावी डायरी- 13

दरभंगा से आगे निकलते हुए हम समस्तीपुर की ओर बढ़ते हैं। सुबह का वक्त था, सड़क के किनारे लोगबाग घुमते हुए बतकही कर रहे थे। यहां हमारी पहली बातचीत एक छात्र से होती है जो ट्यूशन पढ़ने जा रहा होता है। हमने पूछा चुनाव का क्या हाल है?  12वीं के उस छात्र ने हमें बताया कि कल्याणपुर जाइए न वहां मामला बड़ा मजेदार मिलेगा आपको, एकदम गणित के सवाल जैसा। यह कहते हुए उसने साइकिल आगे बढ़ा ली।

चुनाव की बातें करते वक्त हम अक्सर नेताओं की बात करते हैं लेकिन असली बात तो मतदाताओं की होती है। मतदाताओं के मन को समझने के लिए उनसे बतकही करने की जरुरत होती है। एक समाचार एजेंसी में काम करने वाले हमारे पत्रकार मित्र इन दिनों बिहार के दौरे पर हैं। उन्होंने बाताया कि लोगबाग इस बार प्रतिक्रिया बेहद नाप-तौल कर दे रहे हैं।

समस्तीपुर में एक कालेज में पढ़ने वाले छात्र रमेश आर्य ने बाताया कि उन्हें राजनीति शास्त्र में दिलचस्पी है। उन्होंने बताया कि आप भले चौक चौराहों पर लोगों की बात सुन रहे हैं लेकिन क्या आपको समस्तीपुर का
इतिहास पता है? रमेश ने बताया कि यह कर्पूरी ठाकुर का विधानसभा क्षेत्र रह चुका है, जिनके नाम पर राजनीतिक दल के लोग फसल लूट रहे हैं।

गौरतलब है कि समस्तीपुर विधानसभा सीट से कर्पूरी ठाकुर 1980 में विधायक रहे थे। इस सीट पर मौजूदा समय में आरजेडी के अख्तरुल इस्लाम सहीन विधायक हैं, जिन्होंने 10 सालों तक विधासक रहे रामनाथ ठाकुर को 2010 में नजदीकी मुकाबले में 1,827 मतों से हराया था। समस्तीपुर में बागी, शाहपुर बघौनी,
आधारपुर जैसे इलाके आते हैं। यहां 2000 से 2010 के बीच रामनाथ ठाकुर जीतते रहे।

समस्तीपुर जाने के क्रम में हमें साइकिल सवार छात्र ने कल्याणपुर जाने की नसीहत दी थी। इसलिए हमने समस्तीपुर बाजार में एक चाय दुकान पर लोगों से कल्याणपुर के बारे में पूछा। बुजुर्ग रामावतार शर्मा ने बताया कि बौआ, कल्याणपुर में मुकाबला चाचा-भतीजा के बीच है।

दरअसल कल्याणपुर में एक तरफ जहां राम विलास पासवान के भाई रामचंद्र पासवान के बेटे प्रिंस राज लोजपा के टिकट पर ताल ठोक रहे हैं, तो दूसरी ओर रिश्ते में उनके चाचा जनता दल (युनाइटेड) के उम्मीदवार व पूर्व सांसद महेश्वर हजारी चुनौती दे रहे हैं। समस्तीपुर के सांसद रामचंद्र पासवान सांसद हैं।

रामावतार शर्मा बताते हैं कि किस तरह राजनीति में रिश्तों को भी भुनाया जाता है। उन्होंने बताया कि लोकसभा चुनाव जैसी स्थिति अभी नहीं है। उनका इशारा मोदी लहर की तरफ था। शर्मा जी ने बताया कि लोगबाग वैसे तो मोदी की बातें कर रहे हैं लेकिन मन में नीतीश कुमार हैं। चाय की चुस्की लेते हुए
वहीं बैठे योगानंद ठाकुर ने कहा कि नीतीश सब मामले में ठीक हैं लेकिन लालू से उन्होंने जो गठबंधन कर लिया न, हमलोगों का मन टूट गया। बाद बांकी उन्होंने काम तो जबरदस्त किया है। सड़क, बिजली सब कुछ बदल चुका है बिहारमें।

इन तमाम राजनीतिक गणित की पहेलियों के बीच सर्वे भी हो रहे हैं कि कौननेता कितना लोकप्रिय है। लोकप्रियता के ग्राफ में नीतीश कुमार अभी भी आगे हैं। विभिन्न मीडिया ग्रुपों के सर्वेक्षण में नीतीश बढ़त बनाए हुए हैं। लेकिन जब रैली की बात होती है और भीड़ की तो जमीन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाजी मार लेते हैं।

समस्तीपुर में लोगों की बातचीत से पता चला कि मामला इस बार आसान नहीं है। राजनीतिक पंडित जो कहें जनता इस बार हर एक कोण पर विचार कर रही है। यहां सब्जी मंडी में एक महिला ने कहा कि लोकसभा चुनाव देखे, अब विधानसभा देख रहे हैं, इसके बाद मुखिया का चुनाव भी होगा। तो मतलब खाली चुनाव। हमलोगोंकी सरकारी सुविधा का खाली खिलौना थमाकर नेता सेब हेलीकाप्टर से उड़ जाते
हैं। हम सब बुड़बक थोड़े हैं। विरोध भी कर सकते हैं हम सब। हालांकि ऐसी बातें हर जगह सुनने को मिलती है और हर चुनाव में ऐसी बातें होती है मतदाताओं की ओर से लेकिन जमीन पर छानबीन करने पर लगता है कि अब हम सब चालाक हो गए हैं । नापतौल कर बोलते हैं और हर किसी को खुश रखने की जुगत में रहते हैं। बाद बांकी जो है सो तो हइए है।

एक किसान की चुनावी डायरी-12

चुनाव के दौरान जब आप यात्रा करते हैं और लोगों की बातें सुनते हैं तो एकबारगी लगता है कि लोगों के भीतर कितना गुस्सा है और फिर लगता है कि क्या हम उस गुस्से को चुनाव के वक्त के लिए ही दबाए रखते हैं? बेगूसराय जिले में पड़ने वाले बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में हमारी मुलाकात जब सुरेश से होती है तो वह कहते सरकार पर और विपक्ष, दोनों से वे परेशान हैं। उन्हें दलों के नारों से दिक्कत है, पार्टी के कामकाज से दिक्कत है।

सुरेश कहते हैं 'आगे बढ़ता रहे बिहार, फिर एक बार नीतीश कुमार' इस नारे से हमको क्या मिलेगा?  यहीं एक चाय दुकान पर हमारी मुलाकात होती है एक छात्र अरविंद सिंह से। वे बताते हैं कि अब आप कोई सवाल करिएगा तो हम पहले ही भांप लेते हैं कि आप पूछना क्या चाहते हैं। अरविंद ने कहा कि चुनाव के वक्त मीडिय़ा की सक्रियता हम सभी के भीतर सोए पत्रकार को जगा देती है साथ ही हम जैसे अनाड़ी को भी चुनावी गणित समझ आने लगता है।

बेगूसराय में हमारी मुलाकात एक हकीम साहब से होती है। उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि बिहार में नीतीश फिर सत्ता में आएं। उन्होंने कहा, ''जहां बिहार है, वहां बहार है। इसके बाद भी बिहार की जनता को लोग बेवकूफ कहते थे, लेकिन नीतीश ने इस धारणा को उलट दिया है। हम चाहेंगे कि नीतीश फिर मुख्यमंत्री बनें।''


हकीम साहेब जहां कहते हैं कि भाजपा गठबंधन में भी जगह-जगह विरोध है। वहीं यहां बस स्टेंड के करीब एक चाय दुकान पर रमेश साहनी से मुलाकात होती है। वे कहते हैं कि गठबंधन में सब कुछ अनुकूल नहीं होता है। सामने वालों का भी बराबर का ध्यान रखना पड़ता है।'

मोदी को लेकर लोगबाग खूब बात कर रहे हैं। यहां एक चौक पर कुछ लोग बतकहीकर रहे थे, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही बात हो रही थी। किताब दुकान चलाने वाले मिथिलेश कहते हैं कि प्रधानमंत्री जी ने जितनी रैली महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली में नहीं की होगी उससे ज्यादा बिहार में करने जा रहे हैं। यहीं पान की दुकान पर एक बूढ़ी महिला मिलती है। तबांकू खरीदने आई उस महिला से जब हमने बात की शुरुआत की तो उन्होंने कहा- बौआ, इलेक्शन टाइट छै। इंदिरा आवास दिला सकते हैं आप...खाली लोग से
बात करते हैं कि कुछ काम भी करते हैं”

उधर, जीतन राम मांझी का कहना है कि बिहार चुनाव में राजग (एनडीए) के सभी सहयोगी दलों में वे ‘सबसे लोकप्रिय चुनाव प्रचारक’ हैं। उन्होंने यह भी दावा किया है कि चुनाव में राजग के अन्य घटक दलों के मुकाबले उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहेगा। उनका दावा है कि हर जगह लोग उन्हें देखना चाहते हैं। मांझी ने दावा किया कि गरीब लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता इतनी ज्यादा है कि लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख राम विलास पासवान ने उनसे अनुरोध किया कि वह अलौली में टेलिफोन के माध्यम से एक चुनावी सभा को संबोधित करें। अलौली से पासवान के भाई और लोजपा के प्रदेशाध्यक्ष पशुपति पारस चुनाव लड़ रहे हैं। सचमुच राजनीति में दावों का बड़ा महत्व होता है। बिहार में तो अभी हर कोई दावा ही कर रहा है।


इन सबके बीच हाजीपुर समाहरणालय मुख्य द्वार के समीप बुधवार को उस समय अजीबो गरीब स्थिति उत्पन्न हो गयी जब राघोपुर विधानसभा का एक निर्दलीय प्रत्याशी सुभाषचंद्र यादव भैंस पर अपना नामांकन करने पहुंच गए स्थिति तब और बिगड़ गयी जब गेट पर पहुंचते ही भैंस बिदक गयी।  प्रत्याशी की दलील
सुनने लायक है। उन्होंने कहा कि वह खांटी यादव हैं, इसी कारण भैंस पर  सवार होकर वह अपना नामांकन करने पहुंचे थे। राजनीतिक गलियारे से निकलकर यदि आप चौक-चौराहों पर जाएंगे तो यह कहानी खूब सुनने को मिलेगी। लोगबाग मिर्च-मसाला लगाकर भैंस वाली कहानी सुना रहे हैं। बाद बांकी जो है सो तो हइए है।

Thursday, October 08, 2015

एक किसान की चुनावी डायरी- 11

हमलोग बचपन में सुनते थे कि कोसी के इलाके की मछलियों का स्वाद दरभंगा-मधुबनी की मछली से अच्छा होता है। बाद में पता चला कि कोसी के इलाके में मछली का बाजार दरभंगा-मधुबनी के बाजार से बड़ा है और सस्ता भी।

मछली के शौकिन लोगों का मानना है कि कोसी के पानी में और उसकी धाराओं में मछलियों के लिए आदर्श खाद्य पदार्थ होता है। कारी कोसी की मछलियां तो इलाके भर में मशहूर हैं। दरअसल यह सब इस कारण कह रहा हूं क्योंकि मछली बाजार घुमते हुए लोगबाग की चुनावी वाणी सुनने को मिल रही है।

सुपौल के मछली बाजार में एक सज्जन अरविंद मोहन कहते हैं कि भाजपा ने तो मछली व्यवसाय को ब़ढ़ाने के लिए बहुत वादा किया है लेकिन नीतीश कुमार ने इतना कुछ पहले ही कर दिया है कि भाजपा जो कुछ भी कह रही है हमलोगों को कम लग रहा है। मछली के साथ-साथ दलों की बातचीत करने का अपना अलग आनंद है।

बाजार में हमारी भेंट मोहम्मद इस्माइल से होती है। उन्होंने मछली पर छिड़ी बहस को बीच में ही रोकते हुए कहा कि क्या आप लालू यादव और नीतीश कुमार की बात करिएगा। हमने हामी भर दी। इस्माइल ने बताया- “ आप मानिए या न मानिए लालू-नीतीश हमें ठग रहे हैं। मैं यह नहीं कह रहा कि भाजपा हमें छोड़ेगी। वह भी यदि सत्ता में आएगी तो ठगती रहेगी। “

मछली के व्यापारी इस्माइल का आकलन है कि लालू ने अपने भीतर के लालू को दबाकर नीतीश को अपना नेता स्वीकार किया है और नीतीश ने सत्ता पाने के लिए लालू का सहारा लिया है। दोनो एक दूसरे के घूर विरोधी हैं, पर मजबूरी में साथ-साथ हैं।

आम लोगों की बातचीतों के आधार पर कभी कभी लगता है कि मतदाताओं के दिमाग में एक साथ कितना कुछ चलता रहता है। सुपौल के जदिया बाजार में भी ऐसी ही बात सुनने को मिली थी। वहां सड़क किनारे पाल्ट्री फार्म चलाने वाले रजनीश ने बताया था कि लालू नीतीश साथ-साथ है, पर दोनो अपनी-अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हैं, ताकि वक्त आने पर एक दूसरे को पटकनी दी जा सके। उन्होंने कहा था कि राजनीति में कुर्सी हासिल करने के लिए बेहद खट्टे समझौते करने पड़ते हैं।

उधर, सीमांचल में रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी में असंतोष उभरकर सामने आने लगा है। लोजपा के कुछ स्थानीय नेताओं ने कहा है कि सीमांचल में पार्टी को कमजोर करने के लिए कुछ लोग साजिश कर रहे हैं। दरअसल पार्टी धमदाहा और बायसी विधानसभा सीट चाहती थी लेकिन इन दोनों सीट पर रालोसपा के उम्मीदवार खड़े हैं। चुनाव के दौरान रूठने-मनाने का खेल तो जारी ही रहेगा।

इन सबके बीच आसमान में हेलीकाप्टर खूब मंडारने लगा है। गांव में लोगबाग अक्सर पूछते हैं कि कितना रुपया खर्च होता होगा हेलीकाप्टर से घुमने में ? लोगों के सवालों का जवाब ढूढ़ने के लिए हमने जब गूगल बाबा का सहारा लिया तो पता चला कि करीब 1.5 लाख रुपये खर्च होते हैं एक घंटे हेलीकाप्टर से हवाई यात्रा करने में। मेरे इस जवाब से सुनील हेब्रम सिर पकड़ लेता है और बोलता है- “इसका मतलब तो यही हुआ न भैया कि चुनाव में तो पैसा बहता है!”

गांव घर में इस तरह की बातें खूब हो रही है। ये लोग यह भी कह रहे हैं कि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है इसलिए हेलीकाप्टर से सबसे अधिक मोदी के लोग ही उड़ रहे हैं।
मछली, सुपौल, सीमांचल, पार्टी में अनबन और हेलीकाप्टर की बातों से इतर पुलिस की मुस्तैदी भी लोगों की जुबान पर है।

 वाहनों की चैकिंग खूब होती है। लोग वाहनों के कागजात लेकर यात्रा करने लगे हैं। हेलमेट पहनकर बाइक चलाते हैं। प्रदूषण जांच का प्रमाण पत्र वाहन में लेकर लोग चल रहे हैं। हालांकि प्रदूषण जांच के नाम पर धांधली भी हो रही है। लेकिन इसके बावजूद यदि ध्यान दिया जाए तो लगता है कि चुनाव हमें अनुशासन का भी पाठ पढ़ाता है, बस समझने की जरुरत है। बाद बांकी जो है सो तो हइए है।

एक किसान की चुनावी डायरी- 10

मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, राजनीतिक दलों की चुनावी गतिविधियां और भी तेज होती जा रही है। बयानों का बाजार गर्म होता जा रहा है। जाति कार्ड का पत्ता फेंका जा रहा है। पहले चरण में समस्तीपुर, बेगुसराय, खगड़िया, भागलपुर, बांका, मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा, नवादा और जमुई जिले की 49 सीटों पर मतदान होंगे। इन इलाकों में लोगबाग विभिन्न  दलों को लेकर अपनी-अपनी बात रख रहे हैं।

भागलपुर जिला के नाथनगर विधानसभा क्षेत्र में यादव और गंगौता जाति की  जनसंख्या अधिक है। भाजपा गठबंधन की तरफ से लोजपा के अमर सिंह कुशवाहा मैदान में हैं। स्थानीय लोग इस फैसले को सही नहीं मान रहे हैं। ममलखा के शंभु यादव ने साफ-साफ कहा, ''हमलोग उनको वोट नहीं देंगे।'' मतलब साफ है यहां कोई नीतीश से नाराज है, तो कोई भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार से खुश नहीं है। यानी नाथनगर सीट पर संघर्ष बराबरी का है।

भागलपुर जिला की सात विधानसभा क्षेत्रों की राजनीतिक गतिविधयों पर पैनी नजर रख रहे पत्रकार साथी ब्रजेश भाई का मानना है कि लोगबाग इस बार सजग  हैं। उन्हें धर्म आदि के नाम पर गुमराह नहीं किया जा सकता है। विक्रमशीला सेतू पार करते ही जैसे ही हम भागलपुर में दाखिल होते हैं हमें गढ्ढ़ों का ढेर मिलता है। एक चाय दुकान पर अनवर भाई से मुलाकात होती है। उनका कहना है कि भागलपुर जिले में सड़क की हालत बदतर है। यहां की सड़कों पर आठ से दस किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गाडि़यां चलती हैं। बेशक नीतीश
कुमार राज्य को अच्छी सड़क देने का दावा करते हैं, लेकिन यहां दावा खोखला  दिख रहा है।

एक किसान भाई सर्वेश से मुलाकात होती है। वे बताते हैं कि सिंचाई की कहीं कोई व्यवस्था नहीं है। किसान परेशान हैं, क्योंकि उनके खेतों में धान सूख रहे हैं। अब जिला मुख्यालय और देहात में पहले की अपेक्षा बिजली अधिक समय तक रहती है। इससे लोग खुश हैं, पर वे नीतीश कुमार को वोट देने के लिए लालायित नहीं हैं। सोच-विचार कर रहे हैं।

भागलपुर जिले के विभिन्न इलाकों में घूमते हुए यह अंदाजा लगने लगता है कि पारंपरिक मतदाताओं के भी टूटने और जुड़ने की प्रक्रिया गुप-चुप तरीके से चल रही है। स्थानीय लोग इस बात से भी हैरान हैं कि नाथनगर और कहलगांव विधानसभा की सीट लोजपा के खाते में दे दी गई।

तिलका मांझी चौक पर पीरपैंती के आशीष यादव बताते हैं कि वहां सीधी लड़ाई भाजपा गठबंधन और महागठबंधन के बीच ही है। जिले में युवाओं के बीच मोदी लहर है। इससे भाजपा की संभावना बनी हुई है। भागलपुर स्टेशन पर रमेश राय  ने बताया कि मोदी की रैली के बाद भाजपा की हालत यहां सुधरी है।

यहां के लोगों को 12 अक्टूबर को अपना प्रतिनिधि चुनना है। सुलतानगंज में रेलवे स्टेशन के पास चाय दुकान पर लोगबाग चुनाव को लेकर बतकही कर रहे थे। यहां एक बुजुर्ग रामचंद्र यादव ने बताया कि  ग्रामीण इलाके की जनता उम्मीदवारों को नाप-तौल रही है। वजह यह है कि जनता मजबूत उम्मीदवार चाहती है, जो उनकी आवाज उठा सके। जनता की नजर में जो बीस ठहरेगा, वह उसे ही वोट देगी।' 

यहीं एक युवा आदर्श सिंह मिलते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में बिहार की स्थिति बदली है। सड़कें बन गई हैं और बन भी रही है। गांव में बिजली भी रहती है। लड़कियां स्कूल जाने लगी हैं। इसके लिए उन्होंने नीतीश कुमार की तारीफ की।

नीतीश-लालू के महागठबंधन और एनडीए में टिकट बंटवारे को लेकर जो असंतोष उभरकर सामने आया है लोगबाग उसकी भी चर्चा कर रहे हैं।  भागलपुर बदल रहा है। चकमक होते इस शहर ने राजनीति के कई आयामों को देखा है। कभी यहां बाहर से लोग पढ़ने आते थे। टीएनबी के पास एक छात्र ने हंसते हुए कहा कि उन्हें नीतीश कुमार की यह बात समझ में नहीं आती है कि वे लालू यादव के साथ रहेंगे और विकास भी करेंगे। विकास शब्द को लेकर लोगबाग नीतीश के साथ नरेंद्र मोदी को भी लपेट रहे हैं। मतदाताओं का रुझान कब किस तरफ जाएगा यह कहना कठिन है , बाद बांकी जो है सो तो हइए है। 

Tuesday, October 06, 2015

एक किसान की चुनावी डायरी- 9

सीमांचल की राजनीति करवटें लेने लगी है। सभी दलों के नेता हवा में उड़ने के लिए अक्सर पूर्णिया स्थित वायुसेना के चुनापुर हवाई अड्डे का इस्तेमाल करने आते हैं और आते-जाते बयान भी देते हैं। चुनाव के वक्त बयानों का अपना अलग ही महामात्य है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का हाल का बयान तो सभी को याद ही होगा।
लालू के विवादास्पद बयान अभी चैनलों की टीआरपी बढ़ा ही रहा था कि तभी मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआईएम) के तथाकथित  विवादास्पद नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने गुजरात दंगों में कथित रूप से शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'जालिम' और 'शैतान' कह दिया और इस तरह वे सुर्ख़ियों में आ गए।
अकबरुद्दीन ने किशनगंज में एक सभा में कहा कि मोदी जालिम और शैतान हैं और 2002 के गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार हैं। तेलंगाना के विधायक और एमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि मेरे समेत एक तबका ऐसा है जो मानता है कि 2002 के गुजरात दंगों के लिए कोई और नहीं बल्कि मोदी जिम्मेदार हैं।

गौरतलब है कि एमआईएम बिहार के मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाके के किशनगंज, पूर्णिया, अररिया और कटिहार जिलों में चुनाव लड़ रही है। राजनीति में बयान कब दिए गए, इसका महत्व है। बिहार चुनाव में तो इस बार लगता है कि सभी दलों के नेता अपनी वाणी से सभी हदें पार कर ही देंगे।

इस तरह के नेताओं के बयानों को लेकर जब हमने गाँव -देहात में लोगों से बातचीत की तो कई रोचक बातें सामने आई। एक महिला ने कहा कि नेताओं की बातों को सुनकर लगता है जैसे टोला में झगड़ा हो रहा हो, मानो किसी की बकरी को पड़ोसी ने उठा लिया हो ...। इस तरह की टिप्पणियों को सुनकर मुझे श्रीलाल शुक्ल का उपन्यास रागदरबारी याद आ जाता है।

दरअसल बयानों के चक्कर में नेताओं की बोली इतनी टेढ़ी हो जाती है कि उस पर कुछ कहना भी मुश्किल हो जाता है। इन सबके आलावा चौक चौराहों पर जिस बात की सबसे अधिक चर्चा हो रही है वह लालू के बेटे तेजेस्वी यादव का महज नौवीं पास होना है।

मेरे गाँव के राजेश महलदार की टिप्पणी सुनने लायक है। राजेश ने कहा- " मैं नौवीं पास हूँ और धान काटकर आलू लगा रहा हूँ। वहीं लालू जी के बेटे तेजस्वी मैट्रिक पास भले ना हो, लेकिन करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं। रेडियो में सुने कि तेजस्वी यादव को करोड़ों रूपया है। करोड़ों में कितने जीरो होते हैं हमको ये भी नहीं पता है। "

गौरतलब है कि तेजस्वी ने 2014-15 के सालाना आयकर रिटर्न में 5,08,019 की आमदनी बताई है। उन्होंने राघोपुर सीट से नामांकन भरा है। नामांकन के साथ तेजस्वी ने शपथ पत्र भी दाखिल किया है, जिसमें उन्होंने अपने को खुद को नन मैट्रिक बताया है। आयोग के समक्ष दायर हलफनामे में तेजस्वी ने दिल्ली के मशहूर दिल्ली पब्लिक स्कूल से 9वीं तक की पढ़ाई पूरी करने का जिक्र किया है।

तेजस्वी यादव की बात और नेताओं के विवादास्पद बयानों के इतर गाम-घर की सबसे बड़ी समस्या पलायन पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है। पलायन बिहार की सबसे बड़ी समस्या है और इसे रोकना एक बड़ी चुनौती है। लेकिन चुनाव के वक्त पंजाब से आने वाली ट्रेनों में अचानक भीड़ बढ़ जाती है। इस गणित को समझना होगा।
गाँव के सुदेश मंडल कहते हैं कि पैसा देकर बाहर काम कर रहे लोगों को लाया जा रहा है। सुदेश की बात में कितनी सच्चाई है, इसके लिए लोगबाग से लंबी बतकही करने की जरूरत है। ऐसा लोकसभा चुनाव के वक्त भी सुना था जब पंजाब में बिहार के कामगारों को वोट डालने के लिए आकर्षित किया जा रहा था। आम्रपाली एक्सप्रेस के जनरल बागी में भीड़ अचानक बढ़ गयी थी ।एक समाचार एजेंसी में काम कर रहे मेरे एक पत्रकार मित्र ने बताया कि आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पंजाब के अलग-अलग क्षेत्रों में करीब 20 लाख बिहारी काम कर रहे हैं। मतलब एक बड़ा वोट बैंक।

इन वोटरों को चुनाव के वक्त घर तक लाना एक बड़ा काम है। ऐसे में इन सभी को कैसे कोई दल अपनी ओर खिंचेगा यह भी एक पॉलिटिकल कहानी होगी। राजनीति में मतदाताओं को लुभाने के लिए आकर्षण के भी कई रूप होते हैं।

आलू के बीज को खेत में लगाते हुए रामजी शर्मा कहते हैं " पंजाब की खेती बिहार से है।"  शर्माजी की बात सुनकर मैं सोचने लगता हूँ कि बिहार के किसानों के भीतर पंजाब की बातें कब सकारात्मक तरीके से उठेगी। चुनाव में किसानी कब प्रमुख मुद्दा बनेगा। बाद बांकी जो है सो हइये है।

Monday, October 05, 2015

एक किसान की चुनावी डायरी- 8

राजनीति में मोड़ बहुत आते हैं और खिलाड़ी लोग मोड़ पर ही रास्ते बदल लेते हैं। कई लोगों को तो इसमें महारत हासिल होती है। मौसम और चुनावी राजनीति को समझना बड़ा कठिन काम है। गाँव का अपना जीवछ कबिराहा बोली में कहता है "सब दल एक समाना"
जीवछ की बात तीन अक्टूबर को उस वक्त सही लगने लगी जब पूर्णिया के मौजूदा सांसद संतोष कुशवाहा ने अपना असंतोष सार्वजनिक कर दिया। मौका देखिये भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पूर्णिया आये थे। हालांकि उन्होंने एक बार भी यह नहीं कहा कि वे पार्टी से नाखुश हैं।

गौरतलब है कि पूर्णिया से जेडीयू सांसद संतोष कुशवाहा ने पार्टी नेताओं को लगभग धमकी देने के अंदाज में कहा है कि सदर विधानसभा सीट से कांग्रेस की इन्दू सिन्हा और कटिहार के कोढ़ा विधानसभा से पूनम पासवान दमदार उम्मीदवार नहीं है लिहाजा इन दोनों सीटों के उम्मीदवार को बदला जाए। उन्होंने कहा कि अगर उम्मीदवार नहीं बदले जाते हैं तो निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन करेंगे।

वहीं दूसरी ओर शनिवार को पूर्णिया वायुसेना के एयरबेस पर जहां एक ओर कांग्रेस  अध्यक्ष सोनिया गांधी से इंन्दू सिन्हा की मुलाकात हो रही थी वहीं अपने आवास पर संतोष कुशवाहा पूनम पासवान और इन्दू सिन्हा का टिकट रद्द करने की मांग कर रहे थे। कुशवाहा का कहना है कि ये दोनों उम्मीदवार दमदार नही हैं और इनके सहारे महागठबंधन दोनों सीटें नही जीत सकता। कहा यह भी जा रहा है कि कोढ़ा पर कुशवाहा की ख़ास नजर थी। राजनीति यही है।

उधर इन्दू सिन्हा का कहना है कि सांसद भाजपा छोड़कर जदयू में गये हैं और वो अंदर से भाजपाई हैं। उन्हें महिला और किसी पार्टी के जिलाध्यक्षों को टिकट दिया जाना अगर गलत लग रहा है तो यह उनकी राजनीतिक समझदारी से जुड़ा मामला है।  उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी ने उन्हे सीमांचल की मजबूत कांग्रेस नेता कहते हुए इलाके का चुनावी कमान संभालने को कहा है।

यह हुई पार्टी की बातें अब चलिए चौक-चौराहों पर। सुशील मोदी की बातों पर लोगबाग खूब बतकही कर रहे हैं। आरएन साव चौक पर सुबह सुबह चाय की चुस्की लेते हुए बुजुर्ग रमेश रंजन कहते हैं " स्कूटी के साथ छोटे मोदी पेट्रोल भी भरा कर देंगे। बड़ा अजीब लगता है। हमें लगता है कि जब पॉलिटिकल लोग कुछ कहते हैं तो कभी सोचते भी होंगे कि क्या वे वादा पूरा कर पाएंगे ?"

चुनाव के वक्त बगावत भी एक मुद्दा बन जाता है। पूर्णिया से आगे बढ़कर लखीसराय की बात करते हैं। वहां हमारे एक मित्र आनंद शेखर हैं। उन्होंने कहा कि गिरिराज सिंह की प्रतिष्ठा लखीसराय में दांव पर हैं। भाजपा के विजय सिन्हा को चुनौती अपने ही दल के बागी सुजीत कुमार से मिल रही है।

इन सबके बीच विकास मॉडल पर चर्चा कहीं होती है तो कहीं नहीं भी हो रही है। किशनगंज के असफाक आलम कहते हैं कि यह चुनाव मोदी बनाम नितीश-लालू है। उन्होंने बताया कि वोटर कहीं इस बात को लेकर कन्फ्यूज है कि लालू यादव अपने किस रूप में अब सामने आएंगे। लालू एक फेक्टर की तरह चौक चैराहों पर चर्चा में शामिल हैं।

पुर्णिया के लाइन बाजार में इलाज के लिए फारबिसगंज से आये अलाउद्दीन कहते हैं "पहले चरण के बाद हम कुछ कह पाएंगे। हम सब इन्तजार में हैं । वैसे सीमांचल में अच्छा अस्पताल होना चाहिए। बहुत सारी जरूरतें हैं। स्कूटी से कुछ नहीं होने वाला है। हम नितीश कुमार से भी चाहेंगे कि वे यदि फिर कुर्सी सँभालते हैं तो कुछ ख़ास करें इलाके के लिए। सुशील मोदी से भी यही चाहेंगे हम।"

ओवैसी के बारे में जब हमने अलाउद्दीन से पूछना चाहा तो उन्होंने चुप्पी साध ली। लोगों से बातचीत कर ऐसा लगता है कि जमीनी तौर पर भी लोगों ने अपना पालिटिकल सेन्स डेवलप कर लिया है, जो बढियां बात है।

गाँव पहुंचकर जब जोगो काका को यह सब सुनाता हूँ तो वह कहते हैं " हम खेत में मगन हैं। हमारी अपनी दुनिया है। कोई आये जाये क्या फर्क पड़ता है। " सबकी बातें सुनकर लगता है चुनाव हमें कितना कुछ सीखा रहा है। बाद बांकी जो है सो तो हइये है।

Sunday, October 04, 2015

एक किसान की चुनावी डायरी- 7

कबीर की एक वाणी है- अनुभव गावै सो गीता। बिहार में चुनावी बयार के वक्त जब मैं घुम-घुमकर लोगों से बात करता हूं तो लगता है कि सचमुच कबीर की वाणी हमें राह दिखाती है। समाचार चैनलों पर चुनावी गणित सुलझाते विशेषज्ञों से इतर चौक चौराहों पर ऐसे लोग मिल जाते हैं जिनके पास ग्राउंड पॉलिटिक्स के ढेर सारे अनुभव हैं। ये वे लोग हैं जो खेती-बाड़ी करते हैं, दुकानदारी करते हैं...लेकिन उनके पास विशेषज्ञ का प्रमाण पत्र
नहीं है!

सिमराही बाजार में चाय दुकान चलाने वाले शिवेसर कहते हैं “बिहार की राजनीति जात से चलती है। यहां मुखिया का चुनाव भी जाति के ढेर सारे समीकरणों के आधार पर लड़ा जाता है। ये तो विधायक का चुनाव है। चुनाव से पहले जो भी आप छापते हैं या टीवी वाले दिखाते हैं उसका असर शहरी लोगों पर होता होगा, हम सब पर नहीं होता है।“

शिवेसर की बातों पर गौर करने पर पता चलता है कि कैसे ग्राउंड पर लोग चुनावी गणित को समझ रहे हैं। पत्रकारिता में ग्राउंड जीरो का मतलब शिवेसर जैसे लोग बेहतर तरीके से बता सकते हैं। उसी चाय दुकान पर अखबारों को हाथ में लिए लोग टिकट, चुनाव से अधिक सड़क –बिजली की बात करते मिले। यह मुझे अच्छा लगा।

कंप्यूटर साइंस का एक छात्र अभिनव बताते हैं कि चुनाव से पहले कुछ भी बताना टेढ़ी खीर है। फिर भी कयासों के जरिए राजनीति को पत्रकारिता में बड़े दिलचस्प तरीके से परोसा जा रहा है। पटसन की खरीद बिक्री करने वाले रमेश साह कहते हैं- “नीतीश आएं या कमल खिले, इस बार का बिहार चुनाव राष्ट्रीय स्तर की अहमियत रखता है। हर कोई बिहार की बात कर रहा है। हम सब इसी से खुश हैं।”

कालाबलुआ से पहले इंदरनगर इलाके में हमारी मुलाकात एक बुजुर्ग किसान श्रीचंद से होती है। आलू के लिए खेत तैयार कर रहे श्रीचंद चाचा ने बताया कि बिहार की मौजूदा राजनीति को समझने के लिए पहले लालू यादव को समझना होगा। उनके मुताबिक लालू बिहारी राजनीति के ‘साहेब’ हैं। इस तरह की बातें  अक्सर टेलीविचन चैनलों पर विशेषज्ञों की मुख से य फिर अखबारों में विशेष कॉलम में पढ़ने को मिलता था लेकिन एक खेतिहर की जुबान में लालू यादव की मेकिंग सुनना मुझे रास आया।

श्रीचंद आगे बताते हैं कि लालू कैसे एक जमाने में बिहार में पिछड़ों नायक बन गए थे। उनकी बोली बाली कैसे लोगों को खींच लेती थी। हम जिसे सेंस ऑफ ह्यूमर कहते हैं दरअसल श्रीचंद उसी की बात कह रहे थे। जब हमने पूछा कि अब उनके बारे में आप क्या कहेंगे, इस सवाल पर उन्होंने कहा- इस चुनाव में उनकी राजनीतिक विरासत दांव पर लगी है। बेटे के चक्कर में कहीं लालू सबकुछ गवां न दें।

इस चुनाव में यदि लालू की ‘ब्रांड पॉलिटिक्स’ की बात कर रहा है तो जरुर राजद के लिए यह अच्छी खबर है। दूसरी ओर शनिवार को पूर्णिया में रैली को संबोधित करते हुए भाजपा अध्य क्ष अमित शाह ने लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार पर हमला जारी रखा। शाह ने कहा 'अगर राज्य में लालू और नीतीश आएंगे तो जंगलराज-2 आएगा, लेकिन भाजपा और उसके सहयोगी राज्य में जंगलराज-2 नहीं आने देंगे।' उन्होंने प्रदेश में दो तिहाई बहुमत से एनडीए की सरकार बनने का विश्वास भी जताया।

राजनीति यही है। ग्राउंड पर लोगों की बातें सुनिए और फिर किसी चुनावी सभा में नेताओं की बातों पर नजर घुमाइए। तस्वीरें साफ हो जाएंगी। वैसे नीतीश कुमार को लेकर भी लोग खूब चर्चा कर रहे हैं। अररिया जिले के हासा कमालपुर चौक पर एक किराना दुकानदार परमानंद साह ने बताया कि आज नीतीश भले ही लालू
के साथ चले गए हों लेकिन उनकी पहचान लालू विरोध से ही बनी है। उन्होंने बताया कि लालू दौर के बाद बिहार में क्या बदलाव आया और राज्य में कानून व्यवस्था कैसे बेहतर हुई, यह नीतीश कुमार के अलावा कौन बता सकता है।

इस तरह के बयानों को सुनकर लगता है कि जमीन पर आकर हम यदि लोगों की बातों को सुनेंगे तो एक बेहतर रिपोतार्ज बन सकता है, जिसमें बिहार की अलग-अलग छवि को हम संकलित कर सकते हैं। कभी कभी मुझे लगता है कि राजनीति खुद में एक ‘शानदार रिपोर्ताज और किस्सागोई है’।

इन दिनों लगातार घुमते हुए यह अहसास हो चुका है कि बिहार चुनाव में सबसे बड़ा फैक्टर यदि कुछ है तो वह है जाति। गूगल करने से पता चला कि यहां 14 फीसदी यादव हैं और 15 फीसदी दलित वोटर हैं, इन दोनों को लेकर ही राजनीति हो रही है। किशनगंज के दिबाकर बनर्जी कहते हैं कि बिहार की राजनीति को
समझना है तो जातीय समीकरणों की पड़ताल जरूरी है।

चुनाव बतकही करते हुए लगता है कि हमें 1990 में राज्य में कांग्रेस के पतन के बाद की राजनीति को भी समझना होगा। राजनीति हमें अक्सर कई चीजें समझाती हैं। बाद बांकी जो है सो तो हइए है । 

Saturday, October 03, 2015

एक किसान की चुनावी डायरी- 6

पूर्णिया से दरभंगा के लिए हमने चमचमाती फोर लेन सड़क को चुना। अररिया -फारबिसगंज , सुपौल , झंझारपुर होते हुए हम दरभंगा पहुंचे। दरभंगा को लेकर कोई कुछ भी कहे हम तो इस शहर को महाराजा के किला के लिए ही जानते हैं। रास्ते जहां भी रुके लोगबाग भाजपा के विजन डाक्यूमेंट की बात करते मिले।
चुनावी घोषणापत्र को लेकर लोगबाग खूब चर्चा करते हैं, चाहे वह किसी पार्टी का हो। दरभंगा पोखरों का शहर है। इस बार गंदगी कम दिखी। यहां के सांसद भाजपा के कीर्ति झा आजाद हैं। हालांकि कोई उनकी बात करना नहीं चाहता है। भाजपा ने इस बार सिटिंग विधायक को ही टिकट दिया है। बेला चौक पर श्याम मिश्र ने कहा कि वे एमपी से खुश नहीं हैं लेकिन विधायक से खुश हैं।

श्याम मिश्र बता रहे थे कि दस विधानसभा क्षेत्र वाले दरभंगा जिले में इस बार कुछ दिग्गज नया रिकार्ड बनाने के लिए चुनाव मैदान में उतरेंगे तो कुछ रिकॉर्ड बचाने की कवायद करेंगे। इससे चुनाव रोचक होने की संभावना है। दरभंगा को लेकर पहले मन में जो छवि थी वह गंदगी की थी लेकिन इस बार साफ़ सुथरा बहुत कुछ लगा।

जाति के जाल में लोग कम फंसे मिले। दिल्ली में जब पढ़ाई कर रहा था तब मुखर्जीनगर में एक पंजाबी दोस्त कहता था कि दरभंगा का नाम सुनते ही उसके मन में मिथिला वाली मिठास का एहसास होता है। दरभंगा एक शहर नहीं बल्कि मिथिलांचल की हृदय स्थली है। बात मिथिला की होती है तो इसकी सीमा सिर्फ दरभंगा या मधबुनी तक सीमित नहीं है।  भौगोलिक रूप से मिथिला का इलाका सीतामढ़ी से लेकर सीमांचल तक फैला हुआ है।
टॉवर चौक पर हमारी मुलाक़ात सरफराज से होती है। उन्होंने बताया कि केंद्र में इस इलाके से किसी को मंत्री नहीं बनाया जाना मुद्दा है। ब्राह्मण वोटों के अलावा इलाके में मुस्लिम वोट भी अच्छी तादाद में है। कटहरबाड़ी के जितेंद्र नारायण बताते हैं कि यादवों का एक तबका इस वक्त बीजेपी के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ दिख रहा है। इसलिए यादव वोट बैंक में सेंध तय है।

राजकुमारगंज के अरविन्द बताते हैं कि बीजेपी को लेकर बिहार में ब्राह्मणों की कसमसाहट अब सामने आ रही है। उन्हें लगता है कि बीजेपी ने केंद्र में उनके साथ अन्याय किया है। हालांकि उनका ये लगना अभी भी ‘फुसफुसाहटों’ में है।

दरभंगा में श्यामा मंदिर के प्रांगण में हमेशा की तरह लोगबाग दिखे। दरभंगा महाराज की पीढ़ियों की समाधि यहीं है और मां काली का भव्य मंदिर भी। यहां भी लोगबाग चुनाव को लेकर बतकही कर रहे हैं।
मिथिला विश्वविद्यालय के छात्र महेश मिश्र कहते हैं "नितीश कुमार ने काम तो बहुत किया है लेकिन लालू यादव से उनके जुड़ जाने हम सब दुखी हैं। जंगलराज की बात तो नितीश कुमार ने ही शुरू किया था। " दूसरी ओर एक अन्य छात्र शंकर झा कहते हैं - " भाजपा से ब्राह्मण नाराज लगते हैं, उस पार्टी से नाराज हो रहे हैं, जिसे ब्राह्मण-बनियों की पार्टी कहा जाता है।"

जाति को लेकर लोगों की बातें सुनते हुए कभी कभी लगता है कि हम किस दौर में जी रहे हैं। राजनीति हमें किस ओर ले जा रही है। नीतीश कुमार ने अपने सात सूत्री विज़न डाक्यूमेंट में दावा किया है कि उनके कार्यकाल में बिहार के 39,000 बसावटों में से 36000 बसावटों में बिजली पहुंचा दी गई है और 2016 तक हर घर में मुफ्त कनेक्शन दे देंगे। वहीं एक अक्टूबर को भाजपा ने भी अपने विजन डाक्यूमेंट में कहा है कि एक साल के भीतर हर गांव हर घर में बिजली देंगे। खेती के लिए अलग फीडर से बिजली देंगे। वादों का बाजार अभी गर्म है।

कामेश्वर साहनी बताते हैं कि भाजपा कह रही है यदि वह सत्ता में आएगी तो सरकारी तालाबों को सिर्फ मछुआरों को ठेके पर दिया जाएगा। मछुआरों की ट्रेनिंग की व्यवस्था की जाएगी। मछली पालन एवं मछली की खेती के लिए विशेष अनुदान की व्यवस्था करेंगे। लेकिन सत्ता में आने  के बाद कोई कुछ नहीं करता है।
दरभंगा और आसपास के इलाकों पर नजर घुमाते हुए लगता है कि हर कोई भाजपा और राजद की लड़ाई के बीच मारवाड़ी की बात कर रहा हो। लेकिन इन सबके बीच दरभंगा महराज का किला मुझे अपनी ओर खींचता रहा दिन भर। बाद बाँकी जो है सो हइये है।

एक किसान की चुनावी डायरी - 5

चुनाव के दौरान हर कोई अपनी बातें रखता है। पार्टी के लोग पार्टी की बातें करते हैं, जिन्हें टिकट मिलता है वे विकास की बातें करते हैं, जिन्हें टिकट नहीं मिलता वे पार्टी की बुराई करते हैं। मतलब हर कोई राजनीतिक अलाप में जुट जाता है। राजनीति यही है। ऐसे में आपका यह किसान चुनाव की बातें गाम-घर की धूल उड़ाती सड़कों के बहाने करते रहना चाहता है। मैं केवल राजधानी पटना की बातें नहीं करना चाहता, वहां से कोसों दूर
चौक-चौराहों, गांव-घर की बात करना चाहता हूं। लुभावनी तस्वीरों के जरिए पटना को देखने सुनने वालों को देहाती दुनिया चुनावी लीला सुनाना चाहता हूं।

लोगबाग इन दिनों जिला मुख्यालयों से गांव की तरफ जाने वाली सड़कों की बात करना चाहते हैं । पूर्णिया जिला के कृत्यानंदनगर प्रखंड के रामपुर इलाके में हमारी मुलाकात मोहम्मद इरफान से होती है। वे बताते हैं किस तरह पगडंडी ही उनका रास्ता है। मतलब विकास का गणित गांव में क्या मायने रखता है, इस पर सोचने की जरुरत है।

चिमनी बाजार के बुजुर्ग रइस के सवाल को भी सुनने की जरुरत है। वे पूछते हैं- ‘बाबू, इस बार मुसलमान मुख्यमंत्री बनेगा क्या?’  रइस चाचा के सवाल को सुनकर हमने दिमाग पर जोर दिया तो पता चला कि बिहार में अबतक मुस्लिम मुख्यमंत्री एक ही बने हैं- अब्दुाल गफूर। वे जुलाई 1973 से अप्रैल 1975 तक मुख्यमंत्री रहे। राजनीतिक सवालों की झड़ी अक्सर हमें एक मोड़ पर खड़ा कर देती है, जहां हमें काफी कुछ समझना बुझना पड़ता है।

चुनाव के दौरान जब आप यात्रा करते हैं और लोगों से बात करना चाहते हैं तो पहली बार तो अक्सर कई लोग कन्नी काट लेते हैं लेकिन धीरे-धीरे वे खुलने लगते हैं। अरिरया जिले के रानीगंज बाजार में एक किसान से बात हो रही थी। वह पटसन बेचने आया था। हमने पूछा कि माहौल कैसा है? उनका जवाब था- गर्दा! अब मैं सोचने लगा कि चुनाव में गर्दा किसका उड़ेगा!  दरअसल राजनीतिक सवालों पर हर कोई गंभीर नहीं हो रहे हैं। लोग खुलकर नहीं बोलना चाहते हैं। गौरतलब है कि अररिया जिले में भाजपा ने अपने कुछ सीटिंग विधायकों का
टिकट काटा है।

रानीगंज एक बड़ा बाजार है। यहां के चाय दुकान पर बातचीत के दौरान लोगबाग प्रत्याशियों की चर्चा कम और चुनावी नारे की बात ज्यादा कर रहे थे। ‘झांसे में न आएंगे, नीतीश को जिताएंगे’, ‘न जुमलों वाली न जुल्मी सरकार, गरीबों को चाहिए अपनी सरकार’, ‘युवा रूठा, नरेंद्र झूठा’ , ‘हम बदलेंगे बिहार, इस बार भाजपा सरकार’, ‘जैसे नारों को लेकर लोग बातें कर रहे थे।

इन लोगों की बातें सुनकर यह अंदाजा तो जरुर लगा कि इस बार राजनीतिक दलों के ब्रांड मैनेजरों के काम काजों पर भी लोगों की नजर हैं ! यहां एक युवक परितोष कुमार से मुलाकात होती है। उसके हाथ में एंड्रायड मोबाइल था और वह फेसबुक पर सक्रिय है। परितोष ने कहा कि वह राजनीतिक दलों के फेसबुक पेज पर आता-जाता रहता है। वैसे दलों को सोशल नेटवर्क पर जितना लाइक मिल जाए, काम तो ‘वोट’ ही आता है। फेसबुक से चुनाव जीता नहीं जा सकता J  परितोष से बातें कर मैं अपने गांव की ओर निकल पड़ा।

शाम हो चुकी थी। रानीगंज से बौंसी आते वक्त एक महादलित बस्ती पर नजर जाती है कि तभी मन के भीतर अदम गोंडवी बज उठते हैं- “आइए और महसूस कीजिए जिंदगी के ताप को ... जिस गली में भुखमरी की यातना से उबकर ..मर गई फुलिया बिचारी कल कुएं में डूबकर।” वैसे चुनाव के वक्त भावुक होने का कोई फायदा नहीं है।

अररिया जिला में बौंसी आता है। यहां से पूर्णिया जिला की सीमा 10 किलोमीटर है। चुनाव के वक्त वाहनों की चेकिंग बहुत ज्यादा होती है। पुलिस मुस्तैदी से अपना काम कर रही थी। चेकिंग के दौरान जहां हम रुके थे वहां
एक मोटरसाइकिल सवार ने कहा- ‘यदि ऐसी मुस्तैदी हमेशा पुलिस दिखाए तब यकिन मानिए बिहार बदल ही जाएगा ‘ चुनाव के वक्त मुद्दों के अलावा कई चीजों पर नजर जाती है। बदलते बिहार की बातों से इतर गांव बदलने की बातें हो या फिर डिजिटल इंडिया की बातें , अभी बहुत कुछ होगा। हम जिस सड़क सड़क से यात्रा  कर रहे थे वहां कभी एक रानी हुआ करती थी- रानी इंद्रावती। पूर्णिय़ा गजेटियर में इसका उल्लेख है।  उन्होंने इस इलाके में कुंआ, तलाब और सड़क को लेकर खूब काम किया था।

रानी इंद्रावती के कामकाजों के कुछ अवशेष अभी भी हैँ। उनका कार्यकाल 1802 के आसपास था। मुगल शासन का अंत हो चुका था और ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी मिल चुकी थी। चुनाव के वक्त इस इलाके में घुमते हुए मुझे रानी इंद्रावती के बारे में और जानने की इच्छा हो रही है लेकिन अभी तो चुनावी बयार है। कहां इतिहास और कहां राजनीति !  बाद बांकी जो है सो तो हइए है।