Friday, September 06, 2024

डाक से ही कविताओं से भरी किताब : बख्तियारपुर

किताबें जब डाक के मार्फत आती है तो उसका सुख अलग ही होता है। डाक से आई किताब की यात्रा हमें चौंका देती है, खासकर तब जब आपको पता नहीं होता है कि जिसने यह किताब भेजी है, डाक से, उसे आप पहचानते भी नहीं! ऐसी ही एक किताब , कविताओं से भरी हाथ आई है- बख्तियारपुर। 

यह विनय सौरभ की किताब है। कविता संग्रह है, जिसमें स्थानीयता लबालब भरी है। 
एक पाठक के तौर पर उन कविता, रिपोर्ट्स, कहानियों से मुझे खास लगाव है, जिसमें संबंधों और स्मृतियों का लेखा-जोखा रहता है। विनय जी से अपनी मुलाकात नहीं है, न ही परिचय। फेसबुक पर हाल ही में उनसे जुड़ना हुआ। अब जब लिखना-पढ़ना लगभग छूट सा गया है, ऐसे दौर में जब डाक से किताब आती है तो स्मृति में पुराने दिन घुमड़ने लगते हैं। 

यह कविता संग्रह बार-बार पढ़ने का सुख देती है। विनय सौरभ को जितना पढ़ा, उससे यही मालूम हुआ कि वे स्मृतियों के कवि हैं। याद को वे एक खास तरीके से बुन देते हैं, स्वेटर की तरह। और जब आप उन स्मृतियों को पढ़ते हैं तो एक गर्माहट का अहसास होता है। 

इस संग्रह में एक कविता है- हाट की बात

‘हाट जाना मुझे मेरे पिता ने सिखाया
मैंने उनके साथ कई शहर बदले
पर हाट जाना बदस्तूर जारी रहा
सोलह बरस पहले ,
जिस दिन आखिरी सांस ली पिता ने
वह रविवार का दिन था और मैं अपने गांव की हाट गया था....’

संग्रह में मौजूद कविताओं का पढ़ते हुए लगता है कि स्थानीयता के प्रति मोह रखता, स्मृतियों को अभिव्यक्त करता यह कवि अपने समय को न केवल परख रहा है, बल्कि उसका हिसाब किताब भी लिख रहा है।

अपना मानना है कि ऐसा लेखक जहां भी जाएगा, गांव, शहर, कस्बा, टोला, उसे पढ़कर लिख देगा। आप इस कवि के साथ स्मृतियों के जरिए अपने अपने हिस्से की यात्रा कर सकते हैं। उनकी कविताओं में डुबकी लगाते हुए लगता है कि स्मृतियों से लबरेज़ विनय सौरभ के पास एक वृहत स्मृति कोश है, जिसमें मानवीय रिश्तों का लेखा-जोखा है।

विनय भाई ने इस संग्रह में गर्व से स्थानीयता को चित्रित किया है। इस संग्रह से अपना लगाव इस वजह से भी है क्योंकि इस किताब में पिता को लेकर भरपूर कविताएं हैं। 

उन सब कविताओं को पढ़ते हुए मैं बाबूजी के करीब पहुंच जाता हूं। पिता के कई रूप हैं जिन्हें कवि ने देखा है। साथ ही पिता के साथ किये गये व्यवहार, पिता की मजबूरियाँ, पिता के साथ बहनों के रागात्मक रिश्तों का उसे जो कुछ अनुभव हुआ और उसे उसने कविताओं में ढाल दिया है, सहजता से,  बिना किसी दिखावे के।

एक तरफ़ पिता के जाने के बाद खूँटी पर टँगी और पसीने से भीगी उनकी क़मीज़ ऊर्जा और विश्वास देती है, बहनें पिता के लिए सबसे ज़्यादा प्रतीक्षारत रहती हैं और ‘पिता जब घर आते हैं थोड़ी सी संभावित ख़ुशी लिये अपने चेहरे पर तब कल्पना की उडानें भरने लगती हैं बहनें’ तो दूसरी तरफ़ मजबूरियों में घिरे पिता जब थके कदमों से घर लौटते हैं तो दार्शनिक बन जाते हैं, जिसे कवि ने कुछ यूं उकेर  दिया : 

‘दादी से पूछेंगे/ उसके स्वास्थ्य के बारे में/ छोटे भाई से पूछेंगे स्कूल और पढ़ाई के बारे में/ माँ से पूछेंगे टखने और कमर के दर्द के बारे में’, लेकिन वे कभी नहीं बताएँगे कि ‘लड़के वालों ने क्या कहा !’

पिता के धैर्य और सामर्थ्य की कोई सीमा नहीं है। ‘पिता की शवयात्रा में बातचीत’ में कवि की दर्ज पंक्तियाँ गवाह हैं- 

‘लोगों ने तो यहाँ तक कहा- यह सिर्फ़ मृत्यु से हारा!/ बहन ने भी यही कहा था/ क्योंकि कई बीमार रातों का अनुभव/ उसके पास था/ पिता को मृत्यु के साथ संघर्षरत देखते रहने का।’

मैं इन दिनों उनकी यह कविता बार-बार पढ़ रहा हूं। मुझे याद है जब बाबूजी का निधन हुआ तो उनके शव को लेकर पूर्णिया से चनका जा रहा था, उनके शव संग दो लोग और थे वाहन में, एक तुलसी का पौधा था। जो संग थे वे बाबूजी को अपने जीवन से जोड़कर याद कर रहे थे। मैं बस सुन रहा था। 

विनय सौरभ भाई की कविताओं को पढ़ते हुए लग रहा है कि उन्होंने मेरे मन को लिख दिया है। उस दिन कुछ कुछ यही सब मन में चल रहा था। पिता की शव यात्रा के साथ मन के भीतर जो कुछ चल रहा था, लग रहा है, विनय सौरभ भाई ने उसे उकेर दिया। 

विनय सौरभ भाई की कविता में वैसे भी पिता हैं जो पुत्र के शहर में बस जाने के बाद नितांत अकेले हो जाते हैं। ऐसे ही एक दोस्त के पिता से संभावित मुलाक़ात के बहाने कवि बहुत कुछ कह जाता है। 

विनय सौरभ की इस संग्रह में कुल 88 कविताएँ हैं। सभी कविताएँ गहरे छाप वाली है। कथात्मक शैली में वे बेहद सहज तरीके से अपनी बात कहते गए हैं। उनकी हर एक कविता में उदासी भी है और रिश्तों का तानाबाना भी है।

और चलते चलते इस संग्रह की मेरी प्रिय कविता: 
'ताड़ के हाथ पंखे ' की अंतिम पंक्ति को पढ़िए और सोचिए कि हम कहाँ जा रहे हैं-

मेरे पूर्वजों ने 
जिन्होंने ताड़ के हजारों पेड़ लगाए 
क्या सोचा होगा कभी 
कि एक दिन उन्हीं का खून 
इधर- उधर भटकेगा 
वह भी ताड़ के पंखों के लिए!!
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किताब: बख्तियारपुर
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन 
मूल्य: ₹250


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