Wednesday, December 23, 2020

बिहारी किसान

कई बार लगता है कि लिखना चाहिए, फिर गेहूं - मक्का में लग जाता हूं। लेकिन आज एक पत्रकार साथी का फोन आया, उनका सवाल किसान आंदोलन और उसमें कहीं भी न दिख रहे बिहारी किसान को लेकर था। उनसे लंबी बात हुई। उनका सवाल वाजिब था कि बिहार के किसान चुप क्यों हैं?  

ऐसे सवाल मुझे मोड़ पर खड़े कर देते हैं, जहां से सारे रास्ते अनजान लगने लगते हैं। दरसअल मेरा मानना है कि बिहार के सभी जिले से किसान गायब हैं, मतलब एब्सेंट फार्मर। यह शब्द कुछ वैसा ही है जैसा Absentee landlord होता है। ऐसे में जो बिहार में किसानी कर रहा है, उनकी संख्या अब कम ही बची है।

आप किसी भी गांव में घूम आइए, खेती में लीज़ सिस्टम आपको दिख जाएगा। एकड़ के हिसाब से जमीन मालिक किसान से सालाना पैसा लेते हैं, ऐसे में आप पूछ सकते हैं कि किसान कौन हुआ? जोतदार या फिर जमीन मालिक। कहीं न कहीं यह भी एक वजह है कि किसान का कोई संगठन बिहार में दिखता नहीं है।

आप उन लोगों से बात करिए, जिनके घर में पहले खेती बाड़ी हुआ करती थी, वह आपको बताएंगे कि पलायन केवल श्रमिक वर्ग का ही नहीं हुआ है बल्कि जमीन मालिक किसान परिवारों का भी हुआ है। बिहार में पिछले २० साल में बड़ी संख्या में ऐसे लोगों का खेती से मोह भंग हुआ है जिनका घर परिवार पहले खेती बाड़ी से ही चलता था।

पलायन की जब भी बात होती है तो हम श्रमिक की बात करते हैं जो पंजाब, दिल्ली या अन्य राज्यों में दिहाड़ी करने जाते हैं, जो स्किल्ड लेबर कहलाते हैं। लेकिन हम किसान परिवार के पलायन पर एक शब्द नहीं लिखते हैं या कोई आंकड़ा जारी नहीं करते हैं। हमें इस पलायन को समझना होगा।

आप उस परिवार से बात करें जो पहले 10-15 एकड़ जमीन पर खेती करता था। पहले घर के बच्चे पढ़ने के लिए बाहर जाते हैं, फिर नौकरी करते हैं और इसके बाद अपने माता - पिता को साथ ले आते हैं। वह खेती वाली जमीन को गांव में छोड़ बस जाते हैं शहर में। यह एक अजीब तरह का पलायन है। 

जमीन पर जो खेती करते हैं, वे किराया देते हैं। बात का एक सिरा यहां उस किराया देने वाले किसान से भी जुड़ा है। वह भी दरअसल माइग्रेंट लेबर ही है। फसल लगाकर वह भी निकल जाता है दूसरे राज्य में दिहाड़ी करने। वह हर साल कमाने के लिए बाहर जाता है, क्योंकि उसे खेती के लिए पैसा चाहिए।

बिहार में किसान का कोई भी मोर्चा नहीं होने की एक वजह यह भी है। दरसअल गाम का गाम खाली पड़ा है। बड़े जोतदार नौकरी पेशा हो गए हैं और उनकी जमीन पर जो फसल उगाता है, वह शायद खुद को किसान मानता ही नहीं है। बिहार में किसानी की असल पीड़ा यही है, कटु है लेकिन सत्य यही है।

आप मंडी, भाव आदि की बात करते रहिए लेकिन किसान के नाम पर बिहार में आंदोलन राजनीतिक दल के लोग ही करेंगे, किसान चुप ही रहेगा। दिल्ली, पटना में बैठे लोग जो आंकड़ा जारी कर दें लेकिन बिहार में किसानी करने वाले चुप ही रहेंगे। 

2 comments:

Safai Sena said...

Fully Agree

ARUNANAND said...

Sahi hai