साल 1925, महीना अक्टूबर ही था। गांधी जी पूर्णिया के दौरे पर थे। बापू मोटर कार से अररिया जा थे, इसी य़ात्रा के दौरान वह कुछ देर के लिए रानीपतरा में ठहरे थे। बापू की स्मृति में रानीपतरा स्थित सर्वोदय आश्रम में उनकी प्रतिमा स्थापित है। आज बापू की 151 वीं जयंती के अवसर पर हम सब उसी रानीपतरा में इकट्ठा हुए।
पूर्णिया जिला प्रशासन ने आज 2 अक्टूबर को बापू की जंयती पर मतदाता जागरूकता दौड़ का आयोजन किया था। पूर्णिया पूर्व प्रखंड से रानीपतरा की दूरी सात किलोमीटर है। इस दौड़ में 400 से अधिक युवा शामिल हुए। पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार दौड़ में शामिल थे और उन्होंने सात किलोमीटर की दौड़ पूरी की। कार्यक्रम की शुरूआत और अंत दोनों में उन्होंने कहा कि बापू के बिना कुछ भी संभव नहीं है।
गांधी जयंती पर आयोजित इस दौड़ के कई मायने निकाले जा सकते हैं। आगामी चुनाव को लेकर मतदाता जागरूकता अभियान को आप इससे जोड़ कर देख सकते हैं। लेकिन मेरे लिए यह दौड़ गांधी के सादगी का प्रतीक है, दौड़ते हुए हम सब एक दिख रहे थे। इस लोकतांत्रिक देश में जब सवाल पूछने पर हर कोई चुप्पी साधने लगा है, जब सत्ता, नशे की तरह व्यवहार करने लगी है, ऐसे में वक्त में बिना तामझाम के सड़क पर दौड़ते अधिकारी और लोगबाग एक ऐसी दुनिया की तस्वीर दिखा रही थी, जिसे आप मेरा भरम भी कह सकते हैं, मेरे मन का सच भी कह सकते हैं।
निजी तौर पर बापू की सादगी मुझे खींचती है। कोई आदमी इतनी ऊंचाई पर पहुंचने के बाद इस तरह की सादगी कैसे बनाए रख सकता है, यह एक बड़ा सवाल है। महात्मा ने सादगी कोई दिखाने या नाटक करने के लिए नहीं अपनाई थी। यह उनकी आत्मा से उपजी थी। उनकी सादगी किसी इवेंट मैनेजर का रिमोट कंट्रोल नहीं था, यह बापू का जीवन था, जिसे आज ब्रांड के तौर पर कोई पेश कर रहा है।
आज की सुबह इसलिए भी खास रही कि हम उस माटी को स्पर्श करने पहुंचे, जहां कभी बापू आए थे। ऐसे वक्त में जब बात करने का लहजा लगभग बदल चुका है, गुस्सा हम सब पर हावी है, ऐसे वक्त में एक सुबह बापू की तस्वीर और प्रतिमा के साथ सेल्फी लेते पूर्णिया जैसे शहर के युवाओं को देखकर एक उम्मीद तो जगी ही।
पूर्णिया में बापू तीन दफे आए थे। 1925, 1927 और 1934 में गांधी जी यहां आए थे। यहां एक घटना का जिक्र जरूरी है। 13 अक्टूबर 1925 को बापू ने जिला के बिष्णुपुर इलाके का दौरा किया था। बापू को सुनने बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे। शाम को गांधी जी ने स्थानीय ग्रामीण श्री चौधरी लालचंद की दिवंगत पत्नी की स्मृति में बने एक पुस्तकालय मातृ मंदिर का उद्घाटन किया था। बापू ने अपने नोट्स में लिखा है कि बिष्णुपुर जैसे दुर्गम जगह में एक पुस्तकालय का होना यह संकेत देता है कि यह स्थान कितना महत्वपूर्ण है।
आज रानीपतरा के सर्वोदय आश्रम में जमा भीड़ इस बात की गवाही दे रही थी कि बापू आज भी हमारे मानस में हैं, उनके बिना कोई काम संभव नहीं है। वह हमारे नायक हैं, हमारे मनमीत हैं, जिनसे हम अपने जीवन में प्रयोग करना सीखते हैं और सीखते रहेंगे।
पूर्णिया जिला के जिलाधिकारी राहुल कुमार ने पिछले एक साल में उन जगहों को जोड़ने का काम किया है, जहां गांधी जी के चरण पड़े थे। टीकापट्टी का रूप बदल चुका है, जहां 10 अप्रैल 1934 को बापू आए थे। वहां उन्होंने एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया था।
इस बदलते दौर में पूर्णिया को यह नहीं भूलना चाहिए कि यहां कभी बापू आए थे। उनका यह कथन हमें याद रखना होगा- “हमारी सभ्यता का सार तत्व यही है कि हम अपने सार्वजनिक या निजी, सभी कामों में नैतिकता को सर्वोपरि मानें।”
3 comments:
नमन महत्मा को। सुन्दर लेख।
बहुत ही सुंदर लेख भाय जी
शत् शत् नमन् बापू को
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