इन दिनों कई बार लगता है कि अब आगे क्या ? यह सवाल हर दिन परेशान करता है। एक बीमारी को लेकर बार - बार सोचना भी खुद में एक बीमारी है। ऐसे समय में अलग अलग काम में खुद को व्यस्त रखना दवा के माफिक काम करता है।
यह कैसी विडम्बना है कि हम सबके जीवन में पॉजिटिव शब्द के मायने ही बदल गए हैं। एक उम्मीद वाले शब्द को हम संशय से इस्तेमाल करने लगे हैं। विपत्ति की तरह यह शब्द हम सबके जीवन में अब आएगा ही, यह अब हम सोचने लगे हैं। नेगेटिव शब्द को उम्मीद भरी निगाहों से देखना अब सबको अच्छा लगने लगा है।
संकट में हर कोई है, जो यह कहते हैं कि हम सुरक्षित हैं, दरअसल एक भरम में जी रहे हैं। हम सबको खुद ही बचाव का रास्ता तय करना है। कभी कभी लगता है कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय प्रशासन को हम सब संयुक्त परिवार के मुखिया की तरह ट्रीट कर रहे हैं, ऐसा मुखिया है, जिसकी बात हर कोई सुनता तो है लेकिन अमल कोई नहीं करता। अब देखिए न , मास्क पहना चाहिए, यह सरकार को सीखाना पड़ रहा है। और, इसके बाद भी हम इसका उपयोग नहीं करते हैं और हमें जुर्माना भरना पड़ता है।
गुजरे चार महीने में जीवन हर एक का बदला है, बहुत कुछ नया व्यवहार में लाना पड़ा है, अब जीवन में अनुशासन ही सबकुछ है। विचार - व्यवहार में पॉजिटिव रहना है , बस जांच में
नेगेटिव रहना है, इसके लिए जो जरूरी चीज है, उसका उपयोग करना ही है।
जब कभी मन टूटने लगता है तो स्वास्थ्य कर्मियों , पुलिसकर्मी, प्रशासनिक अधिकारियों - कर्मचारियों, बैंक कर्मियों के बारे में सोचने लगता हूं। ये सभी जिस तरीके से लगातार काम कर रहे हैं, हम सबके लिए, उसे समझना होगा। उनकी जिंदगी को झांकिएगा तो पता चलेगा कि नेगेटिव - पॉजिटिव क्या होता है। आए दिन हम सब इन लोगों के कामकाज पर सवाल उठाते हैं लेकिन उनकी ज़िंदगी को महसूस नहीं करते हैं। कभी सोचिएगा...
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