साल का पहला दिन हर कोई हंसते-खेलते बिताने की हर संभव कोशिश करता है। चनका रेसीडेंसी की भी साल की शुरुआत उम्दा रही। पहली जनवरी को रेसीडेंसी परिसर में चहल-पहल का माहौल दिन भर रहा। दरअसल पूर्णिया स्थित भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं का एक समूह चनका रेसीडेंसी पहुंचा था।
ये सभी दिन भर ग्रामीण परिवेश में वक्त गुजारने आए थे, ये सभी गाछ-वृक्ष और फूल -पत्तियों को जानने-समझने आए थे। हम सब जो खेती-किसानी जुड़े हैं, उनके लिए खेत-खलिहान जीने का एक माध्यम है, वहीं जो कृषि विज्ञान की पढाई करते हैं वे खेत-खलिहान में उग आए जीवन का बॉयोलोजिकल नाम ढूंढने में जुट जाते हैं, गाछ को एक डॉक्टर की नजर से देखते हैं। बीमारी को खोजते हैं, उसका उपचार बताते हैं।
महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं से मिलकर हमारे भीतर भी उत्साह का संचार हुआ। वे सभी डबल क्रॉप सिस्टम को समझने में लगे थे। कदंब के जंगल के बीच मक्का की खेती का गणित समझने में लगे थे। किसानी में आ रही समस्या पर वे बातचीत कर रहे थे, मछली पालन की बारिकियों पर वे बात रहे थे। इन छात्र-छात्राओं के साथ कॉलेज के तीन शिक्षक भी आए थे – डॉ रवि केशरी, डॉ सुदय प्रसाद और मणिभूषण जी।
बात पर्यावरण पर होने लगी और यहीं से हम सभी के चेहरे पर गंभीर भाव उभर कर सामने आने लगे। जल संकट से लेकर वृक्षों की अंधाधुंध कटाई और वृक्षारोपण को लेकर जागरुकता का अभाव। दरअसल किसानी में आ रही समस्याओं की जड़ में यही सब है।
छात्र-छात्राओं के समूह में बिहार से बाहर के भी लोग थे। केरल, तेलंगाना, बंगाल के छात्र-छात्राओं से जब बात हो रही थी तो पता चला कि भू-जल संकट अब हर राज्य में किसानों के सामने है। जब इन लोगों से बातें हो रही थी तो हमने डॉक्टर फ्रांसिस बुकानन का जिक्र किया। बुकानन ने 1809-1810 में पूर्णिया का व्यापक और विस्तृत सर्वेक्षण किया था। उस वक्त पूर्णिया का विस्तार दार्जिलिंग, नेपाल, भागलपुर और कोसी की सीमाओं तक था। बुकानन ने संपूर्ण क्षेत्र का भ्रमण टमटम, इक्का, पालकी, हाथी और पैदल तय किया था। उसने यहां की भू-संपदा, सामाजिक जीवन, व्यापार, कृषि, वन्य जीव जंतु एवं कई अन्य क्षेत्रों से संबंधित आंकड़े एकत्रित किए। इंडिया ऑफिस लंदन में ये सभी आंक़डे उपलब्ध है। बुकानन पेशे से चिकित्सक थे। मेरे मन में बुकानन इसलिए आए क्योंकि पिछले 200 साल में पूर्णिया अंचल कितना बदल चुका है, इस पर बुकानन के माध्यम से ही बात कर सकते हैं और कृषि विज्ञान की पढ़ाई कर रहे बच्चों को उनके बारे में बताना चाहिए।
बुकानन की पूर्णिया रिपोर्ट का यहां उल्लेख इसलिए भी जरुरी है क्योंकि पूर्णिया जो पहले पूर्ण अरण्य था वहां अब जंगल न के बराबर हैं और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों जल जीवन हरियाली की बात कर रहे हैं, वे लोगों को पोखर बचाने, पौधा रोपण जैसे मुद्दों पर जागरुक कर रहे हैं। वे इन दिनों हरियाली यात्रा पर भी निकले हैं और आगामी 7 जनवरी को पूर्णिया आ रहे हैं, ऐसे बुकानन की पूर्णिया रिपोर्ट के एक पन्ने का जिक्र यहां कर रहा हूं, जिसमें 1800 और उससे पहले के पूर्णिया जिले के लोगबाग का जिक्र है। बुकानन लिखते हैं- पूर्णिया के बासिंदे वृक्षारोपण को धार्मिक कार्य समझते हैं। वे खेत में भी पौधा रोपण करते हैं और घर के आसपास भी....
साल के पहले दिन कॉलेज के इस युवा समूह के साथ इन सब मुद्दों पर बातचीत करते हुए महसूस हुआ कि संवाद बहुत ही जरुरी चीज है। यह दौर संवाद स्थापित करने का है। दरअसल संवाद के माध्यम से हम एक दूसरे को समझने लगते हैं। इन छात्र-छात्राओं ने पर्यावरण को लेकर लोगों को जागरुक करने के उदेश्य से स्लोगन भी लिखने का काम किया। कृषि विज्ञान की पढ़ाई में जुटे इन बच्चों से मिलकर अच्छा लगा, एक उम्मीद जगी कि यदि इस तरह के लोगबाग की गांव में आवाजाही होती है तो किसानी समाज को बबहुत कुछ नया सीखने को मिलेगा क्योंकि ऐसे लोगों के लिए खेत एक प्रयोगशाला है।
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