धनरोपनी के लिए बारिश की आश लिए सुबह जब उठता हूँ तो पूर्णिया से प्रकाशित अखबारों की खबरों पे निगाह जाती है। पता चलता है कि बिहार के राज्यपाल मंगलवार को पूर्णिया विश्वविद्यालय आए थे। वे यहां आयोजित ग्लोबल कांग्रेस का उद्घाटन करने आए थे। अखबार के अनुसार ग्लोबल कांग्रेस का विषय था- 'बायो टेक्नोलॉजी और क्रॉप साइंस'।
विभिन्न अखबारों की खबरों से गुजरते हुए अहसास हुआ कि राज्यपाल ने किसान और किसानी की बात 'बड़ी गंभीरता' से रखी। उन्होंने शायद जीरो बजट खेती की बात की।मेरे जैसे किसान को जिस तरह 'जय जवान जय किसान' का नारा भ्रामक लगता है ठीक वैसे ही 'जीरो बजट खेती' शब्द भी किसान समाज के लिए भ्रामक लगती है।
दैनिक हिन्दुस्तान अखबार ने पहले पन्ने पर हेडिंग लगाई है- " जीरो बजट खेती जरूरी: राज्यपाल" । इस खबर से गुजरते हुए अपने खेतों की तरफ देखता हूँ, फिर बाजार के बारे में सोचता हूँ कि तभी अहसास होता है कि किसानी की बात मंच से करना कितना आसान लगता है!
खैर, किसानी विषय को लेकर किसी विश्वविद्यालय के ग्लोबल कांग्रेस में क्या-क्या हो सकता है, हम जैसे खेती करने वाले लोग कल्पना ही कर सकते हैं। एक बात और, जब ग्लोबल जैसा शब्द किसी शब्द के आगे जुड़ता है न तो सचमुच में 'इंटरनेशनल' टाईप फिलिंग होने लगती है।
'क्रॉप साइंस ' पर कार्यक्रम होना ही चाहिए, लेकिन इस बात को लेकर भी चर्चा होनी चाहिए कि फसल का विज्ञान फसल की दुनिया में रमे रहने वाले किसानों तक पहुंच पा रही है कि नहीं।
एसी हॉल में बड़े-बड़े इवेंट हो जाते हैं, मीडिया की सुर्खियां मिल जाती है लेकिन गाम घर को क्या मिलता है, इससे कोई भी अनजान नहीं है। जो सच है, उसे स्वीकार करना चाहिए।
एक किसान के तौर पर हमारी इच्छा तो यही है कि किसान और किसानी की बात गांव में ही हो, राज्यपाल गाँव आएं, विश्वविद्यालय के कुलपति छात्रों , शिक्षकों के संग फसल विज्ञान पर बतकही किसानों के बीच करें। हालांकि जानता हूँ, यह भी बारिश की आश की तरह एक ख्वाब ही है !
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