Friday, May 24, 2019

टोला

कैलू जब बिरहा गाता है तब उसकी आँखें भर जाती है। पिछले आठ दिन से कैलू गाम में है। दरभंगा से पांच कोस उत्तर के किसी गाम का रहने वाला है कैलू। निर्गुण गाता है कथा बांचता है। उसकी बिदागरी में उसे गाम वाले फस क्लास धोती देंगे और एक ठो नमरी , एक टका ऊपर से। हाय रे जमाना !परेम जो न कराये।

उधर, दूसरे टोले में बिहाह है। आंगन में चहल-पहल। सुलेखा काकी की बहन आई है, काकी अपनी बहन को कह रही थी- "गे बहिनी, जब से सामा बेटी सासुर बसी..रेंची का साग नहीं देखा। सामा बेटी तो रिच रिच साग बनाती थी। अब तो कोई देता भी है तो वो सुआद ही नहीं मिलता। "

दूसरी ओर बिदापत के आंगन में बड़की मटकी में दही जमाया गया था। छौंकौआ तीमन तरकारी भी। बिदापत की बूढ़ी बहन आई है। उसे ये सब पसंद नहीं है। माथे पे हाथ रखकर वह कह रही थी - 'गे मय्या, सूद पर पैसा लेकर दाल रहर की और भात चननचूर महकौआ चावल की बनाने की क्या जरूरत है..."

वहीं, गाम के दक्षिण टोले का बिदेसर रौदा में बौख रहा है। मक्का तैयार करते करते गोर-पैर बदन सब चूर-चूर। ऐसा लगता है किसी ने थकुच दिया हो। वह कहता है कि रौदा में नहीं बौखेगा तो फिर सांझ में उसका चूल्हा कैसे चलेगा।

No comments: