मेरे जीवन के हर एक पल को पंखुड़ी और पंक्ति हर दिन हरा-भरा कर देती है। पंखुड़ी की वजह से ही अब यह समझने लगा हूँ कि बेटी पिता को ज्यादा मनुष्य बनाती है, ज्यादा गहरा और कोमल। बेटी हमें इंसान बनाती है।
बेटियाँ पिता को बदलती हैं। यह बदलाव कई स्तरों पर महसूस करता हूँ, बोली-बानी से लेकर तमाम आदतों में बदलाव दिखने लगता है।
इन दिनों सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर दो बहनों की कहानी वायरल है, जिसमें बताया गया है कि ये दोनों बहनें जिनके पिता हेयर कटिंग-सेविंग का काम करते थे, अब वही काम दोनों बहन कर रही है।
पिता से विरासत में मिले काम को दोनों बहन बखूबी संभाल रही है। नेहा और ज्योति उन सामाजिक मिथकों को झुठला भी रही हैं, उन रूढ़ियों को तोड़ रही हैं, जिनसे मान्यता मिली हुई थी कि फलां-फलां काम औरतें नहीं कर सकती हैं।
आज जब यूट्यूब पर इन दो बहनों के काम को लेकर बनाये गए वीडियो को देख रहा था तो अविनाश दास के 'बेटियों का ब्लॉग' की याद आ गई। हम सब जिनके घर बेटियां हैं, उनकी बातें इस ब्लॉग पर हुआ करती थी।
खैर, इस वीडियो को आप सब भी देखिये। वीडियो के पार्श्व में जो गीत चल रहा है, उस सोहर को भी ध्यान से सुनियेगा। इस सोहर को सुनते वक्त मुझे राजेश जोशी की एक कविता की पंक्तियाँ याद आने लगी :
"तुमने देखा है कभी
बेटी के जाने के बाद कोई घर?
जैसे बिना चिड़ियों की सुबह हो!
जैसे बिना तारों का आकाश!"
[ वीडियो का लिंक - https://youtu.be/QCR24jyhfZk 】
1 comment:
बेटी पिता को ज्यादा मनुष्य बनाती है, ज्यादा गहरा और कोमल... वाह!!
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