पूर्णिया जब लौटा था तो मन में चंद्रकिशोर जायसवाल थे। उनका लेखन हम जैसे पाठक को अपनी ओर खींचता है। पूर्णिया में उनसे मुलाकात होती रही है। फिर इसी बीच चन्द्रकांत राय जी से मुलाकात होती है। चंद्रकांत राय भी माटी के कथाकार हैं। उनसे जब पहली बार मिला तो उनका देशज ठाठ ही मुझे उनकी तरफ आकर्षित किया।
हाल ही में चन्द्रकान्त राय जी की कहानियों को पढ़ने का मौका मिला। 'नाहक काजर पारे' नाम से चंद्रकांत राय कथा संकलन प्रकाशित हुआ है।
संकलन में ग्यारह कहानियां हैं। 'नया विहान'आजादी के बाद गांवों में आये सामाजिक बदलाव और जातीय संघर्ष की गहरी पड़ताल करती है। यह मेरी पसंदीदा कहानी है। ऐसी ही एक कहानी है - 'अच्छे दिन वापस आयेंगे'। अपराध के बल पर पहले जाति का नायक और फिर नेता बनने के सामाजिक सच को यह कहानी एक अलग तेवर में पाठक के मन में प्रवेश करती है।
इस कथा संग्रह में रेणु जिस कहानी में खूब याद आते हैं उसका नाम है - 'अशेष आरंभ'। इस कहानी में गांव की नाट्य मंडली के जुनून और ग्रामीणों के अंधविश्वास को लेखक ने बहुत ही रोचक ढंग से ढाला है। दूसरी ओर 'नाहक काजल पारे' कहानी में लेखक ने एक चोर की रोचक कहानी बुनी गई है। 'प्रलय के पहले' शीर्षक कहानी सांम्प्रदयिकता के दंश की पहचान कराती है। 'विचौलिया' कहानी जहां इलाके के चर्चित स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का चित्र खींचती है वहीं दूसरी ओर सेनानी भत्ता पाने की होड़ में हुए भ्रष्टाचार की भी प्रामाणिक रुपरेखा प्रस्तुत करती है।
चन्द्रकान्त राय जी के बारे में जब जानकारी इकट्ठा कर रहा था तो पता चला कि वे वॉलीबॉल के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रह चुके हैं। ऐसे में खिलाड़ी कथाकार की कथा संग्रह में खेल से जुड़ी एक कहानी भी है -'टाईम आउट'। यह कहानी खेल में हो रहे खेल का पर्दाफाश करती है।
कथा संग्रह की अंतिम कहानी है-'कहानी की कहानी'। यह कहानी खास है क्योंकि लेखक ने इसके माध्यम से समकालीन साहित्य की विसंगतियों पर प्रहार किया है।
एक पाठक के तौर पर यह कथा संग्रह मुझे इंद्रधनुष की तरह लगा। लेखक ने अंचल की बोली बानी और मुहावरों के जरिये एक नई दुनिया रचने की कोशिश की है। अपने जीवन व्यवहार में चन्द्रकान्त राय जी जिस देशज ठाठ को अपनाते हैं वह उनकी कहानियों में भी साफ झलकती है, कोसी-गंगा नदी की पानी की तरह।
【पुस्तक- नाहक काजर पारे
लेखक- चन्द्रकांत राय
प्रकाशक- रश्मि प्रकाशन, लखनऊ
मूल्य- ₹150 】
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