Thursday, April 11, 2019

सवाल करे किसान

सब चुनाव में लगे हैं। इसी बीच बारिश और आंधी आती है , मक्का की खड़ी फसल गिर जाती है, किसानी कर रहे लोगों को नुकसान होता है।

सत्ता -विपक्ष के बड़े बड़े नेता वादों की पोटली लिए उड़कर आते हैं और फिर उड़कर निकल जाते हैं। लेकिन किसान के नुकसान पर सबकी चुप्पी एकसमान होती है।

हम किसान भी सवाल नहीं करते हैं, उड़ते हेलीकॉप्टर को बस टुकुर-टुकुर देखते रह जाते हैं और फिर भीड़ बनकर रैलियों का हिस्सा बन जाते हैं।

हर नेता की रैली का बड़ा हिस्सा किसानी कर रहे लोग होते हैं। ट्रेक्टर-टेलर-टैम्पो में भरकर हम नेताजी की रैली में जय जय करने पहुंच जाते हैं। हालांकि इसका भी अपना अनोखा अर्थशास्त्र होता है लेकिन खेत में फसल के नुकसान पर हम कुछ नहीं बोलते।

मक्का सीमांचल की तकदीर बदलने वाली फसल है लेकिन इसकी कीमत पर कोई कुछ नहीं बोलता। धान की सरकारी खरीद में जो खेल होता है , उस पर भी हम किसानी कर रहे लोग नेताजी सबसे सवाल नहीं पूछते।

इन दिनों ग्रामीण इलाकों में लगातार घूमते हुए अहसास हो रहा है कि हम किसानी कर रहे लोग बंटे हुए हैं और सवाल पूछने से डरते हैं। किसान भी जाति के जाल में मछली बनकर नेताजी की बातों में फंसता जा रहा है। चुनाव के बाद सरकार भी बन जाएगी और हम किसानी कर रहे लोग बस अपने भाग्य का रोना रोते रह जाएंगे।

पता है यह बात भी ललित निबंध की कैटेगरी में चली जायेगी लेकिन याद रखिये हम किसानी कर रहे लोग यदि ऊंची आवाज में अपनी बात नहीं रखेंगे, विरोध नहीं करेंगे तो फिर वही होगा जो होता आ रहा है।

1 comment:

ashutosh said...

best news sir
http://ashutoshtech.com/maharashtra-bjp-again-shiva/