मेरे पास बाबूजी की तस्वीरें
बहुत कम है,
गिनती के तीन
जबकि मेरे पास है
उनकी ढेर सारी बातें ।
पान जिस तरह
मुँह में घुल जाता है,
ठीक उसी तरह
बाबूजी घुलें हैं
मेरी आँखों में।
तस्वीरों से अधिक
पसंद है मुझे
बाबूजी की लिखावट
ढेर सारी चिट्ठियाँ
ये चिट्ठियाँ
भारी है किसी भी तस्वीर पर।
ग़म और ख़ुशी के वक़्त
उनके शब्द
तस्वीरों का काम करती है।
मुझे अक्सर लगता है कि
पिता
तस्वीरों में
स्थिर दिखते हैं,
जबकि बाबूजी
स्थिर कभी रहे ही नहीं
मुझे अक्सर लगता है
मानो पिता तस्वीरों में क़ैद हैं,
जबकि बाबूजी
कभी क़ैद हुए ही नहीं।
मुझे
पिता फ़्रेम में अजीब लगते हैं
बाबूजी तो फ़्रेम तोड़ते थे
खेत के आल की तरह...
1 comment:
These lines are awesome and to touch my heart. Keep it up.
Post a Comment