Monday, October 12, 2015

एक किसान की चुनावी डायरी-14

बेगूसराय में चुनावी रैली में नीतीश कुमार ने कहा, 'बिहारी अपने दम पर विकास करेंगे. ये बाहरी यहां क्‍या करेंगे? मैं आपलोगों से एक सवाल पूछना चाहता हूं, बिहार को आगे कौन ले जाएगा, 'बिहारी' या फिर 'बाहरी'? यदि कोई बिहारी बिहार को आगे ले जाना चाहता है तो सच्‍चा बिहारी आपके सामने खड़ा है. हमें किसी अहारी-बाहरी की जरूरत नहीं है. ऐसे में इन बा‍हरियों को गुडबाय करने का वक्‍त आ गया है.' मैं अपने गांव में नीतीश कुमार की यह बात यूट्यूब के जरिए जोगो काका को सुना ही रहा था, इसी बीच में फेसबुक पर एक मित्र के स्टेटस पर नजर चली गई- शरद यादव बिहारी हैं कि बाहरी हैं। दरअसल लोगाबग के संग सोशल मीडिया की बतकही भी मजेदार होती जा रही है।

गांव के स्वास्थ्य उपकेंद्र के कर्मचारियों से बातचीत हो रही थी। हमने पूछा कि स्वास्थ्य सेवा के अलावा चुनाव पर कुछ बातचीत करिएगा। वैसे एक बात तो जरुर है, नीतीश कुमार ने कुछ काम ऐसे किए हैं जिससे बिहार का कायाकल्प हुआ है। जैसे मेरे गांव में सरकारी अस्पताल का बनना। बिहार में तो ऐसे हजारों गांव होंगे, जो नीतीश को दुआ देते होंगे।

नीतीश-मोदी की लड़ाई के बीच स्वास्थ्य उपकेंद्र की नर्स ने बताया कि हमें तो लगता  है कि हर जगह तो सीटों का झगड़ा है। रोज न अखबार में पढ़ रहे हैं कि कभी इ रूठ गया तो कभी उ रूठ गया। चुनाव में रुठने का मनाने का बड़ा चलन हो गया है।

दवा के लिए पहुंची लाजवंती काकी से हमने पूछा कि दवा सब मिल जाता है? उन्होंने कहा- आब कोनो दिक्कत नै छै, सब मिल जाएत छै। हमने पूछा कि ये बताइए कि आपको क्या लगता है, वोट किसे मिलना चाहिए। इस सवाल पर लाजवंती काकी एकदम गंभीर हो गई। फिर बोली, देखिए, वोट तो उसे ही मिलना चाहिए जो यह समझे कि जनता का मूड क्या है। जो नेता जनता का मूड नहीं बूझ सके उ नेता तो हारबे न करेगा। मुखिया चुनाव से लेकर सांसद चुनाव तक यही होता है न।

टोला में घुमते हमारी मुलाकात मुन्ना भाई से होती है। मुन्ना भाई को राजनेताओं से दिक्कत है। उन्होंने कहा- सब पोलिटिशिएन एक ही जैसे हैं। वैसे एक चीज बिहार में अच्छा हुआ है,यहां  अब सांझ में महिलाओं का घर से निकलने में कोई खतरा नहीं है। यहीं एक 12 वीं की छात्रा सुनीता मिलती है।उसने बताया कि सांझ में क्या, अब तो रात में भी डर नहीं लगता है। 
इन बातों के साथ जब मैं अपने घर लौटा और जोगो काका को सारी बात बताई तोउन्होंने बड़े मस्ताना अंदाज में कहा कि वोट एक ही बात पर थोड़े पड़ता है बाबू। वोट के लिए माहौल बनाया जाता है। पहला फेज होने दीजिए तब देखिएगा माहौल। अभी तो खाली बकैती हो रहा है।

उधर, एक खबर ने सभी को चौंका दिया। भाजपा जिसे बिहार का भीष्म पितामहकहती है., उनकी बहू ने नीतीश कुमार की पार्टी का दामन थाम लिया है। दरअसल चुनाव में टिकट कटने से नाराज ब्रह्मपुर की विधायक दिलमाणो देवी ने जदयू का दामन थाम लिया है. शुक्रवार की देरशाम उन्होंने सीएम नीतीश कुमार की मौजूदगी में जदयू की सदस्यता हासिल की. भाजपा के दिग्गज नेता स्व.कैलाशपति मिश्रा की बहू को विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने टिकट नहीं दिया था. इसके बाद से दिलमाणो पार्टी से नाराज चल रही थीं.

कयास लगाए जा रहे थे कि वो अपनी सीट से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी ही मैदान में उतरेंगी, लेकिन दिलमाणो कुंवर की जगह बीजेपी ने राज्यसभा सांसद डा.सीपी ठाकुर के पुत्र विवेक ठाकुर को टिकट दिया था.

दिलमाणो के जदयू में शामिल होने के बाद इलाके का सियासी समीकरण एक बार फिर से बदलता दिख रहा है. इस सीट को दिलमाणो ने राजद के कब्जे से निकाल कर पार्टी को जीत के रूप में दिया था. 2010 के चुनाव में वो यहां से बीजेपी की टिकट पर जीत हासिल कर विधानसभा पहुंची थीं.

मालूम हो कि यह सीट सवर्ण बाहुल्य इलाके के तहत आता है. दिलमाणो और विवेक ठाकुर दोनों सवर्ण बिरादरी से आते हैं. राजनीति में बहुत कुछ होता रहता है। देखिए न हम अपने गांव से सीधे दिलमाणो देवी के क्षेत्र पहुंच जाते हैं और लोगबाग की बात बीच छोड़कर पार्टी बदलने की बात करने लगते हैं। यही
है असली पालिटिक्स, बाद बांकी जो है सो तो हइए है।

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