Sunday, September 27, 2015

कहां हैं आप ?

आज आपकी बहुत याद आ रही है। आप कहीं से तो देख रहे होंगे न हमलोगों को ! दो दिनों से सपने में आते हैं ... सफेद धोती-कुर्ते में।
कुछ बताकर फिर निकल जाते हैं। बताते भी नहीं हैं कि कहाँ निकल रहे हैं। आपकी पसंदीदा काले रंग की राजदूत को साफ़ कर रख दिया है, साइड स्टेण्ड में नहीं बल्कि मैन स्टेण्ड में, जैसा आप कहते थे। सफेद हेलमेट को भी साफ़ कर दिया है।
सच कह रहा हूँ, आपको ढूढ़ने लगा हूँ...हर जगह, अपने भीतर भी। चार बजे की चाय अब पी नहीं पाता। रात के 10 बज गए हैं, अभी आप लोहे का बड़े गेट में ताला लगाने कहते...सबकुछ याद आ रहा रहा है।
दवा, बिछावन, व्हील चेयर,आलमीरा...सबकुछ आँखों के सामने है लेकिन आप नहीं हैं। इस बीच अखबारों, पत्रिकाओं और वेब पोर्टल पर कितना कुछ छ्प रहा है लेकिन मैं किसे बताऊं? लिखते रहने का सम्मान मिला लेकिन आपको दिखा न सका।
बाबूजी,आज आपकी यादें मुझे भीतर से भींगा रही है। मुझे आज इस वक्त आपकी सबसे अधिक याद आ रही है। अंचल, खेत खलिहान सब खाली लग रहा है। आप कहाँ हैं ? आज सपने में आइयेगा तो बताइयेगा न ! कुछ दिखाना है आपको...

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