Sunday, September 13, 2015

मराठवाड़ा के नाम बिहारी किसान की चिट्ठी

एक किसान के लिए फसल बर्बादी का दुःख क्या होता है, यह मैं जानता हूँ दोस्त, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है कि हम विपत्ति के क्षण में इस कदर टूट जाएँ कि एक झटके में जीवन को ही खत्म कर दें।

माना कि संतरे और कपास की खेती में आप बार- बार हार रहे थे लेकिन बस हार भर जाने से जीवन थोड़े ही खत्म हो जाता है। जीवन तो हार-जीत की शतरंजी बिसात है दोस्त। उस खेत की तरह जिसे हर साल हम फसल के लिए तैयार करते हैं इस आशा के साथ कि साल भर का खर्चा पानी यह खेत हमारा निकाल ही देगा लेकिन हर बार मौसम हमें धोखा देकर आगे निकल जाती है।

आज सवेरे-सवेरे बिहार के सूदूर पूर्णिया जिले के एक गाँव चनका से यह किसान अपने मराठवाड़ा के किसान भाइयों के लिए कुछ लिखने बैठा है। अपने मोबाइल के जरिये आपलोगों को पाती लिख रहा हूँ, यह जानते हुए कि यह चिट्ठी आप सबों तक पहुंचेगी कि नहीं इसकी गारंटी नहीं है लेकिन मन जरूर मेरा हल्का होगा।

वैसे तो बिहार इस वक्त चुनावी लीला में डूबा है लेकिन मेरा मन खेतों में डूबा है। धान के फसल पानी के अभाव में तड़प रहे हैं। आलू के लिए खेत तैयार कर रहा हूँ। इन सबके बीच मैंने कल ही एक चैनल एनडीटीवी इण्डिया पर मराठवाड़ा का दर्द देखा। मेरी आँखें भर आई।

एक किसान का दर्द समझ सकता हूँ क्योंकि हम भी पिछले तीन साल से किसानी कर रहे हैं और हर साल मौसम हमें हरा रहा है। इस साल अब तक दो बार मैंने भी अपनी आँखों के सामने अपने खेतों में लहलहाते फसलों को बर्बाद होते देखा है।

धान, गेहूं और मक्का , इन तीनों को मौसम की मार सहते देखा है। किसान क्रेडिट कार्ड का ऋण हमें भी तोड़ कर रख दिया है ... बीमारी से जूझते हुए बाबूजी मुझसे दूर चले गए, फसल की बर्बादी के बाद एपिलेप्सी का अटैक आया ...मन चारों तरफ से टूट गया लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है न दोस्त कि हम अपनी जिंदगी ही खत्म कर दें।

किसानी करना संघर्ष करना है, यह हमने आपलोगों से ही सीखा है। हमारे तरफ एक किसानी लेखक हुए फणीश्वर नाथ रेणु, उनकी एक पंक्ति आपलोगों को पढ़ाना चाहूंगा- "मेरी हालत ठीक उसी पेड़ की तरह है जिसके ऊपर से एक तूफ़ान गुजर चुका है तुरत- और भी तूफानों की संभावना के लिए -डाल पसार खड़ा हूँ। आओ ! ओ तूफ़ान !  जब तक मुझे जड़ से नहीं उखाड़ फेंकोगे- मैं तुम्हारा मुकाबला करता रहूंगा।"

इस पंक्ति को बार-बार पढियेगा और सोचियेगा मेरे किसान भाई। आप हार क्यों मान रहे हैं? यकीन मानिए किसानी करते हुए इस मुल्क में हर किसान हार रहा है तो क्या हर किसान मर जाये ...।

एनडीटीवी के वेबसाइट पर जब यह पढ़ा कि मराठवाड़ा में परेशान किसान आत्महत्या करता ही जा रहा है, सरकारी आंकड़े कहते हैं अब तक 660 किसान आत्महत्या कर चुके हैं, तो रोएँ खड़े हो गए।

मराठवाड़ा के औरंगाबाद में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस साल अब तक 83 किसान खुदकुशी कर चुके हैं। क्यों ऐसा हो रहा है, यह सवाल मुझे परेशान करता जा रहा है। किसानी करते हुए अब कुछ नया सोचना होगा।

खेतों के लिए नया गढ़ना होगा। कुल मिलाकर देश भर में हर किसान की एक ही तकलीफ है। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। सरकारें किसानों के लिए कई ऐलान करने में जुटी हैं, लेकिन साफ है, जमीन पर बड़े बदलाव नहीं हो रहे हैं। आइये हम सब मिलकर बदलाव करते हैं ..जीवन जीते हैं..अपने लिए ..माँ-बाबूजी-बीवी-बच्चों के लिए।



2 comments:

Manabi said...

http://hindi.thebetterindia.com/baliraja/ यदि आप इस संगठन का हिस्सा बने तो ओट मदत होगी गिरिन्द्रनाथ जी!

Unknown said...

नमस्कार सर.......सरकारी आँकड़े की सबसे बड़ी खामी हैं की वह आत्महत्या जैसे भयावह में भी मात्र शब्द का प्रयोग करते हैं जैसे की हमारे शासनकाल में 600-700 किसानों ने आत्महत्या किया जबकि उनके शासनकाल में बहुत ज्यादा............. किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता हैं हमें भी ये हिन्दू मुस्लिम से फुर्सत मिले तब ना कुछ दिखाई देगा हम लोग तो किसानों आत्महत्या के मामलों में भी धर्म खोजने लगाते हैं कभी कभी लगता हैं की कुछ भी नहीं बदलने वाला हैं कुछ भी नहीं..........