Wednesday, May 20, 2015

पंखुरी का पन्ना: कुछ कहानी कुछ पेंटिंग...

चनका में पंखुरी की मस्ती
पंखुरी को रोज नई कहानी चाहिये। जब भी खाली रहता हूँ, उसके लिए कहानी खोजता रहता हूँ। कहानी में उसको बन्दर चाहिए होता है और कुछ शरारती बच्चे और उन बच्चों के लिए एक मैडम।

हर रोज नई कहानी...बन्दर जो उसकी कहानियों का परमानेंट नायक होता है उसको आप रिपिट नहीं कर सकते। मतलब हर रात नया बंदर चाहिए उसको। अपनी कहानी का प्लॉट पंखुरी हर दिन नया चाहती है।

स्कूल से आकर वो जब पेंटिंग करने बैठती है, उसी वक्त वो ऐलान कर देती है कि रात में सोते वक्त उसे नई कहानी चाहिए।

आज उसकी कहानी में हमने बंदर को जीन्स शर्ट में ला खड़ा कर दिया था और याकू और चिहू नाम के उसके दोस्तों को जीप पर घुमाया था जंगल में...वहीं हमने लंच में मैगी का इंतज़ाम रखा था लेकिन पंखुरी ने कहा मैगी नहीं उसे चाहिए ब्रेड जैम।

ब्रेड जैम और मैगी जब कहानी के बीच में घुसा तो इसी बीच पंखुरी पूछ बैठी -"पापा जब आप होस्टल में थे तब आपको कौन कहानी सुनाता था ? "

पंखुरी यह सवाल पूछकर झपकी लेने लगी और फिर सो गयी। लेकिन उसके सवाल ने मेरी नींद गायब कर दी है। मैं सोच रहा हूँ कि कम उम्र के बच्चों को हॉस्टल में डालकर सचमुच में हम बचपन का गला घोंट देते हैं। कम उम्र में घर से बाहर रहने का दर्द मुझे पता है लेकिन पंखुरी का एक सीधा सवाल मुझे बेचैन कर दिया है।
खैर, मुझे कल के लिए नई कहानी खोजनी है ताकि पंखुरी की डांट न लगे। मैं उसके लिए रोज नए नए जंगल बनाता हूँ ..बंदरों का देश बनाता हूँ..लाल रंग का बन्दर ...गुलाबी रंग का ...हरा रंग का...बन्दर ही बन्दर ....

सुबह जब पंखुरी उठती है तो उसे पता चलता है कि आज स्कूल बंद है। वो खुश होती है कि आज दिन भर घर में उसकी चलेगी।। स्कूल बंद था  इसलिए पंखुरी दिन भर अपनी शरारतों से घर का रौनक बढ़ाती रही। लैपटाप के पुराने कीबोर्ड, गुड्डा गुड़िया और बीच बीच में पेंटिंग की उसकी मास्टरी जारी रही। सादे पन्ने पर वह एक लड़की की तस्वीर बनाती है और फिर उसे रंगती रहती है।

और उधर मैं दिन भर जीवन के प्रपंच, किसानी की दुनिया और अखबारों व ब्लॉग के लिए खबरें जुटाता रहा और तय समय पर संबंधित लोगों को इमेल भेजता रहा। लेकिन इन सबके बीच भी मन के एक कोने में पंखुरी के लिए कहानी गढ़ता रहा।  आज मैंने पंखुरी के लिए लाल रंग का बन्दर और सीहू  नाम का एक कैरेक्टर खोज निकाला था। रात में बिछावन पर लेट कर, उसे अपनी बांह पर लेटाकर यही कहानी सुनानी है।

लाल रंग का बन्दर लालपुर का राजा था और उसका दोस्त था सीहू। सीहू एक स्कूल में पढता था और गर्मी की छुट्टी में लालपुर आया था। उसके साथ स्कूल की मैडम भी आई थी। दरअसल पंखुरी की कहानी बिना मैडम के अधूरी होती है। मैडम को लेकर पंखुरी बहुत सजग रहती है।

जिस तरह बंदर के रंग को लेकर पंखुरी सावधान रहती है वैसे ही मैडम के नाम को लेकर भी। पंखुरी ने मैडम का नाम 'रेखा' रखने के लिए कहा है। होता ये है कि यदि नाम के साथ आपने छेड़ छाड़ की तो पंखुरी कहानी का बैंड बजा देती है फिर वह कहानी के हर लाइन में गलती खोजेगी।

लालपुर में भी एक स्कूल रहता है। वहां लाल रंग के छोटे छोटे बंदर पढ़ते हैं। सीहू अपनी रेखा मैडम के साथ स्कूल पहुँचता है तो चहक उठता है। बंदर सब भी खुश होते हैं क्योंकि उससे मिलने शहर से कोई जंगल आया है। सीहू ने बंदरों के लिए अपनी मम्मी के हाथ का बना हलुआ लाया है और ढेर सारे केले। दरअसल पंखुरी को केला बहुत पसंद है।

जब मेरी कहानी केले तक पहुंची तबतक पंखुरी झपकी लेने लगी थी। सोने की पूरी तैयारी वो कर चुकी थी। बोली - "पापा कल मेरे लिए पीला रंग का केला लाना...मैं बनाना सैक पियूंगी..अच्छा ये बताओ लालपुर के राजा की रानी कौन थी..एक बंदर वाला गीत सुनाओ ना..प्लीज " !

पंखुरी फरमाइश करने के बाद सो चुकी थी और मैं पैट्रिक फ्रेंच की किताब "भारत" पलटने लगा। पंखुरी के बाद मैं खुद को भी कहानी सुनाता हूँ ताकि कहानी से लगाव बना रहे।

कभी- कभी पंखुरी बहुत सवाल दागती है। आज रात में वो पूछ बैठी- "पापा, ये बताओ कि बंदर के देश में सबसे अच्छा स्कूल कौन सा है ? क्या बंदर के यहां टाटा स्काई का कनेक्शन होता है? बंदर को पोगो पसंद है या फिर कार्टून नेटवर्क ?"

आज कहानी के नाम पर पंखुरी लंबा क्लास ले रही है। कहानी शुरु करुं इससे पहले उसने ढेर सारे सवाल दाग दिए।

आपको यहां एक चीज बताता चलूं कि पंखुरी के लिए न्यूज चैनल का मतलब ‘मोदी-सरकार’ होता है। कोई भी समाचार चैनल आप लगाएं वह उसे ‘मोदी-सरकार’ ही कहती है। वह तो बंदरोँ के देश में भी ‘मोदी-सरकार’ खोजने लगती है। दरअसल एक साल पहले जब मैं न्यूज चैनल ज्यादा देखता था तो वह गुस्सा हो जाती थी और कहती थी- पापा तुम केवल ‘मोदी-सरकार’ ही देखते हो..पोगो देखा करो..छोटा भीम देखो..मोदी सरकार से अच्छा है अपना छोटा भीम, छुटकी , कालिया, राजू और जग्गू बंदर....

आज पंखुरी की कहानी बंदरों के लाल देश लालपुर से शुरु होती है, जहां के राजा ‘लाल-बंदर’ के घर बड़ा स्क्रीन वाला टेलीविजन  बाजार से आता है। पंखुरी की कहानी का प्लॉट पंखुरी के अनुसार तय होता है इसलिए बंदर के टेलीविजन में टाटा स्काई लगाया जाता है।

पंखुरी बार बार कहती है कि बंदर के राजमहल में बड़ा टीवी रहना चाहिए और हां केबल कनेक्शन नहीं, टाटा स्काई रहना चाहिए जिसे आंधी तूफान या भूकंप से कोई दिक्कत न हो.. “ छोटकू और छोटकी बंदर” लगातार बिना किसी रुकावट के पोगो चैनल सर्फ करते रहे।

अब आप पूछिएगा कि “छोटकू और छोटकी बंदर” कौन है? तो साहेबान, कद्रदान ये दोनों लालपुर के राजकुमार व राजकुमारी है। इन दोनों को छोटा भीम सीरियल बहुत पसंद है। हरदम टीवी से चिपके रहते हैं वहीं इस बात से लालपुर की रानी दुखी रहती है क्योंकि उसे भी टीवी देखने का मन होता है। उसका मन स्टार प्लस के सीरियल पर अटका रहता है लेकिन छोटकू और छोटकी के सामने किसी की नहीं चलती है।

पंखुरी की कहानी लालपुर से अचनाक पिंक सिटी पहुंच जाती है। वो कहती है कि लालपुर में टीवी आ गया न..अब पापा चलो पिंक सिटी, वहां देखते हैं कि जग्गू बंदर क्या कर रहा है। वो स्कूल जाता है कि नहीं..जरा पता लगाओ कि उसके स्कूल में गर्मी की छुट्टी कब शुरु होगी..और हां, होमवर्क वो बनाता है कि नहीं ?

होमवर्क के नाम पर मेरी नजर पंखुरी के लाल बैग पर चली जाती है। ओहो! आज तो पंखुरी ने भी होमवर्क नहीं बनाया है। मैं जबतक यह कहता कि चलो होमवर्क बना लेते हैं तब तक तो बिटिया रानी सो चुकी होती है। अब फिर सुबह में बोर्नविटा के साथ होमवर्क का हो-हल्ला चलेगा :) मैं मन ही मन मुस्कुराता  हूं कि बेटी ने तो आज कहानी के नाम पर मुझे फंसा कर होमवर्क का बैंड बजा दिया।

बेटी की इन्हीं शरारतों से तो अपना घर गुलजार रहता है।  पंखुरी गहरी नींद में है और मैं सोच रहा हूं कि यह तीन साल की लड़की सपने में भी कहानी ही सुन रही होगी न..या फिर कहानी के नाम पर ढेर सारे सवालों का जखीरा तैयार कर रही होगी..अपने पापा-मम्मी के लिए..:)

2 comments:

Saurav Jha said...

Itna rangin or sunehra bachpn ... Maa-Pitaji se milne wala pyar or samay ke wajah se hi ho sakta hai.....

Aap ka jiwan pitaji ke liea samarpit hai or beti ke pyar mai v koi kmi ... aadrsh yuva hai aap..

Chetan said...

कुछ ऐसा ही हमारे यहाँ भी होता था, एक बिटिया दाईं बाजू पर तो दूसरी बाईं पर। नायक एक चूहा होता था - पुनपुन।

चार साल पहले बच्चों ने कहानी सुननी बंद कर दी क्योंकि उनसे पहले मेँ खुद सो जाता था।

सब ताज़ा कर दिया आपने।

बच्चों को पूरा ब्लॉग पढ़कर सुना दिया है।

बेहतरीन।