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इंटरनेट, एक ऐसी दुनिया, जिसने आपके कथावाचक को लंबी दूरी पाटना सीखाया। इसके हर मोहल्ले में कथावाचक ने दस्तक दी और अपने लिए कुछ न कुछ बटोर लाया। इसी दरम्यान इसकी मुलाकात ट्विटर से हुई, जिसे वह ‘माया’ कहता है। लेकिन इस ‘माया’ ने उसे कई नायाब तोहफे दिए।
आज उसी तोहफे की कथा बांचने जा रहा है कथावाचक। कैसे ट्विटर के आंगन में मिला एक शख्स उसके अंचल का पड़ोसी निकल गया।
आज उसी तोहफे की कथा बांचने जा रहा है कथावाचक। कैसे ट्विटर के आंगन में मिला एक शख्स उसके अंचल का पड़ोसी निकल गया।
तो साहेबान, बात यह है कि यूं ही ट्विटर पर खिटिर-पीटिर करते हुए कथावाचक की आभासी मुलाकात राजेश सी. मिश्रा नाम के एक शख्स से होती है। बातों ही बातों में पता चलता है कि जनाब उसी के अंचल पूर्णिया से हैं।
शहर के किस हिस्से से आते हैं राजेश भाई, इसका इल्म तबतक नहीं था। बातें होती चली गई, लगाव बढ़ता गया, एक दिन अचानक ट्विट आया कि शहर में कहां से ताल्लुक रखते हैं? फिर क्या यादों की पोटली खुलती चली गई। दोनों एक दूसरे के करीबी पड़ोसी निकल गए।
उनका ट्विट आता है-@girindranath You remember Mahindra Vehicles Showroom..on NH..I live in that campus..... आपका कथावाचक यादों की दुनिया में खो जाता है। उसे अपने मोहल्ले की याद सताने लगती है।
अब आप जाने कि यूं ही नहीं कथावाचक ट्विटर को ‘माया’ कहता रहा है। कबीर की “त्रिगुण फांस लिए कर बोले, बोले मधुर बानी” उसे याद आने लगी।
शहर के किस हिस्से से आते हैं राजेश भाई, इसका इल्म तबतक नहीं था। बातें होती चली गई, लगाव बढ़ता गया, एक दिन अचानक ट्विट आया कि शहर में कहां से ताल्लुक रखते हैं? फिर क्या यादों की पोटली खुलती चली गई। दोनों एक दूसरे के करीबी पड़ोसी निकल गए।
उनका ट्विट आता है-
अब आप जाने कि यूं ही नहीं कथावाचक ट्विटर को ‘माया’ कहता रहा है। कबीर की “त्रिगुण फांस लिए कर बोले, बोले मधुर बानी” उसे याद आने लगी।
ट्विटर सखा, राजेश सी. मिश्रा जल्द ही मन से भी जुड़ गए। आभासी दुनिया का पर्दा गिरता है, अपने ही अंचल में राजेश सी मिश्रा से मुलाकात होती है। एक आत्मीय परिचय ‘मिलाप’ का चादर ओढ़ लेती है। कथावाचक को खुशी होती है कि चलिए, इस माया ने अपना रुप तो दिखाया। ट्विटर सिग्नेचर पुल बन जाता है।
ट्विटर के जरिए मिले राजेश भाई से जब मुलाकात होती है तो मन के ढेर सारे तार एक दूसरे से जुड़ते चले जाते हैं। वे घर आते हैं, चाय पीते हैं और कथावाचक को लेकर निकल पड़ते हैं उसे उसीके शहर को दिखाने। गाड़ी में बैठे-बैठे तमाम तरह की बातें होती है, होटल पहुंचते हैं। लजीज चिकन तंदुरी को तोड़ते हैं और संग ही अंचल की कथा को विस्तार देते हैं।
ट्विटर की माया ऐसी भी होती है, इसका इल्म अबतक नहीं था। अंचल में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने वाले, या कहें अलख जगाने वाले राजेश सी मिश्रा शहर से दूर अपने स्कूल परिसर और शहर में मौजूद कॉलेज परिसर का भी दर्शन करवाते हैं। इन सबके दौरान उनकी आत्मीयता और सहजता का आंच लगातार अपना गुल खिलाता रहता है, कथावाचक को स्नेह की लौ नजर आती है।
4 comments:
प्रिय गिरिन्द्र जी
हम दोनों के साझा अनुभवों को आपके ब्लॉग में पढकर बड़ा मज़ा आया |
पहले-पहल आपके ट्वीटो पर जब ध्यान देना शुरू किया तो उनमे अपनी ही भावनाओं की अभिव्यक्ति नज़र आई | धीरे-धीरे पता चला की आप हमारे अपने शहर के हैं | और कुछ दिन , और ये क्या आप तो हमारे पडोसी निकले | बड़ी अजीब बात है की आपसे पहले कभी मुलाक़ात नहीं हुई थी |
पर देर आयद , दुरुस्त आयद | देर से ही सही पर यह हमारी खुशकिस्मती है कि ट्विट्टर के माध्यम से आपसे मुलाकात हुई |
यह रिश्ता बना रहे , और प्रगाढ़ हो |
इन्ही कामनाओं के साथ |
आपका राजेश
इस तरह कोई किसी से जुड़ता है तो अच्छा लगता है आभासी दुनिया सच से मिलती नज़र आती है !
आभासी दुनिया भी कई बहुत सुनहरे रिश्ते बनवाती है.......
सही बताया है आपने।
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