Saturday, May 14, 2011

उस पार से इस पार -3

गतांक से आगे 

नो मेन्स लैंड
एक हटिया इशाहपुर (मधुबनी जिला, बिहार) में हमारे घर के ठीक सामने लगता है और एक हटिया चनका (पूर्णिया जिला, बिहार) में हमारे कामत से पांच किलोमीटर दूर लगता है। एक फलांग पर हटिया और दूसरी जगह पांच किलोमीटर की दूरी पर। ये दूरियां कई मायनों में हमें बदलती दुनिया से भी दूर करना चाहती है। मसलन यदि आपको लक्स साबुन लेना है तो एक जगह आपको तकरीबन आधे घंटे की दूरी तय करनी होगी, वहीं एक अन्य इलाके में बस कदम भर चलकर आप मन की चीज घर में ले आते हैं।

दरअसल बनी-बनाई बसावट में आपको हर सुविधा नसीब हो जाती है और आप में इसमें बिना भय से विस्तार भी करते जाते हैं। लेकिन उस गांव में
, जिसे आपने बसाया है, वो भी अपनी इच्छा से, वहां आप सबकुछ अपने मन के हिसाब से करना चाहते हैं, वहां आप सुविधाओं को भी एक सीमा में रख देते हैं और बाजार आपसे दूर होता चला जाता है। कोसी में दाखिल  होते ही ऐसे ही गांव कामत बन जाते हैं।

इशाहपुर में किसी के पास कामत नहीं है लेकिन चनका में एक ही परिवार के पास कई कामत हैं। परबत्ता, रामठाकुर स्थान, धुनैली, चरैया रहिका और भी कई नाम के कामत। दरअसल कामत जमीन की उपलब्धता, मालिकना हक और बडे़ किसानों की डाइरेक्ट्री से उड़कर आया एक शब्द है। हमने कभी कोसी के उस पार नहीं सुना कि फलां के पास कामत है, कमतिया (मैनेजर) हैं लेकिन इस पार कामत नरेशों की कमी नहीं है।


परती जमीनों पर हल चलाकर
, जर्मन ट्रैक्टर खरीदकर, सर्वे सेटलमेंट में हजारों एकड़ धरती को उस पार के लोगों के नाम कर, जमींदारी बचाने वाले परिवारों के कई कामत आज भी कोसी के कछारों में फैले पड़े हैं। ऐसी जमीन वाले हमें इशाहपुर में नहीं मिले। यहां हमें कोसी डिवाइड शब्द की व्याख्या करने में कोई दिक्कत नहीं होती है। यहां हम एक गांव को दूसरे गांव से मालिकाना हक जैसे शब्दों से डिसक्राइब करने लगते हैं।

इशाहपुर में एक किसान की जिंदगी और चनका के किसान की जिंदगी को कैरिकेचर के रूप में पेश करना भी बड़ा रोचक किस्सा हो सकता है। किसान को सामाजिक बनते हम इशाहपुर में देख सकते हैं लेकिन चनका में किसान को हम अ-सामाजिक बनते देखकर अचरज में नहीं पड़ सकते हैं। जमीन बचाने के तिकरम में किसान खुद को एक ऐसे दायरे में डाल देता है, जिसके लिए हम –आप एटीएम से निकलने वाले मिनी स्टेमेंट शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं। मतलब खुद को उतना ही भीड़ में पेश करो, जितनी जरूरत बन पड़ती हो।

 
आईए
, अब हम हम यहां कामत शब्द की व्याख्या करते हैं। इसके लिए फणीश्वर नाथ रेणु की जनवरी 1956, में "अवन्तिका " में छपी "विषयान्तर" से अच्छा मुझे कोई टूल नहीं दिख रहा है। आप बस पढिए-

आपको  एक दूसरे शब्द की कहानी बताऊं। मेरे जिले में "कामत" का प्रचलन खूब है। कभी कामत शब्द की जाति, धर्म, नस्ल पर ध्यान नहीं दिया। लिखना पड़ा, लिख दिया। मोहनपुर कामत पर कोई कामती स्थिर हो कर नहीं रहे, फिर भी एक सौ मन धान हुआ। आपने नहीं समझा, घर से दूर, दूसरे गांव में जमीन खरीदकर खेती करने के लिए जो घर बनाया जाता है, इसे "कामत" कहते हैं। फार्म कह लीजिए..। कामत की एक खास विशेषता है कि वहां स्त्री के साथ आप नहीं रह सकते। घर का कोई समांग भी कमतिया हो, तो भी नहीं।.....फिर भी एक-एक किसान के पास दर्जनों कामत।

तो भिंमल मामा ने प्रश्न उपस्थित किया एक दिन- "कामत की परिभाषा..? उत्पत्ति..?" मैंने कहा, संभवत: यह उर्दू शब्द है। हमारे इलाके में मुसलमान जमींदारों के कई कामत थे।  उँहू.. रौंग..गलत.. सही अर्थ मैं जानता हूं। एक महिने का समय देता हूं। पटना जाते हो, लिख भेजना पण्डितों से बूझकर। देखूं सही अर्थ बता सकता है या नहीं....।

पटने आकर भूल गया। एक कार्ड मिला भिंमल मामा का- "ह्वाट्स कामत......?". उर्दू के एक मशहूर कथाकार से पूछा। बोले-" यह तो अरबी का शब्द है अकामत। इसका अर्थ है- रहने की जगह। इसी से कामत हुआ है।.." भिंमल मामा को कार्ड लिख दिया।
दूसरे दिन एक पाली जानने वाले मित्र ने कहा-" कामन्ती का अर्थ पाली में होता है- खेती की रखवाली करने वाला..। इसी से कामन्त हुआ।" भिंमल मामा को दूसरा कार्ड लिख दिया। दो महिने बाद घर गया तो भिंमल मामा हंसते हुए मिले- "बोथ रौंग..। दोनो गलत। न अकामत, न कामन्त। सही शब्द है कामान्त।


पुराकाल में
, बड़े गृहस्थ के परिवार में किसी व्यक्ति को यदि किसी कारणवश स्त्री-वियोग सहना पड़ा, तो वह अपने काम का अन्त कर देता था। परिवारवाले गांव से बाहर उसके लिए कामान्त बनवा देते थे। वहीं रहकर वह खेती-बारी देखता था। ऐसे कामान्तियों द्वारा लगायी फसल.......।"

3 comments:

Sadan Jha said...

धीरे धीरे लेकिन मसला अब गहराता जा रहा है. जमीन के मालिकाना स्वरुप में यह फरक क्या महज एक नदी के चलते?यहाँ इतिहास में उतरना होगा.लेकिन दुसरे जगह से भिन्न यहाँ इतिहास और भूगोल एक दुसरे में पैठे हुए हैं. यह बहुत कुछ पश्चिमी यूरोप और पूर्वी यूरोप के अंतर जैसा है जिसे एल्बे नदी काटती है. इस फरक पर बहुतेरे इतिहासकारों ने और कई बारे सिद्धान्तकारों ने काम किया है. खैर, कामत और मौजे को भी समझना होगा. क्या कामत में रिकार्ड्स भी रखे जाते थे? मौजे पर तो शायद कचहरी भी होती थी और अकाउंट भी रक्खा जाता था.

Sacha Singh said...

Mouza is a revenue division. Abul Fazal had made detailed accounts of teh Empire in terms if Village, Mouza, Shik, Pargana and Suba. The Zemindars had their offices at Mouza level where they acepted rent and issued receipts. Naturally accounts were kept at Mouza. Kamat on the other other hand is a farm away from the farmer's residence. The kamats belonging to erstwhile Zemindars are still called Kutchahari, remniscient of the olden days.

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

@ सच्चिदानंद सिंह- कामत को लेकर आप अच्छी तरह से वाकिफ होंगे। सदन सर का सवाल कामत के रिकाडर्स को लेकर है। क्या आप इस पर कुछ बता सकते हैं?