जब कोई पूछता है कि गुलजार तुम्हें क्यों पसंद है तो मैं जवाब देने के लिए पल भी नहीं सोचता, बस कह देता हूं- गुलजार हमारी भाषा बोलते हैं। मेरे लबों पर तुंरत उनकी यह त्रिवेणी आ जाती है-
आओ सारे पहन लें आईने.. सारे देखेंगे अपना ही चेहरा..सबको सारे हंसी लगेंगे यहाँ ! गुलजार के शब्द मौजू होते हैं। आप याद करें, जब गुलजार के ये शब्द आपके कानों में आते हैं-
दो सोंधे सोंधे जिस्म जिस वक़्त..एक मुट्ठी में सो रहे थे..
लबों की मद्धिम तबील सरगोशियों में साँसें उलझ गयी थीं...,
सोचिए कैसा महसूस करते हैं आप। वे शब्दों की जादूगरी नहीं करते बल्कि आम बोलचाल के शब्दों के सहारे हमारी-आपकी बातों को सामने रख देते हैं।
तुतलाते छोटे बच्चे के लिए जब गुलजार लिखते हैं -
चंद तुतलाते हुए बोलो में आहट सुनी
दूध का दांत गिरा था तो भी वहां देखा
बोस्की बेटी मेरी ,चिकनी सी रेशम की डली
लिपटी लिपटाई हुई रेशम के तागों में पड़ी थी
मुझे एहसास ही नही था कि वहां वक्त पड़ा है
पालना खोल के जब मैंने उतारा था उसे बिस्तर पर
लोरी के बोलों से एक बार छुआ था उसको
बढ़ते नाखूनों में हर बार तराशा भी था ..
यह सब पढ़ते हुए हम-आप खो जाते हैं बचपन की यादों में। यादों और आज की बातों को कोई भी पढ़ना, सुनना और गुनगुनाना पसंद करेगा। गुलजार इस बात को भली-भांती जानते हैं। जब आप कामकाजों से तंग आ जाते हैं, बेहद व्यस्त हो जाते हैं, अपने लिए समय नहीं निकाल पाते तो झल्ला उठते हैं। लेकिन गुलजार साब यहां नब्ज पकड़ते हैं और कामना करते हैं-
बड़ी हसरत है पूरा एक दिन इक बार मैं अपने लिए रख लूँ
तुम्हारे साथ पूरा एक दिन बस खर्च करने की तमन्ना है !
गुलजार के शब्दों की माला गजब की होती है। उनकी नज्मों को कई अर्थों में समझा जा सकता है। आज और अभी उनकी दो नज्मों को पढिए..और खुद के अंदर के मानुष को टटोलिए...
पूर्ण सूर्यग्रहण
कॉलेज के रोमांस में ऐसा होता था
डेस्क के पीछे बैठे बैठे
चुपके से दो हाथ सरकते
धीरे धीरे पास आते...
और फिर एक अचानक पूरा हाथ पकड़ लेता था
मुट्ठी में भर लेता था।
सूरज ने यों ही पकड़ा है चाँद का हाथ फलक में आज।
----------------------------------------------------------
तुझे ऐसे ही देखा था कि...
तुझे ऐसे ही देखा था कि जैसे सबने देखा है
मगर फिर क्या हुआ जाने...
कि जब मैं लौटकर आया
तेरा चेहरा मेरी आँखों में रोशन था
किसी झक्कड़ के झोंके से गिरी बत्ती
बस एक पल का अँधेरा फिर
अचानक आग भड़की
और हर एक चीज़ जल उठी।
14 comments:
waqi yahi guljar hain............inki roshni se har koi do char hai........
gulzar....yaar kab se keh raha hun inke bare me..kehta hi jata hun ...ab bhi bahut kuch kehna hai ...par filhaal ......
nazm uljhi hui hai seene me
misre atke hue hontho par
lafz hain ki ..
kagaz pe baithte hi nahi
kab se baitha hua hun main..janam
sade kagaz pe likh ke naam tera
bass tera naam hi mukammal hai
isse behtar bhi nazm kya hogi... :)
गुलजार जी का लिखा हमेशा दिल को छु जाता है
हिंदी सिनेमा में गुलजार का नाम हमेशा सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में साहित्य की समझ भी पेश की और सिनेमाई गीतों को एक नया अंदाज भी दिया।
गुलजार को पढ़ना याने डूब जाना अपने आप में..
बड़ा मुश्किल है समझाना कि गुलज़ार क्यों पसंद आते हैं……
जो लोग गुलज़ार को समझ लेते है वे उनकी कलम के हमेशा के लिए मुरीद बन जाते है .....
आप गुलजार जी के लिखे का आनंद लेते रहिए। वैसे गुलजार जी लेखन ही ऐसा है कि आदमी बगैर मुरीद हुए रह नही पाता है। वैसे गिरी भाई
आओ सारे पहन लें आईने.. सारे देखेंगे अपना ही चेहरा..सबको सारे हंसी लगेंगे यहाँ !
इस त्रिवेणी को दो जगह पढा शब्दों में हेरफेर था। एक जगह ये भी पढा था।
आओ सारे पहन लें आईने.. सारे देखेंगे अपना ही चेहरा..रुह अपनी भी किसने देखी है!
खैर.....
अति सुंदर. गुलज़ार तो गुलज़ार है...सूखे में सरस फुहार हैं..आलेख भी उम्दा है.
सूरज ने यों ही पकड़ा है चाँद का हाथ फलक में आज।....
क्या कहा ...
गुलज़ार की नज्में सीधे - सादे बोलों के साथ दिल तक उतरती हैं ...!!
अभिव्यक्ति की सरलता के चरम हैं गुलज़ार साहेब । परिपक्वता सरलता न लाये तो कहीं खोट समझिये ।
वाह, गुलज़ारनामा चल रहा है ..जबरदस्त है भई..
"नाम सोचा ही नही था, कि है कि नही
‘अमा’ कह के बुला लिया किसी ने,
‘ए जी’ कह के बुलाया दूज़े ने,
‘अबे ओ’ यार लोग कहते है,
जो भी यू जिस किसी के जी आया,
उसने वैसे ही बस पुकार लिया॥
तुमने एक मोड पर अचानक जब,
मुझको गुलज़ार कह्के आवाज़ दी,
एक सीपी से खुल गया मोती,
मुझको एक माणी मिल गया जैसे॥
आह!! ये नाम खूबसूरत है..
फिर मुझे नाम से बुलाओ तो………"
यहा भी कुछ सामान है भाई..
VERY GOOD !
www.ashokbindu.blogspot.com
Gulzar ki baten,Gulzar ke geet, Gulzaar ki filmen, Gulzar ki kavitayen,Gulzar ki buland aawaz me sanwedna se lavarez sanwad , har baat gazab ki thuns kar bhari hai is ek sakhshiyat me . Lagta hai upar wale ne is ek sakhshiyat ko banane me apne saare hunar aazma liye hon. Gulzar ki kai filmen kai kai baar dekhi maine,kya karun man hi nahin bharta. Saral shabdon ko saja kar maanviya sanvednaon ko sparsh karne ki adbhut kala hai Gulzar me.Unki kavita ki ek kitab " Raat pashmine ki " padhi maine . Jab bhi dubki lagata hun kabhi khali haath nahin aaya, koi na koi naayab moti mil hi jaati hai . Girindraji , aapki pasand ( Gulzar saab )prastuti , nazmon ka chayan sab kaabil-e-taarif hai . Aapki tarah mai bhi behad pasand karta hun Gulzar saab ko .
Ishwaranand
Post a Comment