मेरा सोचना है कि सूफी दोहे में डूबने के बाद आपके पास शब्द कम पड़ जाते हैं क्योंकि आप शब्दों से काफी दूर निकल जाते हैं। ऐसे वक्त में आपकी अनुभूति का ग्राफ बढ़ जाता है। मुझे लगता है कि हमें शब्दों से परे कुछ सोचने की कला सूफी दोहे सीखाती है। अमीर खुसरो के दोहे तो यही कहते हैं। पढ़िए और खुसरोमय हो जाइए..।
रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ।
जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।।
खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।।
चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय।
ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।।
खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय।
पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।।
3 comments:
बढिया प्रस्तुति।आभार।
एक अलग ही तरह का स्वाद मिलता है सुफी शब्दों से।
बढिया पोस्ट।
आनन्द आ गया पढ़कर..आभार इस प्रस्तुति का.
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