लगभग तीन साल से सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स से यारी कर रहा हूं। ऑरकुट, फेसबुक और ट्विटर के जरिए इस दुनिया में कदम रखा। उससे पहले ब्लॉगसोर्स और ब्लॉगस्पॉट से जबरदस्त यारी थी। ब्लॉगसोर्स तो चला गया पर गूगल का ब्लॉगस्पॉट जिंदगी का एक हिस्सा बन गया। इसी बीच फेसबुक ने जिंदगी में दस्तक दी। ब्लॉग पर जहां अपनी बात रखकर हम चुप बैठ जाते हैं वहीं फेसबुक पर सवाल जवाब का दौर शुरु कर देते हैं।
आज जब फेसबुक पर रवीश पूछते हैं कि आपको एनडीटीवी इंडिया कब बोर करता है तो विनीत कुमार फेसबुक पर जवाब मारकर गाहे-बगाहे पर आ जाते हैं। रवीश और अजीत अंजुम जैसे मीडियाकर्मी जहां इस मंच का इस्तेमाल अपने सवाल के जवाब के लिए कर रहे हैं वहीं विनीत जैसे लोग इसे मीडिया विमर्श की नजर से देख रहे हैं। जब विनीत से पूछा तो उन्होंने कहा- सोशल मीडिया मार्केटिंग की चीज है। ये बिना लागत के ब्रांड फीड लेने का काम है। एक बात और कि ये मीडिया के अंदर के ही लोग कर रहे हैं। बॉस होने की स्थिति में उनके जूनियर दबाकर कमेंट कर रहे हैं। ऐसे में मैं एक लाइन कहना चाहता हूं- फेसबुक है या तेल-मालिश लगाने का खटिया।
विनीत के इस जवाब से सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट का दूसर पक्ष भी सामने आता है, लेकिन इसपर हम जैसे कई लोग शायद पूरी तरह से सहमत नहीं हो। दरअसल इन सवाल-जवाबों में कई सार्थक बातें उभर कर सामने भी आती है।
फेसबुक पर अजीत अंजुम तमाम तरह के सवाल पूछते हैं जो हर किसी के दिमाग में चलता-फिरता रहता है लेकिन उसे कोई सार्वजनिक मंच पर उड़ेलना नहीं चाहता है। अजीत उसे उड़ेल रहे हैं। पत्रकारिता जीवन से जुड़े तमाम बातों को प्रश्नवाचक तरीके से वे परोस रहे हैं, जहां हर तरह के लोग अपनी बात कह रहे हैं। एक बात और समझ में आती है कि इन जैसे लोगों की बातों में टिप्पणियों का पहाड़ खड़ा हो जाता है। सैकडों टिप्पणियों के इस मुद्दे पर इन दिनों कुछ साइटों पर चर्चा भी हो रही है। ऐसी चर्चाएं होनी भी चाहिए।
चाहे जो भी हो फेसबुक के जरिए रवीश और अजीत अंजुम जैसे लोग इस बात की जरूर गारंटी दे रहे हैं कि वे आमदर्शक की बात सुनना चाहते हैं। कमाल का लिखे, वाह क्या बात है सर....जैसी प्रतिक्रियाओं से हटकर गभीर टिप्पणियों को पढ़ना इसी बात को साबित करता है। जहां तक मेरा सोचना है तो रवीश और अजीत अंजुम जैसे तमाम मीडियाकर्मी गंभीर टिप्पणियों के लिए ही इस मंच का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि दर्शकों की बातों को वे समझ सके। जैसा कि रवीश खुद वीनित के ब्लॉग पर टिप्पणी दागते हुए कहते हैं-इसका फायदा होता है। इन्हीं फीडबैक के आधार पर हमने बहुत चीज़ें बदली हैं।
हां यह सच है कि वह जो पूछ रहे हैं उसके जवाब में आई प्रतिक्रिया को वे किस प्रकार अमल करेंगे, इसमें संदेह है, लेकिन वे यदि पूछ रहे हैं कि उनमें क्या गलती है या वे कैसे सुधार करें तो इसे टिप्पणीकारों को सकारात्मक रूप में लेना चाहिए।
2 comments:
फेसबुक को लेकर चलनेवाली बहस को आगे बढ़ाने के लिए शुक्रिया।.
अप पढ़े-लिखे आदमी हैं गिरींद्र जी, इन चूतियों के चक्कर में क्यों पड़ते हैं। ये सब के सब आत्ममुग्ध लोग हैं जिन्हें अपनी पब्लिसिटी के अलावा किसी और चीज से मतलब नहीं।
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