Friday, November 06, 2009

तुमने सुना! प्रभाष जोशी नहीं रहे.... प्रभाष जी आपने क्रीज़ क्यों छोड़ दी?

प्रभाष जोशी नहीं रहे, एक बार सुनकर विश्नास नहीं हुआ..दुखी हूं। बस आंखों में सफेद धोती-कुर्ता पहने प्रभाष जोशी याद आ रहे हैं। सुबह से ही दोस्तों से बात हो रही है। इसी बीच इंदौर में दैनिक भाष्कर में कार्यरत दोस्त संदीप कुमार पांडेय ने कहा-तुमने सुना! प्रभाष जोशी नहीं रहे..। संदीप ने शब्दों के जरिए प्रभाष जोशी को याद किया है, पढिए-

शुक्रिया
गिरीन्द्र
तुमने सुना! प्रभाष जोशी नहीं रहे। यह स्तब्ध कर देने वाली खबर आज तड़के एक मित्र से फोन पर मिली। नींद अभी टूटी नहीं थी लेकिन इस खबर से चेतना ऐसी जागी मानो हजारों हजार कांच की बारीक किरचें एक साथ दिमाग में पैबस्त हो गई हों।



प्रभाष जी बड़े पत्रकार थे उन्होंने जनसत्ता जैसा अखबार हमें दिया जिससे पढ़ने के संस्कार मिले। मैं उनकी पेशेवर खूबियों पर नहीं जाना चाहता। मुझे बस उन्हें पढ़ना अच्छा लगता था।
उनकी कलम की ईमानदारी। इस कठिन समय में सच को लेकर जिद और वो सारी बातें जो मुझे किसी और में नहीं दिखती थीं, वे मुझे उनकी ओर खींचती थीं।कुछ एक अंतरालों को छोड़ दिया जाए कमोबेश 20 वर्षों तक कागद कारे पढ़ता रहा उसी ललक के साथ की आज प्रभाष जी ने क्या लिखा होगा।

क्रिकेट और टेनिस पर लिखे उनके आलेख। खासकर सचिन के खेल पर उसी की तरह बेमिसाल कलम का ही जादू था कि सचिन की उम्दा पारियों के बाद हम ये सोचकर सोते थे कि कल प्रभाष जी क्या लिखेंगे! खबरों के मुताबिक कल रात ११.३० के आस पास उनका निधन हुआ जबकि भारत -ऑस्ट्रेलिया मैच करीब ११ बजे ख़त्म हुआ था।लगता है कहीं सचिन की कल रात की बेमिसाल पारी की खुशी और टीम की नाजुक हार का घालमेल तो उनके लिए जानलेवा नहीं बन गया। अगर ऐसा हुआ है तो तमाम रंज के बावजूद मुझे इस बात की खुशी ताउम्र रहेगी कि एक अद्भुत खेलप्रेमी अपने प्रिय खिलाड़ी को सर्वश्रेष्ठ खेलते देखकर गुजरा और एक शानदार खिलाडी ने अपने ऐसे चहेते को अनोखी भेंट दी मरने से पहले।

प्रभाष जी ने सती अथवा ब्राह्मणों को लेकर हाल के समय में जो भी बयान दिए। उन्हें संदर्भ से काट कर उनका पाठ करने वालों ने ब्लाॅग जगत में जिस भाषा में उनका विरोध किया वो बेहद शर्मनाक था। बात केवल विरोध की नहीं विरोध के स्तर की थी। प्रभाष जी का विरोध करते हुए बातचीत का भाषा एक बेहतर स्तर हो सकता था लेकिन ब्लाॅगियों ने तो उन्हें गली के छोकरे की तरह रगेद ही लिया। क्या अब भी उन्हें अपनी गलतियों का कुछ एहसास होगा।


खैर जो भी हो मेरे लिए तो आज से जनसत्ता पढने की एक बड़ी वजह कम हो गयी। मैं उनसे कभी मिला नही, उन्हें कभी देखा नही लेकिन उनका जाना बड़ी गहरी चोट दे गया.

1 comment:

ashishshivam said...

Ees khabar ko abhi bhi thik se le nahin paya hoon. Cricket aur Jansatta dono hi prabhash joshi k bina adhure rahenge.